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–[२१]—– शुभनामकर्म है । और जिससे बेडौल, कुबड़ा, बदसूरत आदि खराब शरीर बनता है वह अशुभनामकर्म है ।
जो जीव कुबड़े, बौने, लूले, लंगड़े आदि असुन्दर ( बदसूरत ) जीवों को देखकर उनका मखौल उड़ाते हैं, अपनी खूबसूरती का घमण्ड करते हैं, अच्छे सदाचारी मनुष्य को दोप लगाते हैं, दूसरों की सुन्दरता बिगाड़ने का उद्योग करते हैं, उनके शुभनामकर्म बनता है । और जो इनसे उलटे अच्छे कार्य करते हैं वे अपने लिये शुभनामकर्म तैयार
करते हैं ।
७ - गोत्रकर्म वह है जो जीवों को ऊंचे नीचे कुल ( जातियों) में उत्पन्न करे । जिस प्रकार कुम्हार कोई तो बड़ा आदि ऐसा बर्तन बनाता है जिसको लोग ऊंचा रखते हैं, उसमें घी, पानी रख कर पीते हैं तथा कोई कुनाली आदि ऐसा बर्तन भी बनाता है जो कि टट्टी पाखाने के लिये ही काम आता है जिसको कोई छूता भी नहीं ।
इसी प्रकार गोत्रकर्म के कारण कोई जीव तो क्षत्रिय, ब्राह्मण आदि अच्छे कुलीन घर में पैदा होता है और कोई चमार, मेहतर, चांडाल आदि नीच कुल में उत्पन्न होता है, जिनका नीच काम करके आजीविका करना ही खास काम होता है ।
देव तथा क्षत्रिय, ब्राह्मण, आदि मनुष्य ऊंचगोत्र कर्म