Book Title: Karma Siddhant Parichaya
Author(s): Ajit Kumar
Publisher: Ajit Kumar

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Page 15
________________ -७]इसी प्रकार सारे विपय भोगों के लिये भी यही बात है। सुख उन बाहरी चीजों में नहीं किन्तु उन प्राणधारी जीवों के भीतर ही है। वे बाहरी पदार्थ तो केवल उसको प्रगट कर देते हैं। इस कारण मानना पड़ेगा कि सुख इस आत्मा (जीव) का निजी स्वाभाविक (कुदरती ) गुण है। ज्ञान ठीक इसी तरह ज्ञान भी आत्मा का एक प्रधान स्वाभाविक गुण है। प्रेमचन्द्र ने अपने अध्यापक (मास्टर) से इतिहास ( तवारीख ) पढ़ कर दो तीन हजार वर्ष पहले की अनेक बातों का ज्ञान हासिल कर लिया। तो क्या ज्ञान उस मास्टर ने प्रेमचन्द्र के भीतर रख दिया ? नहीं; क्योंकि वही मास्टर उस इतिहास ज्ञान को दूसरे छोटे बच्चे को नहीं सिखा सका। यदि इतिहास ज्ञान को उस पुस्तक से पैदा हुआ मानें तो उस पुस्तक को देख कर वह जो कि हिन्दी भाषा का जानकार नहीं कुछ भी नहीं समझ पाता। इससे यह निचोड़ निकला कि वह ज्ञान प्रेमचन्द्र को न तो मास्टर ने दिया और न पुस्तक ने ही उप्तको दिया। ___एक जोहरी किसी पत्थर को देख कर जान लेता है कि इसका मूल्य एक हजार रुपये से कम नहीं। तो क्या वह ज्ञान उन आंखों के भीतर भरा हुआ था ? नहीं; क्योंकि दूसरा मनुप्य अपनी आंखों से उस पत्थर को देखकर उसकी कीमत एक सौ रुपये १००) भी नहीं समझता। यदि आंखें ही उस

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