Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan
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एक बार समय देखकर सूरिजीने बादशाह को कहा, मेरे को गुजरात अवश्य जाना ही पडेगा । तब बादशाहने कहा, आप इधर स्थिरता किजीये । आपके सुधा-सदृश दर्शनसे मेरेको बहुत लाभ हुआ है । मगर सूरिजी का जाने का दृढ निश्चय होने सें बादशाह ने अनुमति दी और जब तक इधर विजयसेन सूरिजी न पधारे वहाँ तक आपके एक विद्वान मुनिवर को इधर रखकर जावे इतनी मेरी आपसे प्रार्थना है ।
सूरिजीने उपा. शान्तिचंद्रजीको रोककर दिल्लीसे गुजरात प्रति प्रस्थान
-: शिष्यों
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-2038
अकबरने अपनी धर्मसभामें जैसे विजयहीरसूरिजीका नाम पहली श्रेणीमें रखा था । ऐसे पाँचवीं श्रेणीमें विजनसेनसूरि और भानुचंद्गणि दोनों का नाम रखा था । (आइन. इ. अकबरी ग्रंथ:- विजयसेनसूर और भानचंद )
उपाध्याय शान्तिचन्द्रजी महान विद्वान और १०८ अवधान करने की अप्रतिमशक्तिवाले थे । उन्होंने राजा महाराजाओंको प्रभावसम्पन्न उपदेश सुनाकर बहुत सम्मान प्राप्त किया था । और अनेक विद्वानोंके साथ वादविवाद कर विजय - वरमाला के वर बन चूके थे । उन्होंने बादशाह को अहिंसा भक्तप्रेमी बनानेके लिये २२८ श्लोक प्रमाण 'कृपारसकोष' नामक ग्रंथ बनाया था । वो ग्रंथ बादशाह को रोजाना सुनाते थे । जिससे फलस्वरूप बादशाह का जन्मका महिना, हर रविवार, हर संक्रान्ति, और नवरोजाके दिनों में कोई भी व्यक्ति जीवहिंसा न करे ऐसा फर्मान बादशाह के पास निकाला था ।
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एक दिन बादशाह लाहोर में था । शान्तिचन्द्रजी भी वहां थे । आप इदके अगले दिन बादशाह के पास चले गये । और कहने लगे, मेरे को कल जाने की भावना है ।
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