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-[१५]के कारण बुरी है तो उन आकर्पित (कशिश) होने वाले कार्माण स्कन्धों में बुरा यानी विगाड़ करने का असर पड़ेगा। निस तरह रिकार्ड ग्रामोफोन के ऊपर सुई की नोंक से उसी तरह की गाने की आवाज निकालता है जैसी कि उसमें अंकित (जज्ब) हुई थी ठीक, इसी तरह कर्म का नशा समय पर जीव के सामने उसी रूप में प्रगट होता है जिस रूप में जीव ने उसे अपने साथ मिलाया है। यानी-जिस कर्म में अच्छा अमर पड़ा है वह जीव को अच्छी तरफ प्रेरित करके अच्छा सुखकर फल देगा और जो बुरे असर वाला कर्म जीव ने अपने साथ मिलाया है वह दुखदायक साधनों की ओर जीव को प्रेरित कर के दुखी बनावेगा।
कर्मों के भेद ।। वैसे तो जीवोंकी अगणित ( वेतादाद ) तरह की क्रियाएँ होती हैं तदनुसार कर्म भी अगणित तरह के वना करते हैं किन्तु उनके मोटे रूप से आठ भेद होते हैं। १- ज्ञानावरण २- दर्शनावरण, ३- वेदनीय, ४- मोहनीय, ५- आयु, ६- नाम, ७- गोत्र, ८- अन्तराय।
१-ज्ञानावरण कर्म वह है जो कि आत्मा के ज्ञान गुण को छिपाता है, उसको कम कर देता है । आत्मा में शक्ति है कि वह सारे संसार की भूत (गुजरा हुआ जमाना) भविष्यत् (आइन्दा जमाना) और वर्तमान (मौजूदा वक्त) समय की सव वातों को ठीक जान लेवे, किन्तु ज्ञानावरण कर्म के कारण