Book Title: Jyotirvignan Shabda Kosh
Author(s): Surkant Jha
Publisher: Chaukhambha Krishnadas Academy

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Page 561
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४९ पृष्ठाङ्काः १३९ २०४ १९९ वीणावाद १५ २२२ ३०, ४३ १९१ १९१ १९१ १९१ १९१ वीतिन् ३८ | १९१ अकारादिशब्दानुक्रमणिका अकारादिशब्दाः पृष्ठाङ्काः | अकारादिशब्दाः वीणा २५, २५ | वृक्ष वीणाधर २५ | वृक्षवत् २५ | वृक्षवाटिका वीणावैणिक २५ | वृक्षवाटी वीत २५१, १४८ / वृक्षसमम् वीतबल ३१ | वृजिन वीतमल ३० । 'वृणते' वीतराग २०६ वृणाते वीनि ३८ / वृणीत | वृणीते वीनिहोत्र ३३, २३९ / वृणीयाताम् वीथि | वृणीरन् वीथी २५३ | ‘वृणुत' वीया २३८ | वृणुयात् २३० | वृणुयाताम् वीरतर वृणुयुः वीरभद्र २३० वृणोति २२१ वृण्वन्ति वीरासन २१४ | | वृत्त वीरुध् (वृक्षाङ्गविशेष:) वृतकाल वीर्य ३०, १४०, १४२, ५६ वृत्तमध्य वीर्यप्रधान वृत्ताकारपथ वीर्यभाज् | वृत्ति वृत्र=(असुरविशेष:) वीर्यवत्ता ३१ / वृत्रनिषूदन वीर्यवन्मुखिन् वृत्रहन् वीर्यवाहिन् वृत्रारि वीर्योज्झित वृत्रारिपूज्य वीर्योपन्न वृत्रारिवन्ध वृथा (मुधा) वृकोदर २१६ | वृद्ध वीर १९१ १९१ १९१ १९१ १९१ १९१ ९७, २११ १८ १०१ वीरशङ्कु ९७ वीर्यवत् ५४ २४७ २१७ २१७ २१७ २१७ ४८ ३० ३१ ४८ ५६, १२९ For Private and Personal Use Only

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