Book Title: Kahavali Pratham Paricched Part 02
Author(s): Kalyankirtivijay
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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[२८८]
देवी वि परमपूर्य, देव-गुरूणं कराविउं कुणइ । विहिणा तमोसहिं तो, पउणीहूया य सहस त्ति ॥ सद्दाविया रईए, बीयदियहमि गउरवेण पुणो । वीरसुभा भणिया तह, वयणमिणं भणिइकुसलाए ॥ 'धन्नाऽहं जीएँ महं, कहं वि जाओ तुमाए संबंधो । धम्मियजणसंजोगो, न होइ जेणऽप्पपुण्णाणं ॥ तेण पओगेण महं, ओसहिसंजोगओ दुयं चेव । नटुं खलु तं दुक्खं, तमो व्व ससि-सूरजोगेण ॥ हा ! किं बहुणा ? अज्जे !, मज्झ तुमं चेव वट्टसि गुरु त्ति धम्मोसहिप्पओगेण कुणसु ताऽणुग्गहमियाणि' ॥ सोऊण इमं वयणं, हरिसवसुल्लसियपयडपुलयाए । भणियं वीरसुभाए, - 'धण्णा तं कोऽत्थ संदेहो ?॥ धम्मोसहिप्पओगे, उ जं तुम्हं अत्थि सुयणु ! इच्छ त्ति । भवपायवच्छेयकरी, जुत्त च्चिय; किंतु मम काउं ॥ धम्मोसहिप्पओगे, अहिगारो नत्थि गुरुजणे संते । न य तंमि परिण्णाणं, पडिपुण्णं सुरधम्म(?)ऽत्थि मम ॥ तह दोण्ह वि होयऽविही, सच्छंदाणऽम्हमिइ कुणंताणं । ता गुरुजणेण जोगं, करेमि तेऽहं भवंतकरं' ॥ भणियं रईएँ - 'जाणसि जं किच्चं तं तुम चिय बहुं ति । ता तह करेहि जायइ, जह मे धम्मोसहिपओगो' ॥ भणियं वीरसुभाए, - 'धण्णा धम्मत्थिणी य तं सुयणु ! । सव्वेसि चिय जोग्गा, भावाण जिणिदपणीयाणं ॥ एत्थं च पवयणगुरू, भयवं सुगिहीयनामधेओऽत्थि । धम्मो व्व मुत्तिमंतो, मुणिवसभो भद्दबाहु त्ति ॥ तस्सेव धम्मभगिणी, वीरजिणविबोहिए कुले जाया । भट्टामरगुरुपत्ती, सरस्सई नाम अज्जऽत्थि ॥ जा दट्ठ मच्छहणणं, निवपुरओ भाइहंडसंगहणे । साहइ निवपुच्छाए, अमरगुरुसुमिणयपरिणीया ॥ निक्खंता-कयपुण्णा, सोऊणं मुणिचरियमच्छेरं । संजायचरणभावा, सदुज्जयविहारिणी चेव' ॥ सोऊण सव्वमेवं, विम्हयपफुल्ललोयणजुयाए । भणियं रईए - 'कह सा, अज्जा अम्हेहिं दट्ठव्वा?' ॥ भणियं वीरसुभाए, – 'सा खलु परोवयाररसिय त्ति । एही इमा इहं चिय, मुणिऊण तुज्झ वुत्तंतं' ॥
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