Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan
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Xarxpalassekas,sexas,cenas/ceas,Celes,8%D8, पवित्र दिन बादशाही ठाठ से पंच परमेष्ठी के तृतीयपद आचार्यपद पर हीर हर्ष उपाध्याय की प्रतिष्ठा की । तबसे सारे देश में आचार्य श्री विजय हीरसूरिजी के नामसे मशहुर बनें । ____ कालराजा दिन-रात रूप दंडसे मनुष्य-आयुष्य का टुकडा ले जाता है | माँ कहती है, 'मेरा लडका बडा हुआ मगर आयुष्यमें तो कम हुआ ।' ऐसे विजयदानसूरि महाराजा आयुष्य पूर्ण होनेसे ससमाधि वि.सं. १६२२ वैशाख सुद १२ को वडावली में स्वर्गधाम सिधायें । तब सारे गच्छका भार विजय हीरसूरीश्वरजी महाराज के शिर पर आ गया | श्री संधने पूज्य श्री को गच्छ नायक-भट्टारक की पदवी का बहुमानकर अपना कर्तव्य का सच्चा पालन किया।
-: विपत्ति की वर्षा :
सोने की ही कसोटी होती है, पीतल की नहीं ।
एक बार विजय हीरसूरीश्वरजी महाराज अपने परिवार के साथ खंभात नगरमें विराजीत थे । तब रत्नपाल नामक एक श्रावक आया । उसने कहा, गुरूवर ! मेरा लडका रामजी तीन सालका है । वह बहुत बीमार रहता है । आपके प्रभाव से जो लडका अच्छा हो जायेगा, तब आपका शिष्य बना दूंगा । अचानक आपके प्रभावसे रामजी दिन व दिन अच्छे होने लगे और इस बात को आठ साल हो गये । पू. हीरसूरीश्वरजी विहार करते करते पुनः खंभात पधारे । पूज्यश्रीने रत्नपाल को अपना वचन पालन करने को कहा । तब रत्नपाल सूरीश्वरजी को कहने लगा, आपको मैने ऐसा कब कहा था, ? यूं कहकर बदल गया । इतना हि नही बल्कि उसने अपने रिस्तेदारो को बुलाया
और कहा, आचार्य हीरसूरीश्वरजी मेरे लडके को उठा ले जाते है । तब सुबा सिताबखां को कहा । सुबा सिताबखांने हीरसूरि को जेलमें डालने के लिये आज्ञा दे दी।
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