Book Title: Kaise Jiye Madhur Jivan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 102
________________ नहीं पहनेंगे। अगर आप उत्पादन पर ध्यान नहीं देंगे तब तो आप केवल बाजार गये और जाकर सीधे जूते खरीद कर ले आए। उत्पादन पर ध्यान देने वाले लोग कपड़े के जूते और चप्पल पहनेंगे। मैं कहूँगा कि अभी अहिंसा तुम्हें फिर से समझनी होगी। केवल उपभोग के दायरे में ही अहिंसा को जीवित नहीं किया जाना चाहिए बल्कि उत्पादन के दायरे में भी अहिंसा का अंकुश लग जाना चाहिए। ___ खेती कीजिए, कोई दिक्कत नहीं है। आप और श्रेष्ठ उत्पादन कर सकेंगे। अब तो अहिंसामूलक खेती होनी चाहिए जिसमें हिंसा कम-से-कम हुई हो। कभी गीता ने कहा था 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन' कर्म करना तुम्हारा कर्त्तव्य, श्रम करना तुम्हारा कर्त्तव्य है। फल पाने की आकांक्षा रखना तुम्हारा कर्त्तव्य नहीं है। फल तुम्हें स्वतः मिलेगा। कार्य और कर्त्तव्य तुम्हारा काम है। फल को तुम्हारे कार्य का परिणाम होगा ही होगा। इसलिए जो कुछ करो, उसे प्रभु को समर्पित कर दो। कहो, 'हे प्रभु! यह जो मेहनत की, वह तुम्हें समर्पण।' आपने मंदिर में फूल तो चढ़ाऐ ही होंगे। मैं कहूँगा घर में जब कचरा निकालें तो वह भी उसे चढ़ा देना जिसे तुम फूल चढ़ाते हो। फूल भी तुमने भेजा और कचरा भी तुमने भेजा। तेरा तुझको अर्पण! । ___ अपने कर्म को अगर हम कर्ता-भाव से मुक्त होकर, अपने कार्य को अगर हम पूजा बनाकर सम्पादित करें तो हमारा हर कार्य प्रार्थना बनता चला जाएगा। शायद मंदिर में हम एक-दो घंटे बैठते हैं, पर आठ घंटे नहीं बैठ सकते। आठ घंटे तो आपको कर्म करना पड़ेगा। तो फिर क्यों न ऐसे मार्ग को अपनाया जाए जो आपको आठ घंटे लगातार परमात्मा से जोड़े रखे। मैं यह जो आपको बता रहा हूँ यह भी कर्मयोग है यानी प्रभु की सेवा का एक चरण है। आप झाडू लगाते हुए भी परमात्मा से जुड़े रह सकते हैं। एक बुहारी चलाई और भगवान का नाम ले लो। जितनी बार बुहारी चलाओगे उतनी बार भगवान का नाम भी ले लो। धीरे-धीरे आप पाएँगे कि बुहारी तो लग रही हैं सहज बेहतर जीवन के लिए, योग अपनाएं ९७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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