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जगद्गुरु विजय हीरसूरीश्वरजी
वरजी महाराज
आचार्य विजय
con
४१८ वी पुण्यतिथि के शुभ अवसर पर
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।। कोबातीर्थमंडन श्री महावीरस्वामिने नमः ।। ।। अनंतलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामिने नमः ।।
।। गणधर भगवंत श्री सुधर्मास्वामिने नमः ।। ।। योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।। ।। चारित्रचूडामणि आचार्य श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।।
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर (जैन व प्राच्यविद्या शोधसंस्थान एवं ग्रंथालय)
पुनितप्रेरणा व आशीर्वाद राष्ट्रसंत श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा.
जैन मुद्रित ग्रंथ स्केनिंग प्रकल्प
ग्रंथांक: १३७१
अन आराधना
श्री महान
कोबा.
5
अपतं
विद्या
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र
शहर शाखा
आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-३८२००७ (गुजरात) (079)23276252, 23276204 फेक्स : 23276249 Websiet : www.kobatirth.org Email : Kendra@kobatirth.org
आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर त्रण बंगला, टोलकनगर हॉटल हेरीटेज़ की गली में पालडी, अहमदाबाद - ३८०००७ (079) 26582355
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16 जैन शासन के गगन में चन्द्र समान
___आचार्य हीरसूरीश्वरजी म. सा.
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slagsboks seksas saskskskskskskskole
विभुरिश्वर जी
हैदराबाद में विराजमान श्री जगद्गुरु हीरसूरीश्वरजी లేస్ లెస్ లెస్ టెన్స్ లెస్ టెన్ టెస్టు లెను అని అని అనుకుని
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55650 l oose skolskskskskskskskskskskskskskseskskolaske
Primar 1. 30
B
eeft at FATISTHIT AT TIPS Treat ON భవన న న న న న న న న న న న న న న న న న న
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देवानुप्रिय श्री सुद्धीलालजी बागरेचा
देवानुप्रिय श्रीमती पानीदवी बागरेचा
Revolutionsing Cable Making
A Product of an IS/ISO 9001 Company
Cung Nakoda
WIRES & CABLES
MOHANLAL JAIN SHREE VIKRAM ELECTRICALS #4-1-536, Troop Bazar, Hyderabad - 50001 Branch #5-2-126 to 133, Jambagh, Hyd-95. Tel. 040 24658747, 24744314 R: 23232093
Tel. 040 24745464, 24605145 RAMESH KUMAR JAIN ISHWAR WIRE PRODUCTS
NAKODA CABLES PVT. LTD. FIA
A30, Jhilmil Industrail Area, Shahdara, Delhi - 110095.
Tel. 011 22117739 (R): 011 43053583
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Late Sri Dhingarmalji Srisrimal
Smi. Soni Devi Srisrimal
HR & UAE Priyanka Priyanka
Steel House
Home Applianc
15-8-528/1. Balaji Market, Feelkhana
5-5-813, Hindinagar Hyderabad - 500012
Goshamahal, Hyderabad-500012 Tel : 040-24740504, 66770504
Tel: 040-24730504 Resi : 5-3-799, 3rd Floor, Soni Niketan, Near Topkhana Masjid
Hyderabad - 500 012. Tel : 24736637
Dilip Srisrimal : 9849424593, Vikram Srisrimal : 9949887042 Vikas Srisrimal : 9160552575, Vipul Srisrimal : 9703440896
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स्व. श्री मदरुपचंदजी बागरेचा
श्रीमती शांतादेवी बागरेचा
भवरलाल बागरेचा श्रीमती अरुणादेवी बागरेचा
Sext to Salem
VLESS STEEL UTES
Priya Steel House
'15-8-111/B, FEELKHANA, HYDERABAD-12 (AP)
Tel : 24617790, 24604502 Cell : 9849162099
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12
i smesed avant es
श्री ओगडचंदजी भोजाणी
श्रीमती गिगिदेवी भोजाणी
Ajitnach
group
Ajičnach
Ajitnach
GENERAL STORE
TEXTILES
Muaj Raj Bhojant
Doulat Raj Bhojani
15-8-12, Siddiamber Bozar, Hyderabad-500012
Tel: 24613711, 24744976 Cell: 9440354590
15-8-510, Feelkhana, Hyderabad-500 012
Tel: 24744578 Cell: 9849021498
Ajitnach
Ajitnach
STEEL HOUSE
AGENCIES
Prakash Bhojani
Anrat Raj Bhojani
E-mail: ajitnathgroup@yahoo.in 564/1, Feelkhana, Hyderabad-500 012 Tel: 24616706 Cell: 9849097007
Kunthunath penderin. Plastic granules Polymers Hyderabad - 50012
15-8-511, Feelkhang, Hyderabad - 500012 Tel : 2465583 Cell: 986610265
Dealers in : Plastic granules Add : 15-8-564/1 1st Floor, Feelkhana
(D)
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बो जगदगुरु हीरगुरुभयों नमः।।
॥ श्री पार्श्वनाथाय नमः।
॥ श्री पद्यावतीमाताय नमः।।
रिजा
हीरविजय
महाराजा
मांसाहारी कट्टर बादशाह अकबर को जिन्होंने अपने चारित्र एवं उपदेश के बल पर दयालु और शाकाहारी बनाया था.... इतना ही नहीं हिंदुस्तान के अपनी हकूमतवाले सभी राज्यों में पंचेन्द्रिय सर्व प्राणी-पक्षी-जलचरों की हिंसा पर प्रतिबंध का फरमान भी अकबर से जिन्होंने पाया था...
हम ऐसे महान् ज्योतिधर तपागच्छ सम्राट जगदगुरु श्री हीरविजय सूरीश्वरजी महाराजा
के चरणों में कोटिशः कोटिशः वंदन !
An 150 9001: 2008 Company
Suraksha
C GEMINI
PVC INSULATED INDUSTRIAL MULTISTRAND WIRES
2694
CMIL-4381482
Manufacturer:
VIKRAM INDUSTRIES
#36/12& 36/13, Dilshad Garden Industrial Area, DELHI- 95. Mobile : 98103333379
ASHOK CABLES
ASHOK Enterprises
Dealers in: Gemini ISI and Nirlon ISI P.V.C. Wires Cables and Starters Spareparts
Dealers in: Gemini ISI and Nirlon ISI P.V.C. Wires Cables and Starters Spareparts
#5-1-610, Troop Bazar, Hyderabad.
Phone: +914024745402
#5-1-235, Ganji Complex, Old Ghasmandi, Secunderabad. Phone: +91 40 66486092
(E)
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အာာာာာာာာာာာာာာာာာာ
विजय हीरसूरीश्वरजी महाराजा
दाना विनयेसुबकीय उसलारीकाशीय कृयामा मी महमियोमारने गोपिकक्षमाशीला भूपनि प्रतिक्षा अधिनियमानुसलि
कि नगरेपनि गारदीयपुरेपूर विनिमेशा कामापुरेभान पावट्या Homमिया
तपागच्छ उपाश्रय, पालनपुर जैन शासन में सोलहवीं शताब्दी में हुए
जगद्गुरु आचार्य विजय हीरसूरीश्वरजी महाराजा का जीवन शासन प्रभावना के साथ - साथ जिनाज्ञा पालन पूर्वक का था। मुगल बादशाह अकबर को जिनेश्वर परमात्मा द्वारा प्रदर्शित अहिंसा का मार्ग दिखाकर जीवदया, तीर्थरक्षा, शासनप्रभावना , इत्यादि के द्वारा जैन धर्म का रागी बनाकर
अपना 'जगद्गुरु' पद स्वपर कल्याण के माध्यमसे सार्थक किया।
प्रभुवीर के शासन में पूज्य हरिभद्रसरीश्वरजी महाराजा, कलिकाल सर्वज्ञ पूज्य हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा, जगद्गुरु अकबर प्रतिबोधक पूज्य हीरसूरीश्वरजी महाराजा इन तीनों महापुरुषोने जबरदस्त योगदान दिया है।
हीरसूरीश्वरजी का बाह्य व्यक्तित्व बहुत आकर्षक और प्रभावशाली था, उनके व्यक्तित्व में चुम्बकीय आकर्षण था तो वाणी में ___ बडी चमत्कारी शक्ति थी, अकबर जैसा
भक्त बार-बार उन्हें कहता"गुरुजी, कुछ सेवा बताइए" सूरिवर कहेते
"दूसरों का भला करो, जीवों को अभयदान दो" इस उत्कृष्ट निष्पृहता से बादशाह अत्यंत प्रभावित हुआ था. ।
सूरिजी त्यागी, निष्पही साथमें जितेन्द्रिय भी थे। जिनके नाम स्मरण से भी कइ भक्तो के कार्य परिपूर्ण होते थे ऐसे जगद्गुरु हीरसूरीश्वरजी महाराजा
के चरणों में वंदनावली.... ఆఫీస్ నీటిని నీ నీటిని నీటిని నీటిని నీటిని తన నటన
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जीवन वृत
जन्म वि.सं. १५८३ मृगशीर्ष सुदि ९ पालनपुर सोमवार
दीक्षा वि.सं. १५९६ कारतक वदि
तपश्चर्या
81
अठ्ठम (तेले) का तप छठ्ठ (बेले) का तप 225
3600
उपवास का तप
आयंबिल - 2000
नीवी - 2000
वीरास्थानक तप 20 बार
आचार्यदेव श्रीमद् विजय हीरसूरीश्वरजी महाराजा..
