Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan
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सूरदेव चन्द्र आदि देवों ने, गुरू का मान बढाया || ज || १० || विरूद्ध जहांगीर महातपा यूं सलीम शाह से पाया । राणा जगतसिंह से भी दया का, चार हुकम लिखाया || ज || ११ ।। वाचक विनय ने लोक प्रकाश से, सच्चा पंथ बताया । यशोविजयजी वाचक गुरू के ज्ञान का पार न पाया || ज || १२ ॥ खरतर पति जिनचन्द्र सूरिने, जगद्गुरू का यश गाया । फरमान सप्ताह की अहिंसा का अकबर शाह सवाया ।। ज || १३ ।। गुरू के नाम से पावे धन में सुत, यश-सौभाग्य सवाया ।। चारित्र दर्शन गुरू चरणों में भाव नैवेध धराया ।। ज || १४ ॥
काव्यम् - हिंसादि
-4388मंत्र - ॐ श्री नैवेध समर्पयामि स्वाहा ।। ७ ।।
अष्टमी फल पूजा
(दोहा) सोलसो बावन भादों में, सुदी ग्यारस को रात । गुरूजी स्वर्ग में जा बसे, उना में प्रख्यात ।। १ ।। अग्निदाह के स्थान में, फले बांझ भी आम | दिखावे गी मुकुट छोड, अकबर अपने धाम ।। २ ।। अकबर से पाकर जमीन, लाडको करे वहां स्तूप । जो परतिख परचा पूरे, नमें देव नर भूप ॥ ३ ॥ आबू पाटण स्थंभना राजनगर जयकार | सूरत हैद्राबाद में, बने श्री हीर विहार ॥ ४ ॥ आगरा महुवा मालपुरा पटणा सांगा नेर । नमु प्रतिमा स्तूप पादूका, जयपुर आदी आदि शहेर || ५ ।। ___(ढाल - ८) (तर्ज-सरोदा कहां भूल आये)
आवो भाई आवो, गुरू के गुण गाओ || टेर ॥ देवी कहे देवेन्द्र सूरि के, चरण कमल में जाओ ।।
बढती उनके गच्छ की होगी, कुमत में मत जाओ ।। गु. || १ || 3,30%283%90%28,000%20%90%D9,90% 9,90% 9exa9.coox
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