Book Title: Kaise Jiye Madhur Jivan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 11
________________ गया था नागासाकी पर और एक गिराया गया था हिरोशिमा पर। मात्र दो बमों का परिणाम यह हुआ कि हिरोशिमा और नागासाकी में मात्र एक ही रात में डेढ़ लाख से अधिक लोग नष्ट हो गए। वहाँ की मिट्टी भी जल गई और भवन ऐसे बिखर गए जैसे किसी रेगिस्तान की धूल हवा के झोंके से उड़कर नीचे बिखरा करती है। हाँ! यह इंसान है जिसने दुनिया में औरों की मृत्यु और आतंक पर ही अपने जीवन के ख्वाब देखे हैं। आज यदि किसी को इस बात का अहसास भी करा दें कि तुम जो खा रहे हो, पी रहे हो, कर रहे हो, उसमें मृत्यु के रसायन छिपे हैं तो इसके बावजूद भी वह बेखबर ही रहेगा। नतीजा यह निकल रहा है कि आदमी अपने द्वारा जीवन को मूल्य देने के काम कम कर रहा है जबकि मृत्यु की तरफ बढ़ने का काम ज्यादा हो रहा है। ___मैं यह कहना चाहता हूँ कि जीवन का अशेष मूल्य है। यह मूल्य तभी आँका जा सकेगा जब हम स्वयं अपने जीवन को मूल्य देंगे। कल एक सज्जन मेरे पास बैठे हुए थे। उनके दाँत ऐसे दिख रहे थे जैसे कोई गंदी डब्ल्यू.सी. हो। ऐसा लगता था मानो उन्हें तीन साल से साफ ही न किया गया है। उन्होंने तो केवल उपयोग ही उपयोग किया है। कई वर्षों से वह इन दाँतों से गुटखा-जर्दा चबाता रहा होगा। ताज्जुब की बात यह है कि आदमी अभी तक यह अहसास ही नहीं कर पा रहा है कि उसके पास छाती है या छाती पर जमा हुआ तम्बाकू का लेप आ चुका है। अब उसके पास छाती न रही, हड्डियाँ न रहीं, कोई ढाँचा भर खड़ा रह गया है। क्या इंतजाम किए हैं हमने? ___अगर कोई पूछ ले कि तुम अपने बेटे को क्या जर्दा खिलाना चाहते हो? हम कहेंगे 'नहीं'। बेटे के लिए तो हम यह नहीं चाहते कि वह जर्दा खाए, पर अपने लिए आप जरूर खाना चाहते हैं। ऐसा करके हमने अपने लिए मृत्यु के ही प्रबन्ध किए हैं। हम इसलिए खाते हैं कि जीवन के प्रबन्ध हो सकें। हम इसलिए नहीं खाते हैं कि ऐसा करके हम मृत्यु के प्रबन्ध करें। ___कैसे जिएँ मधुर जीवन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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