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कि सिर्फ कार्य नहीं कर रहा हूँ, अपितु मेरा हर कार्य परमात्मा का पूजा है । इस भाव से आप अपने हर कार्य को सम्पादित कीजिए । अपने कार्य से प्यार करना सीखिए । कार्य ही आपके लिए स्वर्ग का सेतु बन जाएगा । कर्म ही आपका आईना है । आप जैसे हैं, कर्म आपको आपका वैसा ही रूप दिखा देगा । कर्म ऐसा हो, जो आपका आईना बने ।
अगर आप एक घंटे की खुशी चाहते हैं तो आप जहाँ बैठे हैं वहीं एक झपकी ले लीजिए। अगर एक दिन की खुशी चाहिए तो जहाँ आप काम करते हैं, वहाँ की छुट्टी मार लीजिए । छुट्टी मनाइए, घूमिए - फिरिए । अगर एक सप्ताह की खुशी चाहते हैं तो पिकनिक मनाने चले जाइए । एक महीने की खुशी चाहिए तो किसी से शादी कर लीजिए और अगर एक साल की खुशी चाहिए तो किसी की गोद में चले जाइए और विरासत में उसका धन अपने नाम लिखवा लीजिए । पर अगर जिंदगी भर की खुशी और राहत चाहिए तो आप जो काम करते हैं, उस काम से प्यार करना सीखिए ।
हर काम बहुत प्यार से करना चाहिए। इतनी तबीयत से कि कार्य स्वयं पूजा और प्रार्थना बन जाए। जीवन में दुःखों से मुक्त होने का गुरुमंत्र ले लो : 'हर समय व्यस्त रहो, हर हाल मस्त रहो' । हर व्यक्ति कर्मयोगी बने। यहाँ तक कि अगर सेवनिवृत्त भी हो जाओ, तब भी स्वयं को सक्रिय रखो । सक्रियता ही कर्मयोग है। उसे अवश्य करो. क्योंकि तुम करने में समर्थ हो । किसी भी देश की बेरोजगारी की समस्या को दूर करने का पहला और आखिरी मंत्र है- 'कर्मयोग' |
कौन कहता है आकाश में, सुराख नहीं हो सकता?
एक पत्थर तो, तबीयत से उछालो यारो ।
बेहतर जीवन के लिए, योग अपनाएं
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