Book Title: Kaise Jiye Madhur Jivan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 57
________________ लिए संकल्पबद्ध नहीं हो सकेगा। अच्छा होगा कि आप जब ध्यान धरने बैठें तो अपने ही स्वभाव पर ध्यान धरें और पहचानने की कोशिश करें कि आपका स्वभाव कैसा है? यदि किसी की थोड़ी-सी कटु बात को सुनते ही अगर हमारा मन क्रोधित और आग-बबूला हो जाता है तो हम बाहर से इंसान भले ही हुए, पर भीतर से साँड हैं। जैसे किसी साँड को अगर लाल कपड़ा दिखा दें तो वह भड़क उठता है, वैसे ही अगर कोई आपको दो-चार शब्द कह दे और आप भड़क ही उठे तो संभलिएगा और एक बार मनन कर लीजिएगा कि मैं इंसान हूँ या कोई सांड? अगर लगे कि रास्ते में चलते हुए बात-बेबात में आप किसी को टक्कर मार देते हैं, किसी यार - दोस्त से भी अगर मिलने के लिए जा रहे हैं तो सीधा हाथ नहीं मिलाते और पीछे से जाकर पीठ पर जोर की थप्पी मारते हैं तो संभालिएगा ! ऐसा स्वभाव तो साँप का होता है जो चाहे-अनचाहे किसी-न-किसी को डसता रहता है । जरा एक बार यह मनन कर लें कि आपके भीतर कहीं कोई साँप तो नहीं बैठा है । हो सकता है कि रास्ते में गुजरते हुए कीचड़ में पड़े किसी कीड़े को देखकर आप अपनी नाक-भौं सिकोड़ भी लें, पर अगर अपने ही मन की परीक्षा करें तो पहचान लीजिएगा कि जो व्यक्ति दिन-रात लोभ में, निन्यानवें के फेर में पड़ा रहता है, वह कीचड़ का कीड़ा नहीं है तो और क्या है? जैसे कीचड़ का कीड़ा कीचड़ में रस लेता रहता है, वैसे ही हम कहीं अपने राग में, अपनी मूर्च्छा में कीड़े की तरह धँसे हुए तो नहीं हैं 1 इंसान दिखाई देनेवाला व्यक्ति इंसान नहीं होता । उसने ढेर सारे मुखौटे पहन रखे हैं । कुल, जाति, रूप, धन, मद का मुखौटा उतारकर फिर पहचानें अपने आप को कि मैं क्या हूँ, कैसा हूँ और मेरी प्रकृति कैसे जिएँ मधुर जीवन ५२ इस दौर में इंसान का, चेहरा नहीं मिलता । कब से मैं नकाबों की तहें खोल रहा हूँ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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