ककक
-३४
-
पंन्यासपद वि.सं. १६०७ - नाडलाई
उपाध्यायपद वि.सं - १६०८ महा सुद ५- नाडलाई
आचार्यपद वि.सं. १६१० पोषसुद - ५ सिरोही उम्र २७, दीक्षा पर्याय- १४ गच्छाधिपति (भट्टारक) पद वि.सं. १६२२ (उम्र ३९, दीक्षापर्याय - २६) स्वर्गगमन वि.सं. १६५२ भादरवासुद ११ ऊना - गुरुवार शिष्यपरिवार - आचार्य १ साध्वी - ३०००
साधु - २००० पंन्यास
उपाध्याय ७ श्रावक
-
२ पाटण- १३ वर्षसे कुछ न्यून उम्र में
-
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(400 आयंबिलसे और 400 उपवास से)
सूरिमंत्रध्यान - 3 मास
ज्ञान आराधना 22 मास (आयंबिल नीवीसे)
गुरूभक्ति तप 13 मास
50 अंजनशलाका प्रतिष्ठा
108 साधु को दीक्षा प्रदान की ।
(G)
१६०
श्राविका - लाखो
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जालोर
卖
कककककककक
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हमारे पादरू नगर के उपकारी गुरूवर... गोद्धारक आचार्य जितेन्द्रसूरीश्वरजी में
देव श्रीमद
मेवाड देशो
।
विजय जिते.
मुनिश्री ऋषभरत्न पंन्यास श्री पद्मभूषण
मुनिश्री भावरत्न विजयजी म.सा. विजयजी म.सा.
विजयजी म.सा. वि. सं. - २०७०
प्रत - १००० प्राप्तिस्थान Shree Jagadguru Hirsurishwarji Ahinsa Sangthan
C/o. 5-1-610 Troop Bazar, Hyderabad - 500195 బీసీలన నీటిని నీటిని నీటిని తన నీ నీడన
(H)
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वारजी म.सा
आचार्य श्री
အာာာာာာာာာာာာာ
|| श्री सुमतिनाथाय नमः ||
जगद्गुरु naiश्री लिजय हारसूरीश्वर
जीवन वृत्तांत एवं पूजा ।
- दिव्याशीष सिद्धांत महोदधि आचार्यश्री प्रेमसूरीश्वरजी म.सा. शिबिर आद्यप्रणेता आचार्यश्री भुवनभानुसूरीश्वरजी म.सा. मेवाड़ देशोद्धारक आचार्यश्री जितेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा..
शुभाशीष सिद्धांत दिवाकर गच्छाधिपति आचार्यश्री जयघोषसूरीश्वरजी म.सा.
दीक्षादानेश्वरी आचार्यश्री गुणरत्नसूरीश्वरजी म.सा. परमपूज्य जैनशासनरत्न अनुयोगाचार्यप्रवर
श्री वीररत्नविजयजी म.सा.
COशुभ प्रेरणा
परम पूज्य वर्धमानतपोनिधि पंन्यासप्रवर
श्री पद्मभूषणविजयजी म.सा..
मार्गदर्शन + शंसोधन मुनि ऋषभरत्न विजय
संकलन 0 ( श्री जगद्गुरु हीरसूरीश्वरजी अहिंसा संगठन हैदराबाद పవన నననన తనన న న న న న న నీటి
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FI55650 အဇာတာအာဏာရရာအကအအအအအအရ
-: प्लीस वन मिनिट :--
जैनाचार्य अकबर प्रतिबोधक जगद्गुरू आचार्यश्री मद् विजय हीरसूरीश्वरजी म. सा. का जीवन सौंदर्य अनुपम गुणगणसमुदाय से निखार पाया हुआ था... जिनका अंतःकरण प्रेम के महासमुद्र की भाँति उछल रहाँ था अपनी अप्रतिम तर्कशैली प्रवचनशैली एवं
संयमजीवन की आचारशुद्धि से जीवदया का महानतम कार्य अकबर शासक के पास साकार करवाया था..
जैनशासन के प्रज्वलित प्रदीप में शासन प्रभावना का स्नेह भरकर उस ज्योत को झगमगाती रखनेवाले सूरीश्वरजी रसनेंद्रिय विजेता भी थे... संयम की सूक्ष्म ताकात के बलसे अमारि का सुंदर पालन करवाया... तो अनेक साधु-साध्वी समुदाय के आप नेता भी थे।
अवनी में खोज करनेवाले विज्ञानी होते है जबकी, अंतर में खोज करनेवाले ज्ञानी होते है.., आप ज्ञान के भंडार तो साथ में निस्पृह शिरोमणी के रूप में भी उभर के बहार प्रकट हुए थे...
आपके शासन समय में जैनधर्म की महती... प्रभावना हुई थी... | स्वको तारने की इच्छा भावना है तो सभी को तारने की इच्छा प्रभावना है । o आप भावना से आगे बढ़ते हुए प्रभावना में जुटे हुए थे... |
आपका व्यक्तित्व विराट - विशाल एवं
विशिष्टधृति संपन्नता युक्त है... । जिसका जिक्र हमें इस प्रस्तुत पुस्तक में जानने को मिलेगा....
मुनिऋषभरत्नविजय
पूज्य हीरसूरिजी का चरित्र-कोबा-कैलाशसागरसूरि । जैन ज्ञानमंदिरसे प्राप्त पुण्यविजयजी कृत पुस्तकसे ।
लिया गया है । जिसके हम आभारी है। బీజేపీ సీనిని సినీ నటి టెన్ టేపథిని
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NGOKOONOO@GNOOOONG
विजयभद्रंकरसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न लेखक :- मुनिपुण्यविजयजी म.सा. सोलहवीं शताब्दीके जगद्गुरू आ. श्री हीरसूरीश्वरजी म.सा.
-: जन्मकाल :
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इस परिवर्तनशील संसार में प्रबल पुण्यराशिके साथ जीव मनुष्य जीवन में आते है और अपना देव - दुर्लभ अमूल्य मानवभव विषय कषायके कीडे बनकर व्यर्थ गवाँ देते है । याने प्राप्ति की जीत पराजीतमें परिवर्तन कर देते है । किंतु उसका ही भव सफल होता है जो महापुरुषके सत्संग को प्राप्त कर स्वकल्याण के साथ अन्य जीवों को उर्ध्वगमन कराने के लिये दिवादांडी रूप बनते है ।
गुजरात बनासकांठा जिले में धर्म- धन और बाह्य-धन से युक्त पालणपुर नामका बडा शहर था। उस नगर में सदा धर्म कार्य में आसक्त कूंराशा श्रेष्टी बसते थे । उनकी शीलादि गुण वैभव सम्पन्न नाथीबाई नामक धर्म - प्रिया थी । सांसारिक सुखका उपभोग करते हुये आपको चार पुत्र और तीन लडकियाँ हुई थी । पुत्रके नाम थे संघजी, सूरजी, श्रीपाल एवं हीरजी और पुत्री रंभा, राणी एवं विमला थी । हीरजीका जन्म वि.सं. १५८३ मार्गशिर्ष शुक्ल नवमी सोमवार के दिन हुआ था । "पुत्रके लक्षण पालणे में" इस कहावत के अनुसार छोटे लडके हीरजी का तेज प्रतापदेहलालित्य भव्य था एवं आकर्षित था । इससे सब लोग उनको बडे प्रेम से बुलाते थे और खीलाते थे । हीरजी बचपन से धर्म प्रति आदरवाले थे । पूर्वका क्षयोपशम होने से ज्ञानमें भी प्रवीण थे । व्यवहारिक ज्ञानाभ्यास के साथ धर्म गुरुवर के पास जाकर धर्म का तत्त्वज्ञान प्रसन्न चित्त से सुनते थे । जिससे उसने अपना अंतःकरण वैराग्य रंग से रङ्गित बना दिया था ।
ENDOK
DONDOKA
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28,3xascannexaocalar.coense ascolar
-: दीक्षा और आचार्यपद :
पाटण
जब हीरजी शिशुवयको विदा कर तेरह साल की नवीन विकसित युवावय में प्रवेश कर रहे थे। तब आपके माता-पिता नश्वर देह को त्यागकर स्वर्ग प्रति प्रयाण कर गये । वह वज्रधात सदृश वृत्तांत से आपका अंतर वेदनासे बहुत आक्रांत हो गया । मगर आपने जिन-वाणी का सुधास्वाद गुरुमुखसे बार-बार लुटा था । अतः आर्तध्यान वश न होकर आपका ज्वलंत वैराग्य
असार संसार के प्रति दोगुणा बढ गया था । इस दुःख को दूर करने के लिये आपको अपनी बड़ी बहिन विमला अपने ससुराल पाटण ले गई । मगर आपका
आत्म-पंखी अब संसार-पिंजर को छोड कर मुक्त विहारी बनने के लिये किसी रास्ते को ढूंढ रहा था ।
इतने में आपके पुण्यबलसे आकर्षित न हुये हो ऐसे परमोपकारी सकल शास्त्रविद् आचार्यदेव श्रीमद् विजयदानसूरीश्वरजी महाराज का सपरिवार पाटण शहर में शुभागमन हुआ । मेधके आगमन से जिस तरह प्रजा आनन्दविभोर बन जाती है उसी तरह सूरीश्वरके पुनित पाद-कमल से जनता के हृदय में हर्ष की लहर छा गई । पूज्यश्री के हृदयंगम और वेधक देशना प्रवाह से भव्य जनों की पाप-राशि सफा हो गई और मिथ्यात्व-अंधेरा दूर हट जाने से सम्यक्त्व का सहस्त्र रश्मि दिप्तीमान हुआ | आपके सद्बोधसे हजारों जीवोने देशविरति और सम्यक्त्व आदि प्रतिज्ञा लेकर जीवन को निर्मल बनाया ।
