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-[२६]थोड़ी होती है वह जल्दी फल देने लगता है।
जैसे हम दूध, चांवल, गन्ना, पन्तरा आदि हलके पदार्थ खावें तो वे जल्दी पच कर रस बन जाते हैं, और यदि केला, बाटी, बादाम आदि भारी, गरिष्ठ चीजें खायें तो वे देर में पचते हैं और उनका रस देर से बनता है। इसी के अनुसार लम्बी नियाद वाले कर्म देर से उदय में आते हैं, थोड़ी मियाद वाले कर्म उन्ही फल देने लगते हैं।
संसार में बहुतसे पापी जीव घोर पाप करते हुएभी सुखी दीख पड़ते हैं, रात दिन व्यभिचार करने वाली मी वेश्याएं दुखी नहीं देखी जाती इसका कारण यही है कि उनके कमाये हुए पाप कर्मों में बुरा, दुखदायी फल देने की शक्ति बहुत ज्यादा, लन्बे समय तक की पड़ी है इस लिये उनको उन पाप कर्मों का फल भी जरा देर से मिलेगा संभव है वह इस जन्म के पीछे दूसरे जन्म में मिले।
नो जीव हलका पुण्य चा पाप करते हैं उनके कमाये कों में थोड़ी मियाद पड़ती है तदनुसार वे उदय भी जल्दी हो आते हैं यानी-जल्दी फल मिल जाता है।
फल देने के पीछे फल देने के पीछे, कार्माण स्कन्ध नि:सार हो जाते हैं
+ एक कोडाकोड़ी सागर (असंख्य वर्षों ) का स्थिति वाजा
कर्न एक सौ वर्ष पीछे फल देने योग्य होता है।