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-[२०]जिन जीवों के कार्य न बहुत अधिक अच्छे होते हैं और न बहुत अधिक खराव ही होते हैं, बिना कारण किसी को कष्ट नहीं देते, अधिक लालची, अधिक क्रोधी नहीं होते, उनके मनुष्य आयु कर्म बंधता है।
__ जो जीव दूसरों को ठगने में, धोखा देने में, छल-कपट करने में, झूठ बोलने में, मीठी बातें बनाकर दूसरों को फंसा लेने में, विश्वासघात करने में प्रायः (अक्सर ) लगे रहते हैं वे पश आयु कर्म को आगे के वास्ते अपने लिये तैयार करते हैं ।
और जो जीव अधिक दुष्ट होते हैं, हिंसा करना, विना कारण दूसरों का नाश करना, सदा दूसरों के बिगाड़ में लगे रहना, बल पूर्वक (जबर्दस्ती ) दूसरों का धर्म विगाड़ना आदि बुरे निंद्य काम करना ही जिनका काम होता है वे जीव नरक आयु वान्धते हैं।
ई-नाम कर्म वह है कि जिसके कारण संसारी जीवों के अच्छे बुरे शरीर बन जाते हैं। जैसे चित्र बनाने वाला अनेक तरह के चित्र ( तसवीरें) बनाया करता है, उसी प्रकार . नामकर्म के कारण, सुडौल,. वेडौल, लम्बा लिंगना, कुबड़ा, काला, गोरा, कमजोर हड्डियों वाला, मजबूत हड्डियों वाला आदि अनेक तरह के शरीर तयार होते हैं।
__ यह कर्म दो प्रकारका है-शुभ और अशुभ । जिसके कारण अच्छा सुडौल, सुहावना सुन्दर शरीर बनता है वह