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हो सकते ।
सच तो यह है कि यदि सचमुच सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, दयालु, सर्वव्यापक परमात्मा जीवों को कमों का फल देने वाला हो तो संसार में जरा भी दुख, क्लेश, अन्याय, अत्याचार नहीं रह सकते । "यदि मैं एक दिन के लिये भी ऐसा सर्वशक्तिमान पर - मात्मा बन जाऊं तो सारे संसार को पूर्ण सुखी, सदाचारी वना दूं ।”
इस लिये सिद्ध होता है कि संसारी जीवों को उनके कर्मों का फल परमात्मा की ओर से नहीं मिलता है ।
कर्मों का फल अपने आप मिलता है
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जिस प्रकार भोजन करते समय हमारे अधिकार में यह बात रहती है कि हम जो कुछ खाना चाहें खा सकते हैं उस समय दाल, रोटी, चांवल आदि सात्विक हलका भोजन भी कर सकते हैं और रबड़ी, हलवा, भंग, शराब आदि गरिष्ठ, नशीले आदि पदार्थ भी खा सकते हैं किन्तु जिस समय वे हमारे गले से नीचे उतर जाते हैं उस समय उनका रस बनाना या अपनी प्रकृति के अनुसार फायदा नुकसान नशा आदि पैदा करना हमारे अधिकार की बात नहीं रहती । शराब पी लेने पर हम यह चाहे कि हमारे दिमाग पर नशा' न चढ़ो यह बात असंभव है इसी प्रकार कर्म कमाते समय तो हमारे अख्त्यार में है कि हम अच्छे काम करके अच्छे कर्म कमायें, पूर्व संचित कर्म के निमित्त से मिली बुरी परिस्थिति (मौके) में भी अपने परिणामों
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