Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan

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Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org CON Do यह देखकर बादशाह अत्यंत क्रोधवश होकर कहने लगा, मेरा दर्द मिट गया इस खुशाली की दिवाली में दुसरें जीवों के दुःखकी होली होती है । अतः सब गायोंको छोड़ दो । तत्काल उमरावों ने सारी गायों को छोड़ दी । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक समय बादशाह काश्मीर गये थे । भानुचंद्रजी भी साथ में थे । बीरबल ने सम्राट को कहा, सब पदार्थ सूर्य से उत्पन्न होते है । अतः आप सूर्य की उपासना करो । बादशाह के अनुरोध से सूर्य का सहस्त्रनाम भानुचन्द्रजीनें बना कर दिया । बादशाह हर रविवार को भानुचन्द्रजी को स्वर्ण के रत्नजडित सिंहासन पर बैठा कर 'सूर्यसहस्त्रनामाध्यापक' ग्रंथ सुनते थे । बादशाह के पुत्र रोखुजी की पुत्रीने मूलनक्षत्रमें जन्म लिया । ज्योतिषि कहने लगा, यह लडकी जो जिंदा रहेगी तो बहुत उत्पात होगा । अतः उनको जलप्रवाह में बहा दो । शेखने भानुचंद्रजी की सलाह माँगी । भानुचन्द्रजीने बाल - हत्या का महापाप दिखाकर ग्रह की शान्ति अर्थे अष्टोतरी शान्ति स्नात्र पढाने का विधान बताया । तब शेखुजीनें एक लाख रूपये व्यय कर अष्टोत्तरी शान्तिस्नात्र ठाठ से पढाई । इस दिन सारे संधने आयंबील की तपस्या की थी । इस पवित्र मंगलिक कार्य से बादशाह और रोखुजीका विघ्न चला गया और जैन शासन की बडी प्रभावना हुई । उस समय भानुचंद्रजी को उपाध्यायपद देने हेतु बादशाहनें सूरिजी पर विज्ञप्ति - पत्र लिखा। उन्होंने मंत्रीत वासक्षेप भेजा । भानुचंद्रजी को बडे समारोह के साथ वाचक पदसे अलंकृत किया गया । तब अबुलफजलने पच्चीस घोडा और दस हजार रूपये का दान दिया और संघने भी बहुत दान - सरिता बहाई । भानुचंद्रजी जैसे विद्वान थे वैसे उनके शिष्य सिद्धिचन्द्र भी विद्वान और शतावधानी थे । बादशाहने उनके चमत्कार से उन्हें खुशफरम' की I DONDOKDONGO CONGOKO NGOMADONG 21 For Private and Personal Use Only

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