इसमें युवा हीरजीने भी गुरुवर के पास कर्म-विदारिणी भव-नौका सदृश संयम देने की प्रार्थना की । तब पूज्यश्रीनें आपकी पवित्र भावना को वैराग्य रुप नीरसे नव पल्लवित बना दी । और 'शुभस्य शीध्रम्' इस कहावत को सार्थक करने की प्रबल प्रेरणा भी दी।
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NGOKOONG
हीरजीने गृह पर आकर बडी बहिन को विनम्र होकर अपनी संसार त्याग की भीष्म प्रतिज्ञा जाहिर की । वह इलेक्ट्रीक करण्ट जैसे वचन को सुनकर बहिन मोहवश चैतन्यशून्य हो गई । मगर आकंठ वीर वाणी का अमीपान किया था । इसलिये हीरजी को महाभिनिष्क्रमण की न अनुमति दी, एवं संसार में ठहरनेका भी न कहाँ । अपितु तीसरा राह मौनका आलम्बन लिया । हीरजी बडे चतुर थे । वे समज गये । 'न निषिद्धं अनुमतं' इस न्याय से उसने आचार्यश्री के पास आकर प्रव्रज्याका मुहूर्त निकाला । और वि.सं. १५९६ का. सु. र सोमवार के शुभ दिन तेरह सालकी उम्र में हीरजी बडी धूमधामसे पुनित प्रव्रज्या के पथिक बने । तब से कुमार हीरजी मुनि हीरहर्ष बने । स्वार्थी संसार का अंचला त्यागकर मुक्तिपथके विहारी - सच्चे साधु बने । पू. आचार्य देवने नूतन मुनि पर अनुग्रह करके ग्रहण और आसेवन रूप शिक्षा का अनुदान किया ।
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नूतन मुनिश्री नित नूतन अभ्यास और गुरू विनय-सेवा दोनों को अपना जीवन मुद्रालेख बनाकर संयमपर्याय में दिन व दिन प्रगति करनें लगे ।
गुरू महाराजने हीरहर्षकी विनम्रता सह शास्त्राध्ययन में भारी प्रज्ञा देखकर उनको न्याय - तर्क आदि गहन शास्त्रो को पढने के लिये दक्षिण देश के विद्याधाम देवगिरि में मुनि धर्मसागर और मुनि राजविमल को साथ भेजे ।
वहाँ से तनिक समय में शास्त्रावगाहन करके त्रिपुटी मुनि गुरूवरके पास नाडलाई गांव में आये । तब हीरहर्षको पूज्यश्रीने वि. सं. १६०७ में गणि-पंडित पद से विभूषित किया इतना ही नहीं बल्कि वि.सं. १६०८ में माध सुद ५ को नाडलाई में ही मुनि धर्मसागर और मुनि राजविमल के साथ मुनि हीर हर्ष गणि को भी उपाध्याय - पद का दान दिया । उपाध्यायजी हीरहर्ष की चारों ओर से चरित्र प्रभा की कीर्ति, ज्ञानका प्रकृष्ट वैभव विद्वान शिष्य सम्पत्ति और शासन की रक्षा एवं प्रभावना की बडी तमन्ना इत्यादि गुण - मौक्तिकों से प्रसन्न होकर पू. आचार्य भगवंतनें सिरोही नगर में वि. सं. १६१० पोष सुद पंचमी के
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Xarxpalassekas,sexas,cenas/ceas,Celes,8%D8, पवित्र दिन बादशाही ठाठ से पंच परमेष्ठी के तृतीयपद आचार्यपद पर हीर हर्ष उपाध्याय की प्रतिष्ठा की । तबसे सारे देश में आचार्य श्री विजय हीरसूरिजी के नामसे मशहुर बनें । ____ कालराजा दिन-रात रूप दंडसे मनुष्य-आयुष्य का टुकडा ले जाता है | माँ कहती है, 'मेरा लडका बडा हुआ मगर आयुष्यमें तो कम हुआ ।' ऐसे विजयदानसूरि महाराजा आयुष्य पूर्ण होनेसे ससमाधि वि.सं. १६२२ वैशाख सुद १२ को वडावली में स्वर्गधाम सिधायें । तब सारे गच्छका भार विजय हीरसूरीश्वरजी महाराज के शिर पर आ गया | श्री संधने पूज्य श्री को गच्छ नायक-भट्टारक की पदवी का बहुमानकर अपना कर्तव्य का सच्चा पालन किया।
-: विपत्ति की वर्षा :
सोने की ही कसोटी होती है, पीतल की नहीं ।
एक बार विजय हीरसूरीश्वरजी महाराज अपने परिवार के साथ खंभात नगरमें विराजीत थे । तब रत्नपाल नामक एक श्रावक आया । उसने कहा, गुरूवर ! मेरा लडका रामजी तीन सालका है । वह बहुत बीमार रहता है । आपके प्रभाव से जो लडका अच्छा हो जायेगा, तब आपका शिष्य बना दूंगा । अचानक आपके प्रभावसे रामजी दिन व दिन अच्छे होने लगे और इस बात को आठ साल हो गये । पू. हीरसूरीश्वरजी विहार करते करते पुनः खंभात पधारे । पूज्यश्रीने रत्नपाल को अपना वचन पालन करने को कहा । तब रत्नपाल सूरीश्वरजी को कहने लगा, आपको मैने ऐसा कब कहा था, ? यूं कहकर बदल गया । इतना हि नही बल्कि उसने अपने रिस्तेदारो को बुलाया
और कहा, आचार्य हीरसूरीश्वरजी मेरे लडके को उठा ले जाते है । तब सुबा सिताबखां को कहा । सुबा सिताबखांने हीरसूरि को जेलमें डालने के लिये आज्ञा दे दी।
emas, sexo, 0029, Dexcom@89%29 29,%
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Mas,geras,sayas,malas,cenas,coexas,exas,enas,
इस समय सारे गुजरातमें नादीरशाही चलती थी । न्याय और अन्यायको देखते ही नहीं थे । जिससे प्रजा अत्यंत त्राहित बन गई थी ।
हीरसूरिजी को ये समाचार मिल गये । इसलिए उन्हें २३ दिन तक गुप्त स्थानमें रहना पड़ा ।
और भी वि.सं. १६२० सालमें बोरसद गांवमें घटना घटी कि, जगमाल ऋषिने पू. हीरसूरीश्वरजी महाराज के पास आकर कहा कि, मेरे गुरूजी, मेरी पुस्तकें नहीं देते है । सूरिजीने सहज भावसे कहा, आपने कोई गुना किया होगा । इसलिये नहीं देते होंगे । यह सुनके जगमालजीको संतोष न हुआ बल्कि हीरसूरिजी पर क्रोधित होकर वहाँ से पेटलाद गांव गये
और वहाँ के हाकिम को हीरसूरिके विरूद्ध बडा दोष लगाकर उनको पकड़ने के लिये दो-तीन बार सिपाहिओं को भेजा | मगर सूरिजी मिले नहीं । इस उपद्रवसे बचानेके लिये श्रावकोंने घूस देकर हीरसूरिजी महाराज को सांत्वन दिया ।
वि. सं. १६३४ में विजय हीरसूरीश्वरजी महाराजाका कुणगेर (अमदावाद) में चातुर्मास था । तब उस समय उदयप्रभ सूरिने आचार्य श्री को कहलाया कि, आप, वहाँ सोमसुंदर सूरि चार्तुमास हेतु बीराजमान है, उनके साथ क्षमापना कर दो । हीरसूरिजीने कहा, मेरे गुरूजीनें खमत खामणां नहीं किया है, में कैसे करूँगा । इस असाधारण निमित्त से उदयप्रभसूरि बडे इर्षान्वित बन गये और पाटण जाकर वहाँ के सुबेदार कलाल्को उल्टासुल्टा समझाकर, हीरसूरिजी को कैद करने के लिये एक सौ सिपाहिओं को भेजा । मगर वडावली संधनें तीन महिना तक सूरिवर को गुप्त रक्खा और बचा लिया ।
विजय हीरसूरिजी महाराज विहार करते वि.सं. १६३६ में अमदाबाद पधारे । तब हाकेम शहाबल्ने आकर कहा । क्या आप बारिश को रोकते हो? इससे आपको क्या लाभ है ? इस गलत समाचार को सुनकर MPPSPEECHESIRDSHESARDSHESEARESHERPRETREEKREHEETPRESHEDERS
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Kaselas,Selas,bemas,cekan.sekas,*as,cenas सूरिजीनें कहा, भाग्यशाली, हम तो चींटीयौसे लेकर कुंजर तक दया करनेवाले है । याने सारे जगत के प्राणियों के साथ मैत्रीभाव करनेवाले है |
और समस्त जीव लोक सुख-शान्ति आबादी के साथ धर्ममय जीवन व्यतीत कर कल्याणपथ के यात्री बनें ऐसी प्रार्थना करते है।
ऐसी बात चल रही थी इसमें इधर के सुप्रसिद्ध कुंवरजी भाई श्रावक वंदनार्थ आये | उसने जैन साधु कैसी मर्यादा से पवित्र जीवन बिताते है । उनका परिचय दिया । यह सुनकर हाकेम बडा खुश हो गया और उपाश्रय के बाहर आकर दीन दुःखी को दान दिया ।
