Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan

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Page 73
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %2B,Xarcuta,ceka9.c9e%22,%,3x29, 0 23,C3 पद्यावती कहे तिलक सुरि के, शिष्य को स्तोभ पढाओ । प्रतिदिन तपगच्छ बढता रहेगा, प्रभू सूरि ! मत घबराओ ।। २ ।। मणिभद्र कहे दान सूरि को, विजय दान वरसावो । कुशल करूंगा विजय तपा का, विजय ध्वज फरकावो || ३ ।। ऐसे गच्छ में जगद् गुरू, श्री हीर सूरि को गावो । वर्ष इक्कीस हजार चलेगा, वीर शासन मन लावो ।। ४ ।। देश प्रदेशों में कयों दोडो, गुरू चरणों में जावो । संग्राम सोनी पेथड सम ही, लक्ष्मी इज्जत पावो ॥ ५ ॥ जगद्गुरू के चरण कमल में, फल पूजा फल पावो । चारित्र दर्शन ज्ञान न्याय से, जय जय नाथ गजावो ॥ ६ ।। काव्यम् - हिंसादि मंत्र - श्रीफल समर्पयामि स्वाहा ।। ८ ।। कलशः (राग बढस - अब तो पार भये हम साधो) आज तो जगद् गुरू गुण गाया, आनंद मंगल हर्ष सवाया वीर जगतगुरू पाट परम्पर, हुए सूरि गणी मुनिराया हुए बुद्धि विजय गणि, जिनने संवेगरंगका कलश चढाया आपके आदिम पट्ट प्रभाकर, मुक्ति विजय गणि शासन राया आपके पट्ट में विजय कमल सूरि, स्थविर विजय विनयजी गवाया आपके शिष्य शासन दीपक, श्री चारित्र विजय गुरू राया आदिम चैन रारू कुल स्थापक, जिनके यश का पार न पाया, आपके सेवक दर्शन ज्ञानी, न्याय ने जयपुर में गुण गाया, संवत उन्नीसौ सत्ताणु; जगद् गुरु का दिन मनाया, तपगच्छ मन्दिर में जग गुरू के चरण कमल सबको सुखदाया सेवे भंडारी कोचरजी, चोरडिया पालरेचा सुहाया म्हेता छाड वेद संचेती ढड्ढा गोलेच्छा सुखपाया ढौरगोहेलका बम छजलानी, नौलखी सिंधी व खीसरा भाया Selas,sexarcoalas,senas, coexas,cekas,beman,maka 58 For Private and Personal Use Only

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