Book Title: Kaise Jiye Madhur Jivan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 109
________________ सार बात इतनी सी है कि अपने जीवन के साथ विवेक जोड़िए । यह एक ऐसी अनमोल संपदा है, जिससे आप दुनिया की हर चीज वश में कर सकते हैं। बोलो विवेकपूर्वक, खाओ विवेकपूर्वक । लोग खाते ऐसे हैं जैसे गाय अपना मुँह चलाती है। ऐसे ही लोग अपने दाँत चलाते हैं। खाना मुँह में नज़र आता रहता है । खाना मुँह में रखो, होठों को बंद करो और भीतर चबाओ । थोड़ा विवेक, थोड़ी शालीनता, थोड़ा अदब अपने में होना ही चाहिए । अगर आप भोजन भी विवेकपूर्वक करते हैं तो यह भोजन करना भी योग है। अगर आप सड़क पर चलते हैं और चलते हुए विवेकपूर्वक चलते हैं, तो यह भी योग है। मैं मानता हूँ कि पैदल चलने वाला चींटी को बचाएगा, किन्तु कार में चलने वाला चींटी को तो नहीं बचा सकता । अगर कार आप विवेकपूर्वक चलाते हैं, तो कम-से-कम किसी पशु या इंसान को तो बचा ही सकते हैं। आप कार चलाते हुए भी योग साध रहे हैं अगर आप विवेकपूर्वक कार चला रहे हैं तो । नहीं तो शेखी आएगी, शेखी बघारोगे । परिणाम यह होगा कि हर आदमी अकड़बाज बनेगा । वह दूसरों को स्वीकार ही नहीं करेगा। उसे लगेगा, 'दूसरों में अक्ल ही नही है' जबकि हर आदमी को ज्ञान होता है । कोई कहता है कि 'मैं बीस साल से काम कर रहा हूँ और आप आज आए हैं। कोई कहता है, 'आप मुझे समझा रहे हैं, मैं तो चालीस साल से यह काम कर रहा हूँ ।' ठीक है भाई, आप चालीस साल से काम कर रहे हो पर एक बार शीर्षासन करके देखो कि चालीस साल में आप कितना कर पाये और उसका परिणाम कितना उपलब्ध हो पाया? जो बहू बीस साल तक बहू रहने के बावजूद जीवन जीना नहीं सीख पाई, वह सास बनकर भी कभी अपने घर को एकेसूत्र में बाँधकर नहीं रख सकेगी। कुर्बानियों से जीवन बनता है । ज्ञान तो विकास में सहायक है किन्तु विवेक आवश्यक है । एक विद्यालय में एक टीचर ने अपने छात्रों से पूछा, 'यह बताओ कि तुम्हारे सामने अगर कोई देवता हाजिर हो १०४ कैसे जिएँ मधुर जीवन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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