Book Title: Karma Siddhant Parichaya
Author(s): Ajit Kumar
Publisher: Ajit Kumar

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Page 35
________________ -[२७]उनमें आत्मा के साथ लगे रहने की शक्ति नहीं रहती तब वे . कार्माण स्कन्ध अपने आप आत्मा से अलग हो जाते हैं। जैसे सर्प के शरीर का पुराना चमड़ा (केंचुली ) उसके शरीर से उत्तर जाती है उसी तरह कर्म भी अपना कार्य करके आत्मा से अलग हो जाते हैं। इस तरह पहले के कर्म अपना फल देकर आत्मा से अलग होते रहते हैं और नये २ कर्म आत्मा से बंधते रहते हैं। जिस तरह कि समुद्र में हजारों नदियों का पानी प्रति समय आता रहता है और उधर सूर्य की गर्मी से उसका वहुत सा पानी भाप बन कर उड़ता भी रहता है। जिस प्रकार कोई ऋणी ( कर्जदार ) मनुष्य पहले का कर्जा (चुकाता) है किन्तु लाचार होकर अपने खाने पीने के लिये नया कर्ज भी ले लेता है इस कारण वह कर्जे से नहीं छूट पाता। इसी प्रकार संसारी जीव पहले कमाये कर्मों का फल भोग कर ज्यों ही उनसे छूटता है त्यों ही अपने भले बुरे कामों से और नया कर्म कमा लेता है। इसी कर्मों की उधेड़ बुन के कारण जीव संसार में हमेशा से ( अनादि समय से ) अनेक योनियों में जन्मता मरता चला आ रहा है। कर्मों में उलटन पलटन कमाये हुए कर्मों में उलटन पलटन भी हुआ करती है। जिस तरह खाये हुए पदार्थ का असर हम बदल सकते हैं किसी आदमी ने भूल से या जान बूझ कर विष खा लिया और उसके

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