Book Title: Karma Siddhant Parichaya
Author(s): Ajit Kumar
Publisher: Ajit Kumar

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Page 41
________________ -[३३]कर्म की रेख में भी मेख, बुधजन* मार सकते हैं। कर्म क्या है उसे पुरुषार्थ+ से संहार + सकते हैं। कर्म संचित बुरे गर हैं तो, भाई इसका क्या डर है, बुरे ऐमाल-नामे को भी, वो सुधार सकते हैं ।। कर्म से तो बड़ा बलवान है पुरुषार्थ दुनिया में, उदय भी कर्म का गर हो, उसे भी टाल सकते हैं। ज्ञान सम्यक्त से चारित्र से तप और संयम से, पाप दरिया में डूवे को, हम उभार सकते हैं। करम का डर जमा रक्खा है हौवा की तरह यूं ही, इन्हें तो ध्यान के इक तीर से भी मार सकते हैं। करें हिम्मत तो सारी मुश्किलें आसान हो जावें । । अगर दें हार हिम्मत तो बिला शक हार सकते हैं। करें पुरपार्थ तो हम इम्तिहां में पास हो जाएं, कर्मों के पुराने सारे परचे फाड़ सकते हैं । कर्म सागर x से होना पार न्यामत' गरचे मुश्किल है, मगर जिनधर्म के चप्पू । से नैया तार सकते हैं। __ इस प्रकार सिद्ध हो गया कि जीव यदि ठोक्न उद्योग करे तो अनादि काल के लगे हुए कर्मों से भी छूट कर मुक्त हो सकता है। *बुद्धिमान | +कोशिश। हटा । ताकतवर । ४ कर्मरूपी समुद्र । । पतवार से । कमाये हुए। .

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