Book Title: Kahavali Pratham Paricched Part 02
Author(s): Kalyankirtivijay
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 306
________________ [२८९] भणियं रईए - 'जुत्तं, मम गमणं गुरुजणस्स पासंमि । किं तु मम गमणोवाओ, न विज्जइ ता नरिंदभयाओं ॥ पट्टविया सुहकता, नामेणमिमीए अप्पणो धावी । भणिऊण सव्वमेयं, वीरसुभाए समं नवरं ॥ गंतुं च ताहि सिटुं, सरस्सइपवत्तिणीऐं तं सव्वं । आया सा वि कमेणं, परोवयारंमि रसिग ति ॥ दटुं च भगवई सा-ऽऽसणे रईए निवेसिया विहिणा । वंदित्तु सबहुमाणं, पुट्ठा धम्मोसहिपओगं ॥ भणिया सरस्सईए, रई वि सिद्धतविहिसमाउत्तं । 'धम्मोसहिप्पओगं, सुण सुयणु ! गुरुवईट्ठति ॥ 'पंचनमोक्कारो खलु, विहिदाणं सत्तिओ अहिंसाई । इंदिय-कसायविजओ, एसो धम्मोसहिपओगो' । एवं च सदिटुंतं, सोउं सुसाविया रई जाया । धम्मोसहिप्पओगं, सरस्सईएँ जाइ तो वसहि ॥ तो भद्दबाहुसूरिमि विहरिए अन्नत्थ; संपत्तो । राया; सव्वं कहियं, देवीए, सावओ विहिओ ॥ तत्तो कमेण जाया, चंदो भहो य तो रईपुत्ता । संवड्डिया य विहिया, भूयाणंदेण ते कउला ॥ कहमियमण्णं भूयाणंदपरिव्वायओ तहिं पत्तो । 'विज्ञाए मे फुट्टइ, पोर्टे'ति पयासणनिमित्तं ॥ कंचणपट्टसुबंधिय-पोट्टो तह 'नत्थि जंबुदीवे वि । तुल्लो ममऽण्णमाणि'त्ति पयडणत्थं च धारेंतो ॥ जंबूतरुयरसाहं, सीसोवरि तह 'जगं निरवसेसं । मुक्खजणकयंधारं', ति खावणत्थं बलंतीहिं ॥ [दीवसिहाहिं] विहरइ, तह पन्नवई - 'नत्थि परलोगो । ता दिट्ठसुहं माणेह, मण्णह परमत्थमत्थो'त्ति ॥छ।। अवि य - जस्सऽत्था तस्स मित्ताणि, [जस्सऽत्था तस्स गउरवं] । जस्सऽत्था सो नरो लोए, जस्सऽत्था सो य पंडिओ ॥ न य तस्सुत्तरदाई, को वि तहिं तेण लद्धपसरेण । भावित्तु चंद-भद्दा, कुजुत्तियाहिं कया कउला ॥ देव-गुरुभत्तिरहिया, पर[धण]सत्ता य विसयपसत्ता । परमत्थमत्थमेव हि, मण्णंताऽतिति दियहाई ॥ पत्तो य कयाइ पुणो, विहरतो भद्दबाहसूरीसो । पूजित्तु राय-देवीहि य पणमिओ साहए धम्मं ॥

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