Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan
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प्रसंग - ५
पूज्य हीरसूरीश्वरजी महाराज जितेन्द्रिय भी थे । आज जगतमें पाया जाता है कि सारे झगडे का मूल जबान है. इसके दो कार्य है स्वाद और वाद खाने से अच्छा और बोलने में कडुआ जबकि इतने बडे आचार्य होने के बावजूद स्वाद विजेता थे । एक बार गोचरी में खीचडी आई वापरने के पश्चात् बहन कहने आई महाराज आज आप श्री खीचडी वहोरके गये हो वह वापरी तो नहीं है न ? उसमें गलती से दो तीन जनोंने नमक डाल दिया है. अतः वह ज्यादा खारी होने से खाने जैसी नहीं है । महात्माने सूरिजी को पूछा. आप वापर गये ? हा, वह तो खारी थी ! सूरिजी ने कहाँ मैनें तो बिना स्वाद के उतार ली । ऐसे थे रसनेन्द्रिय विजेता सूरिदेवा ! हीरसूरिश्वरजी महाराजा... SABERDSHEBSKESHESADGHEBSRIDGEBRADGMBERBSFEBSAIDSMEBSAID
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