इतनेमें एक पुलिशपार्टी वहाँ आई । और समाधान सुनकर वे कुंवरजी श्रावक के साथ चर्चा करने लगे । इसमें कुछ मामला तंग हो गया । पार्टीने कोटवालके पास जाकर उनका Vill Power चढाया । कोटवालने हीरसूरिको कैद करने के लिए हुकम के साथ पुनः पार्टी भेज दी । मगर पहिले मालुम हो जानेसे वहाँ से हीरसूरिजी नग्न देहे भगे । और वहाँ देवजी लौंकाने आश्रयदान दिया । कितने दिनों बाद हल-चल मिट गई और हीरसूरि महाराज शान्ति से गाँव-नगर विहार करने लगे ।
-: मुगलबादशाह का आमन्त्रण :
'अकबर की सभा पांच विभागों मे विभक्त थी । इसमें पहिले लाइनमें १६ वे नंबर में हरजी सूर है । ऐसी सूची आइने अकबरी नामक ग्रंथमें है । वो ही अपने चरित्र नायक आचार्य विजय हीरसूरीश्वरजी महाराज ।
कौनसे निमित्तसे आचार्यदेव की अकबर के साथ मुलाकात हुई इस प्रसङग को जानने के लिये वाचक को भी बडी तमन्ना हो गई होगी । अत:अब जानकारी दे देता हूँ | SHEBSITESHESSROOTBSPRSSHESARRESHESSOROSCSSROSHSSPRESHESSIRD
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Vas,cenas pavasas,kas coxasemarken,
दिल्ही के मेइन रोड पर भारी हल-चल मचगई है । बैन्ड और शहनाई के मधुर स्वर चारोओर गगन को स्पर्श कर रहे है | जैन शासन की जय, महातपस्वी चंपाबाई की जय, ऐस जय-जय के बुलंद नादोनें दिशाओं को शब्दमय बना दिया । महा तपस्वी का भव्य जुलुस सडक पर से जा रहा है ।
झरूखेमें बैठे हुवे संपूर्ण हिंदुस्तान के बादशाह अकबर इस जुलुस को देखकर पास में खडे हुए सेवक को पूछने लगा, यह किसका जुलुस है ? तब सेवक ने कहा, राजन् ! चंपाबाई श्रावीकानें छ:महिना का उपवास (रोजा) किया है । वह अपने जैसा रोजा उपवास करते है, ऐसा नहीं, किंतु दिनरात खाना नहीं और सूर्योदय के बाद आवश्यकता हो तो गर्मपाणी पीते है तथा सूर्यास्त के बाद पाणी भी नहीं लेते है । ऐसी महान उपवास की तपश्चर्या श्रावीकाने की है।
अकबर यह सुनकर राहु से ग्रस्त सूर्य कैसा ठंडा हो जाता है ऐसा 'ठंडा हो गया और आश्चर्य से बोलने लगा, ऐसा क्या हो सकता है ? हम एक दिन रोजा करते है तो थक जाते है, और रात को खाना खा लेते है ।
बादशाहने दो आदमी मंगल चौधरी और कमरूखां को चंपाबाई के पास भेजा और कहलाया । आप, ऐसी महान तपश्चर्या किसके प्रभाव से कर सकते हो ? तब चंपाबाईने कहा, मेरा तप देव-गुरूकी कृपा से चल रहा है ।
राग द्वेष आदि १८ दोषों से रहित वीतराग देव है । और कंचन-कामिनी के त्यागी-पाद विहारी-माधुकरी वृत्ति से जीवन निर्वाह करनेवाले गुरू है । ऐसे त्यागी मेरे गुरूदेव विजय हीरसूरीश्वरजी महाराज अभी गुजरात के गंधार
बंदर में बीराजित है । उनके प्रभाव से मेरी महान तपश्चर्या चल रही है । बादशाहनें सेवकों द्वारा चंपाबाई का वृत्तांत सुना सुनकर बडा आनन्द हुआ और विजय
हीरसूरिजी को मिलने की बडी उत्कंठा हुई । इतना ही SICSSACROCHESPRESHERPROTHESSPIRSHESTRICTSSCRTHISEDIOSESSIS
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नही बल्कि चंपाबाई को अपने महल में बुलाकर सम्मान के साथ सोनेके चूडा की पहरामणी दी । और अपने शाही बाजे भेजकर जुलुस की शोभा द्विगुणी बढाई कोक पक्षी जैसे सूर्य को चाहतां है वेसे अकबर को हीरसूरि से मिलने की बडी तमन्ना हुई। और इधर बुलाने के लिये आपनें सोचा, एतमादखां गुजरात मैं बहोत रहे है । वो जरूर पहचानते होंगे । उसने एतमादखां को बुलाया और हीरसूरिजी का परिचय पूछा । तब एतमादखांने कहा, वो तो बडा धर्मात्मा-फकीर है - दुसरा खुदा है । पैदल चलते है, सोना और सुंदरी से दूर रहते है। स्वयं केश लुंचन करते है । माधुकरी से जीवन-वृत्ति चलाते है इत्यादि कई गुणों का गुणगान करके बहुत प्रशंसा की । तब अकबरने अपने हस्ताक्षर से विनंति पत्र और दुसरा आग्रा जैनसंघ का पत्र, इन दोनों पत्र के साथ माणुकल्याण और थानसिंहरामजीको अहमदाबाद गुजरात के अपने सुबा शाहबखां के पास भेजा। दोनों सेवकने अविरत प्रयाण कर अहमदाबाद आकर शाहबखां को दोनों पत्र दे दिये
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शाहबखांने विनम्र होकर पत्र को शिर पर चढायाँ । और पत्र पढने लगे । इसमें क्या लिखा होंगा व सुनने को वाचक भी बडे उत्साहित बन गये होंगे ।
"आचर्य हीरसूरि को हाथी, घोडे, पालखी, हीरा, मोती, इत्यादि किसी भी साज की आवश्यता हो वो देकर सम्मान के साथ दिल्ली की और प्रस्थान करावें ।"
शाहबखां पढकर बहुत आनन्दित हुये और मनमें शर्म भी आई कि मैने उस महापुरूष का बड़ा अपराध किया है । इसलिए मैं अपना मुख उस महात्मा को कैसे दिखाऊं । पुनः सोचा, वो तो बड़े करूणा के अवतार है। सबके उपर अनुग्रह की छांट डालनेवाले है । इस तरहसे अपने मनको उत्साहित करके अहमदाबाद के अग्रणी श्रावकों को बुलाया और दोनों पत्र दिये । पत्र को पढकर सब हर्ष और खेद के हिंधोले हीँधने लगे । बादशाह के आमंत्रण से आनन्द हुआ और खेद भी इसलिये हुआ कि, बादशाह बुलाकर क्या करेंगे ? किसी विरोधीने बादशाह को क्या-क्या कहा होगा ? क्या मालुम ? म्लेच्छ राजवी है ।
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SOCISSAIDESIDERESTIGEROSIDEOSSESSISTRIOSISTRIOSIS
सब ने सोचा, बादशाह का पत्र है । इसलिये हीरसूरिजी को वाकेफ करना ही चाहिये और खंभात जैन संघ को पत्र से इतला देकर गंधार बुलाना | और अपना संघ, खंभात संघ, गंधार के श्रावक सब मिलकर विचार विनिमय करेंगे।
दो पत्र को लेकर अहमदाबाद संघ, खंभात संधने सूरिवर की निश्रा में आकर दोनों पत्र गुरूकरांबुज में दे दिया । इस तरह तीनों संधों की मिटींग हुई । गुरूवरको जाने देना कि नहि इस पर गंभीर विचार विनिमय हुआ | अंत में सब एक राय पर आये कि, सूरिवर जैसा फरमावें ऐसा करना ।
तीनों संघ के अग्रणी सूरिवर के पास आये, पूज्यश्रीनें रूपेरी घंटडी जैसे मधुर स्वर से सबको पूर्व महर्षिओने राजाओं के पास जाकर कैसी शासन प्रभावना कि उनका परिचय दिया । यह सुनकर सब की रोमराजी विक्स्वर हो गई । और एक ही आवाज से सब बोलने लगे, पूज्यश्री को जरूर बादशाह के पास जाना ही चाहिये ।
-: गंधार से प्रस्थान :
सूरिजीनें मार्गशिष कृष्ण सप्तमी को प्रस्थान करनेका मंगल निर्णय जाहिर किया । मुक्ति की ओर जाने फौज न चली हो ऐसी साधु मंडली आचार्यश्री के साथ विहार करने लगी । तब सारे संघ के एक नयन में गुरूविरहके अश्रु दुसरे नयनमें बादशाह को प्रतिबोध देंगे उस आनंद के अश्रु अविरत बहने लगे । संघ विदा देने साथमें चला । पूज्यश्रीनें शहरके बाहर मंगलिक सुना कर धर्म-ध्यान में स्थिर रहनेका धर्मोपदेश दिया । जब तक सूरिजी नयनपथमें दिखाये तब तक गुरू दर्शनामृत पान करके संघ खेदित हृदय से वापिस आ गया ।
विहार करते हुए सूरिजी वटादरामें पधारे । यहाँ रात्रि को पू. सूरीश्वर को एक देवीने मोतीओं से वर्धापना दी । और मंगलाशिष दिया कि, आप MEDISHRSHESTATOSHSSARGEMSTARDSMISSIOSHDOOTESDESSIPS,GSSIP
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DOKDONG
सुखपूर्वक बादशाह के पास पधारें। आपको बडा लाभ मिलेगा और शासन प्रभावनामें अभिवृद्धि होगी। इतना कहकर देवी अंतर्धान हो गइ । इस सुख समाचार सुनकर सूरिजी के मुख पर आनन्द के चार चाँद उदित हो गये ।
