Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan

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Page 57
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir axelao,bekapcsekarxan, Class प्रसंग -६ 4388 युद्ध की छावनी आमने सामने मंडराई थी । बादशाह अकबर के हृदयमें हीरसूरीजीने करूणा गुणको प्रतिष्ठित कर दीया था । एक दिन युद्ध पूर्ण हुआ, बादशाह ने विजयश्री का वरण किया युद्ध का सामान तंबु आदि समेटकर उंटो पर डालने का प्रारंभ किया. एक तंबुका सहारा लेकर कबूतरने घोंसला बांधा था । प्रसूती भी हो गई थी । अंडे की रक्षा मादा कर रही थी. बादशाह की प्राणी-करूणा से नोकर अच्छी तरह अवगत था, अतः उस संबंधित सारी हकीकत बादशाह को बताई अब क्या करना ? मार्गदर्शन मांगा कुछ विचारकर बादशाह ने कहाँ वह तंबु यही रहने दो । जब अंडे का सेवन हो जाये बच्चा बहार आ जाए उडने लगे तब तक इस तंबु को सिमटना नहीं है । नोकरने मनोमन बादशाह की करूणा-भावनाकी खूब खूब सराहना करी. CELEBRARESHESSPARSHASSPOSTEDPRESHESEPTOSSARESHESSIOSISODE 42 For Private and Personal Use Only

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