Book Title: Kaise Jiye Madhur Jivan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 104
________________ आप बूढ़े हों, चाहे आप बच्चे हों। निठल्लापन अभिशाप है। अकर्मण्यता पाप है। किसी भी तीर्थंकर या अवतार ने मनुष्य को फल की आकांक्षा से मुक्त होने की प्रेरणा तो दी है, लेकिन कर्म और कार्य से मुक्त होने की प्रेरणा कतई नहीं दी है। हर व्यक्ति को यह प्रेरणा दी गई है कि उसका जीवन खंडप्रस्थ है, अतः उसे इन्द्रप्रस्थ बनाओ। हर व्यक्ति कर्मयोगी बने। ____ आज आदमी से काम नहीं होता। हर आदमी औरों से काम कराना चाहता है। यानी छोटा होना जुल्म हो गया। बेटा या बहू होना जुल्म हो गया। घर में सास से काम ही नहीं होता कि बहू ले कर आ गई हूँ। अब मैं कैसे काम करूँगी? सब लोग नवाबजादे और अमीरजादे बने घूम रहे हैं। जहाँ अमीरजादे, नवाबजादे और शाहजादे कामचोर हो जाते हैं, लाटसाहब बने घूमते हैं, वहाँ फिर कोई हरामजादा बन जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं। आप कृपया मेरी बात को सकारात्मक लें और अपनी बहू के साथ हाथ बँटाएँ। वह बहू है, नौकरानी नहीं। सब मिलकर काम करें। हम सब साथ-साथ हैं तो काम भी साथ-साथ करें। काम आपस में बाँट लें, ताकि किसी एक पर ही सारा बोझ न पड़े। यदि मिलकर काम करो तो काम भारभूत नहीं बनता। काम करने में तब मजा भी आता है। स्वावलम्बन कर्मयोग की पहली प्रेरणा है। ___ एक चर्चित कहानी कहते हैं। किसी रास्ते में एक राहगीर अपने घोड़े पर गुजरा। उसे प्यास लगी तो वह पानी के कुएँ के पास पहुँचा। वहाँ बाल्टी भी पड़ी थी और उसे प्यास भी लगी थी, पर वह इधर-उधर ढूँढने लगा कि शायद कोई पानी पिलाने वाला मिल जाए ओर पानी निकाल कर उसे पिला दे। वह आदमी इस इंतजार में वहाँ बैठ गया। थोड़ी देर बाद एक दूसरा आदमी वहाँ आया। उसने भी देखा कि वहाँ पानी भी है, बाल्टी भी है। उसने बैठे हुए आदमी से कहा, 'भाई, थोड़ा पानी तो निकाल कर पिला दो।' उसने कहा, 'मैं तो तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था। मैं भला तुम्हें पानी कैसे पिला बेहतर जीवन के लिए, योग अपनाएं ९९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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