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वहीं से सूरि भगवंत अहमदाबाद पधारे । संघ द्वारा कि हुई भव्यस्वागत यात्रा में सुबा शाहबख भी आये थे । उसने गुरू चरण में अपना शिर रखकर पूर्व किये हुए अपराध की क्षमा याचना मांगी । और बादशाह के भावपूर्ण निमंत्रण को और किसी भी वाहन आदि की जरूरत हो इत्यादि की विनंती की । सूरिजीने अपने आचारका वर्णन किया । इधर से पत्र लेकर आये हुये दो सेवक भी सूरिजी के साथ चलने लगे ।
सूरि भगवंत पाटण पधारे, तब विजयसेनसूरि, उपा-विमलहर्षगणि संघ के साथ सामैया में पधारे थे । विजयसेनसूरि को गुजरात में रखकर सूरिजी आगे विहार करनें लगे । उपाध्याय विमल हर्ष गणि ३५ मुनिवर के साथ उग्र विहार करते हुए दिल्ली पहिले पधार गये ।
अबुलफजल द्वारा अकबर बादशाह के साथ उपाध्याय का मिलन हुआ । आप साधु किस कारण बने ? आपका महान तीर्थ कौनसा है ? इत्यादि बहुत प्रश्नोंको बादशाहने पूछे । उपाध्यायने ऐसी तर्क- दृष्टांत के साथ समजौति कि, बादशाह सुनकर आनंद विभोर बन गये । और नमन करके हररोज धर्मोपदेश देने जरूर पधारना ऐसी प्रार्थना भी की ।
पू. उपाध्यायने सूरिवर के पास श्रावकों को भेजकर विनंती की, कि बादशाह आपके दर्शन और धर्मोपदेश सुनने को चातक पंखी की तरह आतुर है । दुसरा कोई कार्य नहीं है । आप शान्ति से पधारना और स्वास्थ्य को संभालना ।
पाटण से विहार कर सूरिजी आबू पधारे । तब बीच जंगल में सहस्रार्जुन नामक भीलों के सरदार को उपदेश देकर मांस नहीं खाने का
अभिग्रह कराया ।
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वहां से सूरिजी सिरोही पधारे । संधनें सुंदर सामैया किया इसमें महाराज सुलतान भी साथ थे । सूरीश्वरकी शक्करशी देशनासे महाराजानें शिकार-मांसाहार-मदिरा एवं परस्त्रीगमन, इन चारों का नियम लेकर अपने जीवनको सफल बनाया ।
जब सूरिवर मेडता पधारे तब राजा सादिमने आपका भव्य एवं प्रभावक स्वागत किया । वहां से आपका ज्येष्ठ सुद १२ के दिन आग्रा में पुनित पदार्पण हुआ । तब संधनें ११ मैल से कल्पनातीत अप्रतिम बडा सामैया किया था । आपके साथ में तब नैयायिक-वैयाकरणचतुर, शतावधानी एवं विविध विषय के प्रकाण्ड मुनिवर ५७ थे।
-: बादशाह को प्रतिबोध :
जैन मंदिर
ज्येष्ठ सुद १३ का दिन सारे जैनसंधके इतिहासमें Goldensun जैसा उदित हुवा था ।
क्योंकि आज सारे राष्ट्र के सम्राट और सारे जैन संघ के सार्वभौम सूरिजी का सुभग मिलन हुआ था ।
सूरीजी अपने विविध विषयों के निष्णात १२ साधुकी मंडली के साथ अकबर को धर्मोपदेश देने के लिये अबुलफजल के महलमें पधारे | बादशाह कुछ कार्य में व्यस्थ था । इधर सूरिजीनें आयंबील कर दिया । तब बादशाह का आमंत्रण आया । ଝB8%B2%E0%B8%9E%E0%B8%B5
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kangelasalan,gelassekassekammekas,bekasno
सूरिजी राजसभाके द्वार पर पधारे तब बादशाहनें सिंहासन पर से उठकर निजी तीन पुत्रों के साथ अभिवादन कर नमन किया । सूरिजीनें धर्मलाभका मंगल आशीष दिया । सूरिजी के दर्शन से बादशाह के मुखपर हर्षकी लालिमा छा गई । और अपने बैठक तक ले गये ।
बादशाह खडे है और सुरीश्वर भी खडे है । अकबरने क्षेमकुशल की पृच्छाकर कहा, आप मेरे लिए बहुत कष्ट के पहाड को पार करके आये हो, इसलिये में आपका अहसान मानता और कष्ट के लिए क्षमा चाहता हुं । आपको मेरे सुबाने कुछ भी साधन नहीं दिया ।
सूरिजीने उत्तरमें कहा, आपकी आज्ञासे मुझे सब कुछ देने को वे तैयार थे । किन्तु हमारा धर्माचार ऐसा है कि कोई भी वाहन का उपयोग नहीं करना । एक पैसा का भी परिग्रह नहीं रखना । पैदल चलना, माधुकरीसे जीवननिर्वाह करना इत्यादि सुनाया था । आपनें क्षमा याची, वो आपकी सज्जनता है ! इस वार्तालाप में बहुत समय हो गया और ज्यादा धर्मोपदेश सुनने के लिये अपने कमरेमें ले जाते है । तब सूरिजी कमाडके पास रूक गये ।
बादशाहने पूछा, आप क्यों रूक गये ? सूरिजीने कहा, इस गालीचा पर पांव रखकर हम नहीं आ सकते । क्योंकी हमारा आचार है कि चलना हो बैठना हो तो अपनी नजरसे देखकर चलना बैठना । जिससे किसी ___जीवको दुःख न हो और वे मर न जावे | धर्मशास्त्र भी फरमाते है, दृष्टि पुतं न्यसेत् पादम्'
बादशाहने कहा, हमारे सेवक रोजाना
साफ करते है तो क्या इसमें चिटीया धुस गई कया ? यूं बोलकर अपने हाथ से एक औरसे गालीचा का छोर उठाया । Semassemorganap,meyarlse%aabelascmekassero
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CKDONDOK
DELADONG
तब बादशाह आश्चर्यके सागर में बुड गये । और लाखों चिटियाँ देखकर सूरिजी के प्रति सौ गुणी श्रद्धा और बढ गई, अकबरने अपने रेशमीवस्त्रके अंचलसे चिटिर्या दूर करके प्रवेश कराया । और अपनी भुलकी क्षमा मांगी ।
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सूरिजीने सच्चे देव, गुरू और धर्मका संक्षेपमें उपदेश दिया । उपदेश सुनकर सूरिजीके पांडित्य और चरित्रका बादशाह के हृदयमें बड़ा आदरभाव हुआ । इतना ही नहीं अपने पास पध्मसुंदर नामक साधुका ग्रंथालय था उन पुस्तकों को ग्रहण करने की प्रार्थना की ।
सूरिजीने मना किया मगर बादशाह के बहुत आग्रह करने पर पुस्तके लेकर अकबरके नामसे आगरा में पुस्तकालय की स्थापना कर उन पुस्तकों को वह रख दिया । और सूरिजीनें कहा, हमको जरूरत होगी तब पुस्तकें मँगवायेंगे । सूरिवरका त्याग देखकर बादशाह के मन पर बहुत बडा प्रभाव पडा और आनंदकी खुशीमें उन्होने दान दिया ।
उस समय पर बादशाहनें पूछा, मेरी मीनराशिमें शनैश्चरकी दशा बैठी है। लोग कहते है वह दशा बहुत कष्ट देनेवाली है। तो आप ऐसी कृपा करो जिससे यह दशा मीट जाय ।
सूरिजीनें स्पष्ट शब्दोमें कहा, मेरा यह विषय नहीं है, मेरा विषय धर्मका है, यह ज्योतिषकी बात है ।
बादशाहने कहा, मेरे को ज्योतिषशास्त्रके साथ संबंध नहीं है, आप ऐसा कोई ताविज-मंत्र-यंत्र दो जिससे मुझे इस ग्रह की शान्ति मिले ।
सूरिजीने कहा, वो भी हमारा काम नहीं है। आप सब जीवों पर रहेम नजर कर अभयदान दोगे तो आपका भला होगा । निसर्गका नियम है कि दुसरों की भलाई करनेवालों को अपनी भलाई होती है । यह उपदेश देकर सूरिजी उपाश्रयमें पधारे ।
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293beas,cekasimamascellas, emas,sexde, Devas,3
थोडे दिन बाद सूरिजी आगरा पधारे । चातुर्मास आगरा में किया। श्रावकोनें सोचा, बादशाह सूरिजीके भक्त बने है, तो पर्युषणके आठों दिन अमारी की उद्घोषणा हो जाय तो लाभ होगा।
श्रावकोने आकर सूरिजीको विनंती की । सूरिजीने सम्मति दी, और अमीपाल आदि अग्रणी श्रावकोंका डेप्युटेशन बादशाह के पास आया । श्रीफल आदि नजराणा भेट दिया । और साथ में कहने लगे कि आप नामदारको, पू.सूरि भगवंतनें धर्मलाभका मंगल आशीष दिया है । आशिर्वाद सुनकर बादशाह के मुख पर प्रसन्नताकी खुशी छा गई, और बोलने लगा, सूरि महाराज कुशल है न ? मेरे योग्य कुछ आज्ञा फरमाई है ?
