Book Title: Jyotirvignan Shabda Kosh
Author(s): Surkant Jha
Publisher: Chaukhambha Krishnadas Academy

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Page 584
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पृष्ठाङ्काः १७३ २४५ ९० २४७ १२२ ९३ ९३ ९० ९३ १४७ २४३ २५० १४० ५७२ ज्योतिर्विज्ञानशब्दकोषः अकारादिशब्दाः पृष्ठाङ्काः । अकारादिशब्दाः संयोगिन् १४७ | संवर्द्धयेयुः संयोजन संवर्द्धित: संयोजनीय संवह संयोजित | संवास संयोजितव्य ९१ | संवित् संयोज्य ९०, ९१ | संविधाय संराव २५९ संविभज्य संलग्न २५३, १४६ | संविहीन संलप्य २४९ संविहत संलभ्य | संविहत्य संलय १३९ संवीक्षित लंवत् | संवृत संवत्सर १६, १७, २५ | | संवेद्य संवत्सरगण ९७ संवेश संवत्सरपथ=(वत्सरमार्गः) संवेशन संवत्सरमुखी=(ज्येष्ठशुक्लदशमी, दशहरा संवत्सरान्तिमपक्ष १३७ / संशोधन संवद्=(वर्षम्), |संशोधनीय संवर २१७ | संशोधित संवरविभु ८ संशोधितव्य संवर्त १८, २१२, २३८, ३२ |संशोध्य संवर्तक २२५, २४० | संशोभित संवर्तकाह्वय २२५ / संश्रय संवर्तकिन् २२५ संश्रित संवत्तपूर्वज संश्रुत संवर्द्धमान संश्लिष्ट 'संवर्द्धयतः' १७३ संसक्त संवर्द्धयति १७३ संसद् संवर्द्धयन्ति १७३ संसर्ग संवर्द्धयेत् १७३ संसर्गिन् संवर्द्धयेताम् १७३ | संसर्प १४० संशुद्ध ९० ० ० ० ९० ९० १२९ १२५, १४६ १४६ ४८ २४४ १४६ २५२, २५३, १४६ १९८ १५६, १४७ १४७ For Private and Personal Use Only

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