Book Title: Karma Siddhant Parichaya
Author(s): Ajit Kumar
Publisher: Ajit Kumar

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Page 40
________________ -[३२]विषनाशक रेचन वटी या वमनकारक औषधि खा लेवे तो वह विप विना कुछ हानि पहुंचाये टट्टीके साथ या उल्टी (वमन-कय) के साथ निकल जाता है इसी प्रकार आत्मध्यान के बलसे संचित कर्म भी बिना कुछ हानि पहुंचाये आत्मा से दूर हो जाते हैं। इस प्रकार आत्मा सत्य विश्वास, सत्य ज्ञान और सत्य आचरण में पारङ्गत (भरपूर ) होकर कर्मों से बिलकुल छूट जाता है जिसको कि 'मुक्ति' कहते हैं। मुक्त आत्मा संसार के सब आत्माओं से उच्च-उन्नत होता है। अतः उसको परम आत्मा यानी-परमात्मा भी कहते हैं। वह फिर कभी वन्वन में नहीं फंसता। उस समय पूर्णज्ञानी, पूर्णसुखी हो जाता है। सारांश मतलव यह है कि यह जीव अपनी भूल से काम, क्रोध, मोह आदि के वश होकर कर्म-बन्धन में फंसता है जैसे कि मकड़ी अन्य मक्खी आदि जन्तुओं को फंसाने के लिये जाल बनाती है किन्तु स्वयं (खुद) उसमें फंस कर मर जाती है। यही दशा इस संसारी जीव की हुआ करती है। परन्तु जब यह जीव अपनी भूल का अनुभव करके मोह माया आदि बंधन के कारण त्याग देता है तब कर्म बन्धन से छूट कर मुक्त हो जाता है जिस तरह रस्सी को उलटा बटने पर रस्सी खुल जाती इसी विषय पर स्व० श्रीमान कविवर वा० न्यामतसिंह की बनायी हुई एक कविता यहां पर देते हैं

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