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-[१२]में जीव को कैद कर देने का कारण नहीं हो सकता, न मूर्तिक चीजों के (जल, अग्नि, दूध, विप आदि ) द्वारा वह जीव को सुख, दुख आदि दिलाने का कारण हो सकता है क्योंकि मूर्तिक से काम मूर्तिक पदार्थ ही करा सकता है। इस कारण एक तो संसारी जीव को पराधीनता की जंजीर में जकड़ने वाला वंह पदार्थ मूर्तिक है जिसको पुद्गल या मैटर भी कहते हैं। जो कि जीव के साथ सदा रहता है, संसार में कदापि उसका साथ नहीं छोड़ता।
अब आप इस पुद्गलीय ( मैटीरियल) पदार्थ को जो कि सदा जीवके साथ रह कर उसकी परतंत्रता का कारण बना हुआ है- चाहे जिन शब्द से कह लीजिये, सूक्ष्म-शरीर कहें तो कुछ हानि नहीं, देव कहे, कर्म कहें, भाग्य कहें, तकदीर.कहें, अदृष्ट कहें, किस्मत कह लें तो कोई अन्तर नहीं। चीज एक है, नाम चाहे जो रख लें।
जिस कम की सत्ता ( मौजूदगी) पर कुछ प्रकाश डाला गया है । वह कर्म किस ढङ्गसे जीवके शिर सवार होकर उसको विचित्र नाच नचाता है अब इस पर प्रकाश डाला जाता है
'पुद्गल ( मैटर ) के परमाणु ('Atoms ) यद्यपि साधारण तौर से एक सरीखे होते हैं उनमें अनेक तरह के पदार्थों के रूप में हो जाने की शक्ति है उन परमाणुओं से पानी भी बन सकता है और आग भी बन सकती है किन्तु जिस समय वे