Book Title: Kaise Jiye Madhur Jivan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 77
________________ बुरा जरूर हो जाएगा। आपने किसी को कहा, 'नालायक कहीं का!' होगा जरूर वह नालायक। आपका मूल्यांकन रहा है तभी तो आपने उसे नालायक कहा है वरना आप कहते थोड़े ही। पर एक और भी नालायक है जिसके नजरिये में दूसरे की नालायकी हावी हो रही है। एक तो वह नालायक है जो कि नालायकी कर रहा है और दूसरा वह नालायक है जो अपने मुँह से नालायक कह रहा है और तीसरा वह नालायक है जो तुम्हारी नालायकी को नालायकी समझ रहा है। कोई-न-कोई नालायकी होगी हमारे मन में, तभी तो हम किसी को नालायक कहते हैं, नालायक देखते हैं, नालायक मानते हैं। यह सब जीवन की नकारात्मकता है। ____ कोई किसी को गधा कहे तो यह उसकी मजबूरी होगी। मैं तो कहा करता हूँ कि गधा ही दूसरे को गधे के रूप में देखता है। गधे को सारे गधे ही नजर आते हैं। गधे को कोई हाथी, घोड़ा, खच्चर दिखाई नहीं देता। अब नालायक को दूसरा आदमी लायक भी कैसे दिखाई देगा? नालायक को नालायक ही मिलते हैं, घोड़े वाले को घोड़ेवाले ही मिलते हैं, हाथीवाले को हाथीवाले ही मिलते हैं। गरीब को गरीब मिलते हैं, अमीर को अमीर मिलते हैं। जिसका जैसा स्टेटस, उसको वैसी ही मिलती है सोहबत। __ क्या आपको याद है कि जब आप गुस्से में अपने बेटे को बकते हो तो क्या-क्या बोल बैठते हो? मैंने एक गुस्सैल व्यक्ति को अपने बेटे से यह कहते सुना, ‘साले! सूअर की औलाद!' उसकी गाली सुनकर मैं हँसा। मेरी हँसी देखकर वह चौंका। मैंने कहा, पता है अभी आपने क्या कहा?' वह झट से चिल्ला पड़ा, ‘कहा क्या, सूअर की औलाद कहा।' मेरा जवाब सुनकर वह झेंप गया। मैंने कहा, 'प्रिय, वह अगर सूअर की औलाद है, तो तुम क्या हुए?' सावधान! अपनी भाषा, अपनी सोच, अपने बर्ताव के प्रति सावधान रहें। हम अगर अपने विचार, अपनी सोच, अपने नजरिये ७२ कैसे जिएँ मधुर जीवन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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