Book Title: Karma Siddhant Parichaya
Author(s): Ajit Kumar
Publisher: Ajit Kumar

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Page 25
________________ - [१७] कर्म बहुत जोरदार तय्यार होता है और जिस समय इनसे उलटे अच्छे काम करता है तब उसका दर्शनावरण कर्म कमजोर हो जाता है, साथ हीं दर्शनगुण प्रगट होता जाता है । ३- वेदनीय कर्म वह है कि जिसके कारण जीवों को इन्द्रियों का सुख या दुख प्राप्त ( हासिल ) करने का अवसर (मौका ) मिलता है यानी जीवों को इस कर्म की वजह से सुख दुख मिलाने वाली चीजें मिलती हैं । ग्रह कर्म दो प्रकार का है साता और असाता । सातावेदनीय के कारण संसारी जीव इंद्रियों का सुख पाते हैं । और असातावेदनीय कर्म का फल दुख मिलना होता है । यदि कोई मनुष्य किसी दूसरे मनुष्य को बुरे विचार से ( इरादे से ) मारे, पीटे, दुख देवे, स्लावे, रंज पैदा करावे अथवा खुद आप ही अपने आपको किसी बुरे भाव से दुख दे, रोवे, शोक करे, फांसी लगा ले अन्य तरह से आत्महत्या ( खुदकशी ) करले इत्यादि, तो उसके इस प्रकार के कामों से असातावेदनीय कर्म बनता है जो कि अपने समय पर दुख पैदा करता रहता है | यदि कोई पुरुष दूसरों का उपकार करे, अन्य जीवों के दुख हटाने का उद्योग करे, शान्ति से अपने दुखों को सहे, दया करे आदि । यानी - अपने आपको तथा दूसरे जीवोंको सेवा भाव से, दयाभाव से सुख पहुंचाने का काम करे तो उसके सातावेदनीय कर्म बनेगा जोकि अपना फल उसको सुखकारी •

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