Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Kasselas,ceram,pelas emas/ellas, kas, kuong प्रसंग - ४ बादशाह बिरबल और सूरिजी :- वि.सं. १६३९ ज्येष्ठवदि १३ को फतेपुर सीकरीमें आचार्य हीरविजयसूरिजीके दर्शन करके अकबर धन्य बन गया । पारस को छूने से लोहा सोना बनता है वैसे हिंसक जीवदया प्रेमी बना । सूरिजीने आठ दिन की अमारी की इच्छा व्यक्त की बादशाहने १२ दिन का अमारी का (अहिंसाका) फरमान लिखकर दे दिया । सूरिजीको जगद्गुरूकी पदवी प्रदान की । एक वक्त किसी मुनिको देख अकबरने कहाँ आप लोग तसबी-माला यु कयों फिराते हो, हम युं फिराते है इस में सच्चा कौन है ? दरबारियों के कान सतर्क हो गए किसको सच्चा बताते है ? सूरिजी:- देखो अपने जीवन में मुख्य दो कार्य करने होते है दोष को बहार निकालना, गुण को भीतर लाना. यूं देखो तो दोनो एक ही बात है. दोष हटा दो गुण आयेंगे, गुण जमा दो दोष हट जायेंगे | आपके इसलाम धर्म में दोष को हटाने का महत्व है अतः आप हृदयसे बहारकी और घुमाते है, हमारे यहाँ गुणस्थापन का महत्त्व है बहार से हृदयकी और घुमाते है, अकबर प्रत्युत्तर सुनकर आनंद विभोर हो उठा । बिरबलने सूरिजी को प्रश्न पूछा, शंकर सगुण या निर्गुण ? सूरिजी ने कहाँ सगुण, बिरबल:- कैसे ? मैं तो निर्गुण मानता हूँ, सुरिजी:- इश्वर ज्ञानी या अज्ञानी ? बिरबल:- ज्ञानी, सूरिजी :- ज्ञान गुण या अवगुण, बिरबल :- गुण, सूरिजी :- तो शंकर सगुण कहाँ जाता है ना ? बिरबलने अपने कान पकड लिए । Soalangakao,mayaralanmalas/samassema9,9% 401 For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83