Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan
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यह देखकर बादशाह अत्यंत क्रोधवश होकर कहने लगा, मेरा दर्द मिट गया इस खुशाली की दिवाली में दुसरें जीवों के दुःखकी होली होती है । अतः सब गायोंको छोड़ दो । तत्काल उमरावों ने सारी गायों को छोड़ दी ।
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एक समय बादशाह काश्मीर गये थे । भानुचंद्रजी भी साथ में थे । बीरबल ने सम्राट को कहा, सब पदार्थ सूर्य से उत्पन्न होते है । अतः आप सूर्य की उपासना करो । बादशाह के अनुरोध से सूर्य का सहस्त्रनाम भानुचन्द्रजीनें बना कर दिया । बादशाह हर रविवार को भानुचन्द्रजी को स्वर्ण के रत्नजडित सिंहासन पर बैठा कर 'सूर्यसहस्त्रनामाध्यापक' ग्रंथ सुनते थे ।
बादशाह के पुत्र रोखुजी की पुत्रीने मूलनक्षत्रमें जन्म लिया । ज्योतिषि कहने लगा, यह लडकी जो जिंदा रहेगी तो बहुत उत्पात होगा । अतः उनको जलप्रवाह में बहा दो ।
शेखने भानुचंद्रजी की सलाह माँगी । भानुचन्द्रजीने बाल - हत्या का महापाप दिखाकर ग्रह की शान्ति अर्थे अष्टोतरी शान्ति स्नात्र पढाने का विधान बताया । तब शेखुजीनें एक लाख रूपये व्यय कर अष्टोत्तरी शान्तिस्नात्र ठाठ से पढाई । इस दिन सारे संधने आयंबील की तपस्या की थी ।
इस पवित्र मंगलिक कार्य से बादशाह और रोखुजीका विघ्न चला गया और जैन शासन की बडी प्रभावना हुई ।
उस समय भानुचंद्रजी को उपाध्यायपद देने हेतु बादशाहनें सूरिजी पर विज्ञप्ति - पत्र लिखा। उन्होंने मंत्रीत वासक्षेप भेजा । भानुचंद्रजी को बडे समारोह के साथ वाचक पदसे अलंकृत किया गया । तब अबुलफजलने पच्चीस घोडा और दस हजार रूपये का दान दिया और संघने भी बहुत दान - सरिता बहाई ।
भानुचंद्रजी जैसे विद्वान थे वैसे उनके शिष्य सिद्धिचन्द्र भी विद्वान और शतावधानी थे । बादशाहने उनके चमत्कार से उन्हें खुशफरम' की
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