___ अमीपालने उत्तर दिया, आचार्यश्री बडे कुशल है, और आपको अनुरोध किया है कि हमारा पर्युषणपर्व आ रहाँ है । इसमें कोई जीव किसी मुकजीवकी हिंसा न करे ! आप इस बातकी मुनादि कराने दोंगे तो अनेक मुक जीव आशीर्वाद देंगे, और मुझे बडा आनन्द होगा । बादशाहने आज्ञा दे दी, और आगरा में आठो दिन अमारीका ढंढेरा पीटवा दिया. वह साल थी वि.सं. १६३९ की।
आप आगरामें चातुर्मास व्यतीतकर शौरीपुर तीर्थ यात्रा करके पुनः आगरा पधारे । प्रतिष्ठा आदि धर्मकार्य कर दिल्ही पधारे । कई बार बादशाह के साथ आपकी मुलाकात हुई ।
एक बार सूरिजी अबुलफजल के महलमें धर्मगोष्ठी कर रहे थे । अकस्मात बादशाह वहाँ आ गये | अबुलफजलने स्वागत किया और आसन पर बैठनेकी प्रार्थना की । अबुलफजलने सूरिजी की विद्वता की भूरी भूरी प्रशंसा की।
प्रशंसा सुनकर बादशाहके मनोमंदिरमें भाव जग गये | सूरिजी जो मांगे वह दे के उनको प्रसन्न कर देना चाहिये । उसने सूरिजीको प्रार्थना की, कि आप ! अमुल्य समय खर्चकर उपदेश देके हमारे पर उपकार कर रहे हो ।
selangkan,melnameyasemakan malam yanmaya
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Xas,,cakap,mekaabelas, gevaa,mekar,mevas,
उनका बदला तो नहीं हो सकता, मगर मेरे पर
कल्याणार्थे आप मुझे कुछ कार्य की आज्ञा ___बताये । आपकी कौनसी सेवा करू जिससे आप खुश हो । बादशाह की इतनी भक्ति-इतनी उत्सुक प्रार्थना देखकर सूरिजीने अपने स्वार्थ के लिये, अपने गच्छ के लिए अपने अनुयायी भक्तों के लिये कुछ बात न की । क्योंकि वे
समझते थे, कि संसार में सर्वोत्कृष्ट कार्य
N जीवोंको अभयदान देना है । अतः जब जब बादशाह ने कार्य पूछा-सेवा का लाभ पूछा, तभी उन्होंने जीवों को सुख-शान्ति-आबादी. अभयदान देनेका वचन मांगा ।
जिस समय बादशाहने सेवा-कार्य पूछा, तब सूरिजीने कहा, आपके यहाँ हजारों पक्षी दरबार में बंद है, उसको मुक्त कर दो और डाबर नामका जो बडा तालाब है, उसमें से कोई मछलियाँ न पकडे ऐसा हुकम कर दो ।
उस समय वार्तालापमें सूरिजीनें पर्युषणके आठ दिन सारे राष्ट्रमें अमारी की उद्घोषणा की जाय ऐसा उपदेश भी दिया |
बादशाहने अपने कल्याणार्थ चार दिन इसमें ज्यादा कर बारह दिनका फरमान निकालनेकी स्वीकृति कर दी । फरमान पर शाही महोर और अपना हस्ताक्षर करके सारे सुबाओंको भेज दिया । एक फरमान थानसिंहको दिया । उसने मस्तक पर चढाया और बादशाह को फूलों और मोतीयो से बधाया ।
एक फर्मान गुजरात-सौराष्ट्र, दूसरा दिल्ली, तीसरा नागोर, चौथा मालवा-दक्षिण, पांचवा लाहोर-अजमेर, और छठा सूरिजी को दिया |
इस फर्मानसे लोकमें अनेक प्रकारकी चर्चा होने लगी । कोई बोलने लगे, सूरिजी कितने प्रभावशाली है, बादशाह को अपना भक्त बना दिया SHABSITESHEDEPROSHSSIBSESSPARDHSSCISSHESIRESHESEARESHERS
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@amemo,cavaayaage%28,Vayas, kas, कई कहने लगे बादशाह की सात पेढी दिखाई । कई अनुमान करने लगे, बादशाहको सोनेकी खाण दिखलाई । और कई बोलने लगे, फकीरकी टोपी उडाकर चमत्कार बताया । मगर ये सब किंवदन्ती है |ऐतिहासिक सत्यके विरूद्ध है मगर सूरिजी अपने चरित्र के प्रभावसे सब मनुष्य में सद्भाव उत्पन्न करते थे । उनका मुखारविंद इतना शान्त और प्रभावक था कि क्रोधसे जला हुआ क्रोधी मनुष्य उनके दर्शन से प्रशान्त बन जाता था । आपके चरित्र के प्रताप से बादशाह आपके वचन को ब्रह्मवचन तुल्य समझता था ।
क्योंकि अकबरमें यह एक अनुकरणीय गुण था । वह उस महात्मा को ज्यादा सम्मान देता था, जो निःस्पृही-निर्लोभी एवं जगतके सारे प्राणीयों को अपने समान देखनेवाला होता था । इस गुणके कारण बादशाह सूरिजीका सम्मान करता था और उपदेशानुसार कार्य करता था ।
बादशाह और सूरिजी के बीच खुल्ले दिलसे धर्म चर्चा चल रही थी | उस समय सूरिजीने कहा, मनुष्य मात्र को सत्य का स्वीकार करने की रूचि रखनी चाहिये । जीव अज्ञानावस्थामें दुष्कर्म करते है, मगर जब सज्ञानअवस्था प्राप्त होती है तब पश्चात्ताप के अगनमें जल कर शुद्ध हो जाना चाहिये ।
बादशाहने कहा, महाराज ! मेरे सब सेवक मांस खाते है, अतःआपका अहिंसामय उपदेश अच्छा नहीं लगता । वे लोग कहते है कि, जिस कार्य को सदियों से करते
आये है, उस कार्य को छोडना नहीं चाहिए | एक बार सब सरदार-उमराव इकट्ठे होकर मेरे को कहने लगे, बापका सच्चा बच्चा वो है,
जो अपनी परंपरा से आये मार्ग को छोडता नहीं उनहोंने एक उदाहरण दिया । सुनकर उसका विरूद्ध दृष्टांत मैने भी दिया । किन्तु वो सब रसनेन्द्रियके लालचू थे । इसलिये छोड
नहीं सकते । SPSGARDSPIRSMSSSSSSSSSSSSSSCIOS,CGSORDSMISSIOSSESARIDGES
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Pascoekarekassekassekassekassemappelas,
महाराज ! दुसरों की बात जाने दो । मेंने भी खुद ऐसे ऐसे पाप किये है । ऐसा किसीने नहीं किया होगा । जब मैने चितोडगढ जीत लिया उस समय राणा के मनुष्य-हाथी-घोडे मारे थे । इतना ही नहीं चित्तोड के एक कुत्तेको भी नहीं छोडा था । ऐसे पापसे मैने बहुत से किल्ले जीते है | सूरिवर ! मुझ को शिकार का भी बहुत शोख था । मेडता के रास्ते पर २२४ हजीरों पर पांचशौ-पांचशौ हिरण के सींग टींगाये है । अरे, हर घरमें एक हरणका चमडा-दो सींग और एक महोर बांटी थी । गुरूजी । आपको क्या मेरी करूण कहानी सुनाऊं, मै रोजाना पांचशौ-पांचशौ चिडियों की जीभ बडे स्वादसे खाता था । जबसे आपका दर्शन हुआ और उपदेशवाणीका पालन किया है तब से वह पाप छोड दिया । इतना ही नहीं शुद्ध अंतःकरण से मैंने छ:महिने तक मांसाहार नहीं करनेकी प्रतिज्ञा भी की है। अब तो मास से ऐसी नफरत हो गई है कि हमेशा के लिये मांसाहार छोड ?
