Book Title: Karananuyoga Part 2
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 4
________________ भावना अनादिकाल से संसार का प्रत्येक प्राणी अति दृढ़ कर्म श्रृंखलाओं के बन्धन से बद्ध है। चैतन्यमयी आत्मा के साथ कर्मों का यह सम्बन्ध क्यों, कैसे, किसके द्वारा, कितना और किस प्रकार का है ? यह सब जानने के तथा इनसे छूटने के उपायों का चिन्तन एवं पुरुषार्थ जीव ने आज तक नहीं किया। करुणावन्त आचार्य नेमिचन्द्र ने इन सब प्रश्नों का सरलता से बोध कराने हेतु षट्खण्डागम से कर्मकाण्ड ग्रन्थ का अवतरण किया। प्राकृत एवं संस्कृत भाषा की पटिलता दूर करने हेतु महामना पं. टोडरमल जी ने इस ग्रन्थ की टीका आदि का ढूंढारी भाषा में रूपान्तर किया । विषय को और स्पष्ट करने हेतु विदुषी आर्यिका १०५ श्री आदिमती माताजी ने इस पर अपनी लेखनी उठाई, जिसका सम्पादन करणानुयोग के मर्मज्ञ विद्वान स्व. पं. रतनचन्दजी मुख्तार सहारनपुर वालों ने किया। जैन जगत् के मनीषी विद्वान पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य ने उपर्युक्त प्रश्नों को सरलतापूर्वक समझने हेतु ३०० प्रश्नोत्तरों द्वारा ग्रन्थ के हार्द को समाज के समक्ष रखकर सराहनीय कार्य किया है। आशा है आत्म हितैषी भव्य जीव इस अनुपम कृति का सदुपयोग कर कर्मों से छूटने का सतु प्रयास करेंगे, यही मेरी मंगल भावना है I आर्यिका विशुद्धमती -

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