Book Title: Kaise Jiye Madhur Jivan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 55
________________ या नीति का अर्थ क्या है ? तो मैं कहूँगा आदमी एक अच्छा आदमी बन जाए, धर्म की बस इतनी सी अपेक्षा है। धर्म केवल इतना-सा चाहता है कि इंसान पूर्ण इंसान बने । ईश्वर जितना ऊपर उठना हर किसी के लिए सम्भव नहीं है, पर हम सौम्य और निर्दोष इंसान भी बन गए तो यह ईश्वरीय चेतना की ओर बढ़ना ही कहलाएगा। अच्छा होगा, हम दोषों को ढँकने का अंधापन न ढोएँ । अंधा वह नहीं है, जिसकी आँखें नहीं है। अंधा वह है जो अपने दोषों को ढँकता है। हम दोषों को समझें और उनसे मुक्त होने की पहल करें। यह भी याद रखें कि बदलने जैसी अगर कोई चीज है तो वह स्वभाव है। संस्कारित करने की कोई चीज है तो वह स्वभाव ही है। जीतने जैसी कोई चीज है तो वह स्वभाव ही है । अच्छा हो हम दीप जलाएँ, अंधेरे पर क्यों झल्लाएँ ? बेहतर होगा हम अपने स्वभाव को समझें, उसके परिवर्तन का पथ ढूँढें । उस पर चलने का संकल्प संजोएँ । स्वभाव की जीत ही जीवन की सबसे बड़ी आत्म-विजय है कहते हैं, एक संत नौका में विहार कर रहे थे । इस पार से उस पार जा रहे थे कि नौका में सवार कुछ मनचले युवकों ने उस संत के साथ छेड़खानी शुरू कर दी और छेड़खानी इस रूप में, कि संत तो बैठा है शांति से और युवक नदिया में से पानी हाथ में लेते हैं और ऊपर आसमान की तरफ उछालते हैं । संत पर पानी आकर गिरता है । कुछ युवकों को तो इतनी खुराफात सूझी कि बाल्टी भरकर पानी निकाला, आसमान की तरफ उछाला और सारा पानी आकर संत पर गिरा । एक आदमी जो अपने कान में खुजली कर रहा था, उसे यह खुराफात सूझी कि उसने अपना कान छोड़कर संत के कान की तरफ तीली बढ़ाई और लगा खुराफात करने। संत चौंका। वह दूसरे किनारे पर जाकर बैठ गया। युवकों ने डिस्को कैसे जिएँ मधुर जीवन ५० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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