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-[५]करोड़ों मनुष्य पान से घणा (नफरत ) करते हैं वे उसे कड़वा समझ कर कभी नहीं खाते, किसी यूरोपियन को आप यदि पान देंगे तो वह मुखमें रखते ही थूक देगा। इससे यह सिद्ध हुआ कि सुग्न पान में नहीं है।
तो क्या पान सुख उत्पन्न करने का अनिवार्य (निहायत जरूरी) कारण है ? नहीं; ऐसा भी नहीं है। क्योंकि पान स्त्राने के शौकीन मनुष्य की तवियत ठीक नहीं हो तो वही पान उसको खराब मालूम होता है । दूध तो प्रायः सभी देशी विदेशी आदमियों को अच्छा लगता है। किन्तु वह कब, जबकि मुख और तबियत ठीक हो। जिस मनुष्य को पित्त का बुखार आया हो उसको वही दूध कड़वा मालूम होता है। किसी को मीठी चीजों के खाने से सुख मिलता है तो कोई उनके लेने से नफरत करता है- उसको नमकीन, खट्टी चीजों के खाने से सुख मालूम होता है। जिस नीम के कड़वे पत्ते को खाने में सब कोई नाक सिकोड़ते हैं उसी नीम के पत्ते को ऊंट, चकरी तथा उस पत्ते का कीड़ा बड़े स्वाद से खाकर सुख मालूम करता है। इससे यह सिद्ध होता है कि सुख उन पान, मिठाई खटाई आदि चीजों में नहीं है।
चम्बई में व्यापार करते हुए ला० मनोहरलाल जी को देहली से तार आता है कि आपके घर पुत्र पैदा हुआ है । तार पढ़ कर मनोहरलाल जी को बहुत भारी हर्प होता है । अव विचारिये कि वह आनन्द क्या तार लाने वाला चपरासी ले