Book Title: Jodhpur Hastlikhit Granthoka Suchipatra Vol 01
Author(s): Seva Mandir Ravti
Publisher: Seva Mandir Ravti

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपरोक्त स्तम्भों के अतिरिक्त सरकारी निर्धारित प्रपत्र द्वारा चार अन्य स्तम्भों की अपेक्षा की निम्न प्रकार है: गई है (1) प्रति किस पर लिखी गई है :- कागज, ताड़पत्र, भोजपत्र, कपड़ा आदि । (2) प्रति किस लिपि में लिखी गई है :- देवनागरी, मोड़ी, अरबी, गुजराती। (3) प्रति जीर्ण है या ठीक है या अपठनीय है इत्यादि सूचना । (4) ग्रन्थ अद्यावधि मुद्रित हो चुका है अथवा अाज तक अमुद्रित ही है। परन्तु इस सूची-पत्र में इन चार स्तम्भों को नहीं रखा है और इसका स्पष्टीकरण निम्न प्रकार लगभग सारी की सारी प्रतियां कागज पर हैं और देवनागरी लिपि (अक्षर अधिकतर जैन मोड़ दिये हुए) में लिखी हुई है अत: अलग स्तम्भ बनाकर सर्वत्र ,, का निशान लगाने में कुछ सार नहीं प्रतीत होता। इसी प्रकार इस सूची-पत्र में उल्लेखित प्रायः सभी प्रतियों की अवस्था ठीक है, पठनीय है अतः उसका भी स्वतन्त्र स्तम्भ बनाना उपयुक्त नहीं लगा। हाँ, कदाचित यदि कोई प्रति कागज पर नहीं है, अथवा देवनागरी लिपि में नहीं लिखी हई है अथवा जीर्ण व अपठनीय है तो वैसा उल्लेख अवश्य "विशेष ज्ञातव्य" स्तम्भ में कर दिया गया है। विशेष उल्लेख के अभाव में पाठक झ लें कि प्रति देवनागरी लिपि में कागज पर लिखी हुई है और उसकी दशा ठीक है। तथा ग्रन्थों के अद्यावधि मुद्रित या अमुद्रित होने की जानकारी का संकलन करने में हम असमर्थ रहे हैं। अतः अपूर्ण किंवा असत्य जानकारी देने की अपेक्षा मौन रहना ही श्रेयस्कर समझा है। इसका पता शोधार्थी या प्रकाशक हमारी अपेक्षा प्रासानी सेलगा सकते हैं। तथा इस बारे में एक और निवेदन है। अतिरिक्त परिशिष्ट तथा और कई स्तम्भ सूची-पत्र में जोड़े जा सकते हैं और उससे शोधार्थियों को अवश्य कुछ सुविधा हो जाती है । परन्तु साथ में हमें यह भलना चाहिये कि सची-पत्र की अपनी मर्यादायें होती हैं और सूची-पत्र बनाने वाले की योग्यता सीमित नहीं होती। ग्रन्थ के बारे में प्रावश्यक सूचना सम्मेत सूची बना देना पर्याप्त है, बाकी सब ढेर सारी सामग्री पचाकर शोधार्थी को देने से उसमें प्रमाद पनपता है, अन्वेषण की जिज्ञासा कुण्ठित हो जाती है जो ज्ञान के विकास के लिये घातक सिद्ध होती है। सूची-पत्र कितना भी विस्तृत हो, शोधार्थी के लिये तो असल प्रति या फोटो फिल्म प्रतिबिम्ब देखने के अलावा गत्यन्तर नहीं है, यह हमारा निश्चय मत है अन्यथा शोध-कार्य के प्रति न्याय नहीं होगा। केवल सूची बनाने वाले पर ही अधिक भार लादने से यह श्रम-साध्य कार्य और इतना गुरुतर हो जावेगा कि साधारण मनुष्य इस को हाथ में लेने से ही घबरा जावेगा - उसका उत्साह मारा जावेगा। सूची-पत्र सूचना है - जांच के लिये आमन्त्रण है - निर्णय का आधार नहीं । For Private and Personal Use Only

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