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आद्य निवेदन
करणानुयोग दीपक द्वितीय भाग को पाठकों के हाथों में अर्पित करते हुए प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ। करणानुयोग के महान् ग्रन्थ धवल, जयथवल और महाधयत में पाने के लिए रोड और कर्मकाण्ड का ज्ञान होना आवश्यक है। आचार्य नेमिचन्द्र जी ने धवलादि ग्रन्थों में से चयन कर जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड की रचना की थी। एक समय था जब विद्यालयों में इनका यथार्थ अध्ययन-अध्यापन होता था, पर अब परीक्षा का प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए ही छात्र अध्ययन करते हैं ऐसा जान पड़ता है।
जीवकाण्ड का आधार लेकर करणानुयोग दीपक का प्रथम भाग लिखा था। आज कर्मकाण्ड का आधार लेकर द्वितीय भाग प्रकाशित कर रहा हूँ। इसमें ३०० प्रश्नों के द्वारा कर्मकाण्ड के प्रमुख विषयों को प्रकट करने का प्रयास किया है। गुरुणां गुरु श्री गोपालदासजी बरैया ने जैन सिद्धान्त प्रवेशिका को प्रश्नोत्तर की शैली में लिखकर कठिन विषय को सरल बनाने की जिस रीति का प्रारभ्भ किया था वह रुचिकर सिद्ध हुई । उसी शैली पर अन्य विद्वानों ने भी लिखने का प्रयास किया है।
इन प्रकाशनों के आधार पर शिक्षण शिविरों का आयोजन किया जावे तो अधिक लाभ हो सकता है। यह पुस्तक लिखकर मैंने श्री १०५ आर्यिका विशुद्धमतीजी के पास भेज दी थी, इसे उन्होंने देखा तथा हमारे सहयोगी विद्वान पं० जवाहरलाल जी शास्त्री भीण्डर ने विषय को स्पष्ट करने के लिए कुछ टिप्पण लगाये। इन सबके प्रति मेरा आदर भाव है।
जिनवाणी की सेवा का मुझे व्यसन है। इसके फलस्वरूप कुछ करता