सूरि भगवंत बादशाह की सरलता एवं सत्यप्रियता देखकर राजीके रेड | बन गये और उनके पर बार-बार धन्यवाद की बारीश वर्षाई ।
इतनेमें देवीमिश्र नामक ब्राह्मण पंडित वहां आये । बादशाहने पूछा, पंडितजी ! सूरिजी कहते है व ठीक है या नहीं । पंडितजीने कहा, हजूर ! सूरिजीके वाक्य वेदध्वनि जैसे है, इसमें कुछ विरूद्ध नहीं है। वे तो बडे विद्वान, तटस्थ एवं स्वच्छहृदयी महात्मा है । इस वाक्य से सूरिजीकी और बादशाहकी श्रद्धा वज्रलेपवत् बन गई इसमें कोई आश्चर्य नहीं है ।
समय बहुत हो गया । बादशाह महलमें गये और सूरिजी उपाश्रयमें पधारे।
सूरिजीकी बार-बार मुलाकात से और विविध विषयकी चर्चा से बादशाह को बहुत आनन्द हुआ और सूरिजीकी विद्वता से आफ्रीन होकर बोलने लगे, गुरूजी को जैन लोग जैन गुरूकी तरह मानते पूजते है । मगर वे
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xosbexas,coxas, cemas.cekas,cekas,cekas,coxas, तो सारे राष्ट्र को वन्द्य और पूजनीय है । इसलिये उनका भारी सम्मान करना चाहिये । ऐसा सोचकर वें विचारमें बैंठ गये ।
एक दिन अपनी राजसभा में सूरिजीको 'जगद्गुरू' पदसे अलंकृत किया और इस पद-प्रदानके हर्षमें बादशाहनें पशु-पंखीको बंधन से मुक्त कर आजादी दे दी।
एक बार धर्मचर्चा चल रही थी । उस समय बीरबलको भी प्रश्न पूछने की अभिलाषा हुई इसलिये बादशाह की अनुज्ञा याची । बादशाहने मंजूरी दी । तब बीरबलने शंकर सगुण के निर्गुण, ईश्वर ज्ञानी या अज्ञानी इन दो विषय के प्रश्न पूछे, सूरिजीने तर्क और विद्वताके साथ ऐसा समाधान किया कि, बीरबल सुनकर बडे खुश हो गये ।
इस मुलाकात के बाद बहुत दिन तक सूरिजीको बादशाह मिल न सके | इसलिये सूरिजीको मिलनेकी सम्राटको बडी आतुरता हुई ।
सूरिजी पधारे और प्रभावोत्पादक उपदेश सुणाया । इस बार सूरिजीने सम्राटको महत्वका कार्य बतलाया कि, आप ! मेरे कथनानुसार कई अच्छे अच्छे कार्य करते हो । तो भी लोक कल्याण की भावना मेरे अंतरमें प्रगट हुई है कि, आप अपने राज्यमें से 'जजिया कर उठालो, जो तीर्थों में हर यात्रीके पास टेक्स लिया जाता है व बंद करा दो । कयोंकि इन दो बातों से लोकों को बहुत दुःख होता है, वह नहीं होगा । इससे जन-वर्गमें आनंद की लहर बढेगी और सब आपको कल्याण के आशीष देंगे । उसी समय बादशाहनें दोनों फर्मान लिख दिये।
सूरिजी दिल्लीमें रहे थे । मगर बीच-बीच मथुरा, ग्वालियर आदि तीर्थोकी यात्रार्थ भी पधारे थे । यात्रा करके पुनःसूरिजी आगरा पधारे तब सदारंग नामक श्रावाकनें हाथी, घोडा आदि कई पदार्थो का दान देकर भव्य स्वागत किया था । इधर बहुत समय हो जाने से विजयसेन सूरिजी के बार-बार पत्र आते थे । आप शीध्र गुजरात पधारिये । vasele deceasemaa.eekas/Per/a3,
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किया ।
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एक बार समय देखकर सूरिजीने बादशाह को कहा, मेरे को गुजरात अवश्य जाना ही पडेगा । तब बादशाहने कहा, आप इधर स्थिरता किजीये । आपके सुधा-सदृश दर्शनसे मेरेको बहुत लाभ हुआ है । मगर सूरिजी का जाने का दृढ निश्चय होने सें बादशाह ने अनुमति दी और जब तक इधर विजयसेन सूरिजी न पधारे वहाँ तक आपके एक विद्वान मुनिवर को इधर रखकर जावे इतनी मेरी आपसे प्रार्थना है ।
सूरिजीने उपा. शान्तिचंद्रजीको रोककर दिल्लीसे गुजरात प्रति प्रस्थान
-: शिष्यों
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द्वारा विशेष बोध :
-2038
अकबरने अपनी धर्मसभामें जैसे विजयहीरसूरिजीका नाम पहली श्रेणीमें रखा था । ऐसे पाँचवीं श्रेणीमें विजनसेनसूरि और भानुचंद्गणि दोनों का नाम रखा था । (आइन. इ. अकबरी ग्रंथ:- विजयसेनसूर और भानचंद )
उपाध्याय शान्तिचन्द्रजी महान विद्वान और १०८ अवधान करने की अप्रतिमशक्तिवाले थे । उन्होंने राजा महाराजाओंको प्रभावसम्पन्न उपदेश सुनाकर बहुत सम्मान प्राप्त किया था । और अनेक विद्वानोंके साथ वादविवाद कर विजय - वरमाला के वर बन चूके थे । उन्होंने बादशाह को अहिंसा भक्तप्रेमी बनानेके लिये २२८ श्लोक प्रमाण 'कृपारसकोष' नामक ग्रंथ बनाया था । वो ग्रंथ बादशाह को रोजाना सुनाते थे । जिससे फलस्वरूप बादशाह का जन्मका महिना, हर रविवार, हर संक्रान्ति, और नवरोजाके दिनों में कोई भी व्यक्ति जीवहिंसा न करे ऐसा फर्मान बादशाह के पास निकाला था ।
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एक दिन बादशाह लाहोर में था । शान्तिचन्द्रजी भी वहां थे । आप इदके अगले दिन बादशाह के पास चले गये । और कहने लगे, मेरे को कल जाने की भावना है ।
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___बादशाहने पूछा, अकस्मात क्यों जानेका सोचा ? तब उपाध्यायजीनें कहा, कल इदके दिन हजारो नहीं बल्के लाखों जीवों की कतल होनेवाली है । उनके आर्तनाद से मेरा हृदय भारि कंपित हो जायेगा, इसलिये जाने का विचार किया है।
सूरिजी के पास बादशाहने जीवहिंसामें महापाप है । यह बात बहुत दफे सुनी थी । अतः उसने अपने उमराव-सरदार-अबुल-फजल और मौलवीओ को बुलाकर मुसलमानों का परम श्रद्धेय धर्मग्रंथ को पढाया । बाद लाहोर में ढंढेरा पिटवा दिया कि कल इदके दिन कोई भी व्यक्ति किसी भी जीवकी हिंसा न करे ।
थोडे दिन बाद उन्होंने बादशाह के पास से मोहरमके महिनें और सूफी लोग के दिनों में तथा बादशाह को तीन लडके जहांगीर, मुराद और दानीयाल के जन्म दिन के महिने में जीव हिंसा नहीं करने का फर्मान जाहिर कराया था । सब मिलकर एक सालमें 'छ: महिनें और छ: दिन अधिक' अपने सारे राष्ट्र में जीवहिंसा बंद करवाई थी । इतना सूरिजीका बादशाह पर प्रभाव पडा
था ।
उपाध्यायजी वहांसे विहार कर गुजरात पधारे, तब भानुचन्द्र और सिद्धिचंद्र गुरू-शिष्य बादशाह के पास ठहरे थे । उन्होंने अपनी विद्वता और कुछ चमत्कारपूर्ण विद्या से बादशाह को बहुत आदरवाला बनाया था । बादशाह जहां जाते थे वहां भानुचन्द्रजी को साथ में ले जाते थे ।
एक समय की बात है । बादशाह के शिर में बहुत पीडा हुई । वैद्य, हकीमों की दवाई की, मगर पीडा शांत न हुई । तब उसने भानुचंद्रजी को बुलाकर, उनका हाथ अपने शिर पर रख दिया । थोड़ी ही देरमें दर्द नष्ट हो गया । इसकी खुशाली में उमरावोंने कुर्बान के लिये पांचशौ गाय इकट्ठी की। SABSESSORDS, BSORBSESSOCIBSICSSRDSMISSPROSHNSORDSMISSIRSSHES
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यह देखकर बादशाह अत्यंत क्रोधवश होकर कहने लगा, मेरा दर्द मिट गया इस खुशाली की दिवाली में दुसरें जीवों के दुःखकी होली होती है । अतः सब गायोंको छोड़ दो । तत्काल उमरावों ने सारी गायों को छोड़ दी ।
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एक समय बादशाह काश्मीर गये थे । भानुचंद्रजी भी साथ में थे । बीरबल ने सम्राट को कहा, सब पदार्थ सूर्य से उत्पन्न होते है । अतः आप सूर्य की उपासना करो । बादशाह के अनुरोध से सूर्य का सहस्त्रनाम भानुचन्द्रजीनें बना कर दिया । बादशाह हर रविवार को भानुचन्द्रजी को स्वर्ण के रत्नजडित सिंहासन पर बैठा कर 'सूर्यसहस्त्रनामाध्यापक' ग्रंथ सुनते थे ।
बादशाह के पुत्र रोखुजी की पुत्रीने मूलनक्षत्रमें जन्म लिया । ज्योतिषि कहने लगा, यह लडकी जो जिंदा रहेगी तो बहुत उत्पात होगा । अतः उनको जलप्रवाह में बहा दो ।
शेखने भानुचंद्रजी की सलाह माँगी । भानुचन्द्रजीने बाल - हत्या का महापाप दिखाकर ग्रह की शान्ति अर्थे अष्टोतरी शान्ति स्नात्र पढाने का विधान बताया । तब शेखुजीनें एक लाख रूपये व्यय कर अष्टोत्तरी शान्तिस्नात्र ठाठ से पढाई । इस दिन सारे संधने आयंबील की तपस्या की थी ।
इस पवित्र मंगलिक कार्य से बादशाह और रोखुजीका विघ्न चला गया और जैन शासन की बडी प्रभावना हुई ।
