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..-[१६]निमित्त से ही प्रायः दूसरे २ बुरे भाव पैदा हुआ करते हैं और ऐसे ही बुरे विचारों से तथा खराब कार्यों से बुरे कर्म बंधते हैं। इस लिये असलियत में मोहनीय कर्म ही अन्य सब कर्मों के बंधने का कारण समझना चाहिये । इसी कारण यह कर्म अन्य सब कर्मों से अधिक बुरा है।
हिंसा, धोखेबाजी, घमंड, अन्याय, अत्याचार, लोभ, काम, क्रोध आदि करने से सच्चे पूज्य परमात्मा, गुरू, शास्त्र की निन्दा करने से, दूसरों को ठगने आदि बुरे कार्य करने से मोहनीय कर्म तैयार होता है और इनसे उलटे अच्छे कार्य किये जायें तो मोहनीय कर्म हलका होता जाता है।
५. आयु कर्म- वह है, जोकि जीव को मनुष्य, पशु, देव, नरक इनमें से किसी एक के शरीर में अपनी आयु (उम्र) तक रोके रखता है। उस शरीर में से निकल कर किसी दूसरे शरीर में नहीं जाने देता। जिस प्रकार जेलर किसी सख्तकैद वाले कैदी को कुछ समय के लिये काल कोठरी में वंद कर देता है। उससे निकल कर दूसरी जगह नहीं जाने देता। उसी प्रकार यह कर्म भी पहले कमाये हुए कर्म के अनुसार पाये हुए मनुष्य आदि के शरीर में उस उम्र तक रोके रखता है जो कि उसने पहले जन्म में बान्धी थी।
जो जीव दयालु, परोपकारी, धर्मात्मा, सदाचारी होते हैं, हिंसा आदि पापों से दूर रहते हैं सन्तोषी होते हैं वे देव आयु कर्म बांधते हैं।