Book Title: Kaise Jiye Madhur Jivan Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Jityasha FoundationPage 29
________________ किया करता है। महत्त्व इस बात का नहीं है कि हम मात्र अपने पूर्वजों पर गौरव करते रहें। मूल्य और महत्त्व इस बात का है कि हमारे पूर्वज भी हम पर गौरव कर सकें । जब तक व्यक्ति अपनी जीवन-शैली को, अपने जीवन की व्यवस्थाओं को बेहतर स्वरूप प्रदान नहीं करेगा, तब तक वह उन ऊँचाइयों का स्पर्श नहीं कर सकेगा, जिन्हें पाने की हर व्यक्ति की ख्वाहिश रहा करती है। अपने आप को व्यवस्थित करना स्वयं व्यक्ति के हाथ में है । जन्म देना प्रकृति के हाथ में होगा, और मृत्यु भी प्रकृति के हाथ में होगी, पर जीवन को जीने की व्यवस्था देना स्वयं मनुष्य के हाथ में है। खुद को व्यवस्थित करना अपने आप में एक बहुत बड़ी साधना है जबकि स्वयं को व्यवस्थाविहीन रखना एक बहुत बड़ी विराधना है । जीवन-व्यवस्था अपने आपमें अनुशासन का पालन है, वहीं व्यवस्थारहित ज़िंदगी महज भटकाव है। हर सफलता के पीछे खुद का व्यवस्थित रहना बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। विफलता का कारण स्वयं की दुर्व्यवस्था ही है । जागरूकता का नाम व्यवस्था है, वहीं लापरवाही का नाम दुर्व्यवस्था है । यह दुर्व्यवस्था ही विफलता का कारण है। व्यवस्थापूर्ण जिंदगी अपने आप में एक बहुत बड़ी क्रान्ति है; एक ऐसी क्रान्ति जो जीवन को एक बेशकीमती हीरा बनाती है और जिसकी चमक सारी दुनिया को प्रेरित, प्रभावित और आंदोलित करती है। जो व्यक्ति अपने जीवन को व्यवस्थित न कर पाया तो यह मानकर चलें कि वह अपने जीवन में अनुशासन न ला पाया है और न ही समाज व परिवार के बीच | किसी भी विद्यालय को बनाना, किसी भी चिकित्सालय या धर्मशाला को बनाना कठिन होते हुए भी आसान है, 1 जिएँ मधुर जीवन २४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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