उस समय भानुचंद्रजी को उपाध्यायपद देने हेतु बादशाहनें सूरिजी पर विज्ञप्ति - पत्र लिखा। उन्होंने मंत्रीत वासक्षेप भेजा । भानुचंद्रजी को बडे समारोह के साथ वाचक पदसे अलंकृत किया गया । तब अबुलफजलने पच्चीस घोडा और दस हजार रूपये का दान दिया और संघने भी बहुत दान - सरिता बहाई ।
भानुचंद्रजी जैसे विद्वान थे वैसे उनके शिष्य सिद्धिचन्द्र भी विद्वान और शतावधानी थे । बादशाहने उनके चमत्कार से उन्हें खुशफरम' की
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पदवी दी थी । सिद्धिचंद्रने, बुरहानपुरमें बत्तीस चोर मारे जाते थे उनको बादशाहकी आज्ञा लेकर छुडाये थे और एक बनिया हाथी के पाँव नीचे मारा जाता था उसको भी छुडाया था । उनका फारसी भाषापर अच्छा प्रभुत्व था ।
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बादशाहने सिद्धिचन्द्रजी के साधु धर्मकी परीक्षा करने के लिये पहले बहुत धनवैभव का लोभ दिखाया। मगर जब वे चलित न हुवे तो उन्होंने मारने की भी धमकी दी, उससे भी वो डरे नहीं बल्कि उन्होंने बादशाह को ऐसे रेसे खुल्ले शब्दोमें सुना दिया कि बादशाह सुनकर उनके चरणकमलमें अपना शिर डालकर भावपूर्ण वंदना करने लगा ।
एक बार बादशाह लाहोरमें थे । अकस्मात् उनकी सूरिजी को बुलाने की मनोकामना हुई । अबुलफजल को बुलाया, और सुरिजीको आमंत्रण देने को कहा, तभी अबुल फजलनें कहाँ, नामवर ! वो तो बडे वृद्ध हो गये है, मगर विजनसेनसूरिको आमंत्रण दो, सूरिजीने भी उनको भेजने का वचन दिया है।
तब बादशाहनें सूरिवर पर श्रद्धा पूर्ण ऐसा भाव -सभर पत्र लिखा कि पढकर सूरिजी गहन विचार-धारामें लीन हो गये। एक तरफ अपनी वृद्धावस्था और दूसरी तरफ शासन - उद्योत के कारण बादशाहकी विज्ञप्ति, 'इतो व्याघ्रः इतो दुस्तटी' ऐसा सूरिजी को हो गया। मगर सूरिजीने निजी स्वार्थको गौण करके विजयसेन सूरिजीको दिल्ली जाने की अनुज्ञा दी। उन्होंने भी गुरूआज्ञा शिरोधार्य करके वि.सं. १६४९ मा. सु. ३ को प्रयाण किया ।
विजयसेन सूरिजी विचरते - विचरते ज्येष्ठ सुद १२ के मंगल दिन लाहोर पधारे । तब भानुचंद्रजीने संघ के साथ भव्य स्वागत यात्रा निकाली थी । उनमें बादशाहनें हाथी-घोडा - शाही बेन्डपार्टी आदि भेजकर स्वागत की शोभा द्विगुण बढ़ा दी थी ।
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बादशाहके पास विजयसेनसूरि बहुत दिन रहे थे । एक दिन उनके शिष्य नंदिविजयजीनें विधविध देशोंके राजवींओंसे युक्त राजसभामें
अष्टावधान किया । तब आपके कौशल्य से चमत्कृत होकर बादशाहनें 'खुशफहम्' पदसे आपको विभूषित किया ।
विजयसेनसूरिने बादशाहके हृदय-पट पर ऐसा प्रभाव डाला था कि उन्होंका आप के उपर बहुत पूज्यभाव हो गया था । इस कारण आपका ज्यादा ज्यादा सन्मान करते थे, और बडे बडे उत्सवोंमें सहायता भी देते थे ।
आपका भारी सम्मान देखकर कई ब्राह्मण आदिने अकबर के दिलमें यह बात ठोंस दी, कि जैन लोग इश्वरको नहीं मानते है, गंगाको पवित्र नहीं मानते है, सूर्यदेव को नहीं मानते है । उक्त कथनसे भोले बादशाह को चोट लग गई । उसने विजयसेनसूरि को बुलाया, और उक्त विषय के प्रश्न पूछे, सूरिजीने कहा, आपकी अध्यक्षतामें एक सभा बुलाकर उसका निर्णय करेंगे ।
बादशाहनें एक दिन मुकरर किया । एक तरफ विद्वान ब्राह्मण पंडित आये दूसरी तरफ विजयसेनसूरि-नंदिविजय आदि पधारे । दोनों पक्षोनें अपने -अपने मतका प्रतिपादन किया । इसमें विजयसेनसूरिने तर्क और प्रभावोत्पादक युक्तियोंसे ऐसा निरसन किया कि सारी सभा स्तब्ध हो गई और पंडितजी निरूत्तर बन गये । वहां बादशाहने प्रसन्न होकर सूरिसवाइ' की पदवी देकर आपका बहुमान किया ।
विजयसेनसूरिने अपने उपदेशके प्रभावसे गाय-मेंस-बेल आदि का हिंसा का निषेध और मृत मनुष्यका कर बंद कराया था । और चार महिने तक सिंधु नदी और कच्छ के जलाशयोमें से मछलीर्यां नहीं मारने का फर्मान भी निकलवाया था । Maecenas/melas,ceaselas,cevas,cevaselas,
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-: सुवाओं को प्रतिबोध :
हीरसूरिजी महाराजनें अकबर को जैसा प्रतिबोध दिया, ऐसे राजामहाराजा और सुबाओं को भी बोध दिया था । क्योंकि बादशाह को सरलता से समजा सकते है । मगर सुबा तो सत्ता के मद से मस्त होते थे और अहमेंन्द्र थे । और उस समय अराजकता भी बहुत चलती थी । इसलिये जुल्मी भी वे बहुत थे ।
वि.सं. १६३० सालमें पाटण के सुबेदार कलाखा बहुत जुल्मी थे । उसका नाम सुनके प्रजा कंपित हो जाती थी । ऐसे जीव को भी उपदेश के जल से शान्त बनाकर, जिस बंदी को प्राणदंड की सजा दी थी उसको मुक्त कराया और सारे नगर में एक मास की अमारि की उद्घोषणा कराई।
सूरिजी वापिस गुजरात आ रहे थे तब मेडता के सुबा खानखाना ने मुलाकात की । वो मुसलमान थे, इसलिये उन्होंने मूर्तिपूजा के विषय में प्रश्न पूछे, सुरिजीने ऐसा समाधान दिया कि, उसने खुश होकर सूरिजी को बहुत मूल्यवान पदार्थो की भेट दी । सूरिजीने वो नहीं ग्रहण करके अपना धर्माचार का ब्यान दिया । जिससे वो सूरिजी पर आफ्रीन हो गये।
सिरोहीके आंगणमें सूरिजी पधारे । तब वहां का राजा महाराव सुरतान पर ऐसा उपदेश का प्रभाव डाला कि, प्रजा पर जुल्मी कर लेते थे वो बंद करा दिया । और बिना कारण एकसो श्रावकों को जेलमें डाला गया था । जिससे सारे संधमें हाहाकार की करूण हवा प्रसर गई थी । सूरिजीनें कोई कारण बताकर सब मुनिवरों के साथ आयंबील कर महाराजासे भेट की । और ऐसा प्रभावोत्पादक बोध का धोध बहाया कि राजानें उसी दिन शामको सबको मुक्त कर दिया । SARTHRSSROSMETROSHESHABSITESRIDGEBSIRDSHISEKOSHESAIDS,99
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__ ऐसे खंभात के सुल्तान हबीबुल्लाह, अहमदाबाद के सुबा आजयखां, पाटण के सुबा सीमल्को (वि.सं. १६६० के समय) सिद्धाचल यात्रा संघ में जाते समय अहमदाबाद में सुलतान मुराद (अकबरके पुत्र) आदि कई राजाओं, सुबेदारों को उपदेश-वारि से बोध देकर अहिंसा देवी का साम्राज्य प्रसारा था और शासन की महाप्रभावना की थी।
सिरोही में वरसिंह नामक बहुत धनी-मानी गृहस्थ था | उनके ब्याह की तैयारी चल रही थी | मंडप डाला गया था । सुबह-शाम शहनाई के बाजा बज रहे थे । सुहागण स्त्रिए धवल मगल गीते मधुर कंठ से ललकार रही थी । वरसिंह चुस्त धर्मी थे । रोजाना सुबह शाम सामायिक-प्रतिक्रमण उपाश्रयमें करते थे | उस दिन उसने सामायिक सुबह लिया था । तब उनकी भावीपत्नी पू.सूरिजी को वंदनार्थ आकर वंदन करके पीछे, सूरिजी के पास बैठे हुये वरसिंह को भी उसने वंदना की । थोडे दूर बेठे हुये एक भाईने कहा, अब तो तुजे दीक्षा लेनी पडेगी । कयोंकि तेरी भावीपत्नी तुझको वंदन करके अभी गई । तब उसने कहा, जरूर में दीक्षीत बनूंगा । अब वो घर पर गये, सारे कुटुंम्ब को इकट्ठा किया और अपनी दीक्षा की बात जाहिर की । बहुत अरसपरस चर्चा हुई । अंत में उनको विजय मिली । ये ही शादी का मंडप दीक्षा के मंडप में परिवर्तन हो गया । और ठाठ से उनकी दीक्षा हुई । आप आगे पंन्यास हुये और १०८ शिष्य के गुरू बने थे |
इसलिये विदित होता है कि सूरिजीने १०८ आदमीओं को दीक्षा दी थी । १०८ साधुको पंडित पद और सात साधुको उपाध्यायपद दिया था । आपको प्रबल पूर्व की पुण्याई से सब मिलाकर दो हजार साधु की संपदा थी याने दो हजार साधु के नेता थे । नेता हो जाने से प्रशंसा नहीं होती मगर समुदाय का संगठन, शासन के हित और रक्षा के लिये सदैव कटिबद्ध रहना वो सर्वश्रेष्ठ सराहनीय था । आपने अंतः तक उस कार्यका पूर्ण पालन किया था । aspeka83kasumas.ceCUARYUSRAKAB.CIESCHENBLOKANTAGADIR
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सूरिजी के मुनिवरो में कई व्याख्यान विशारद और कवि थे । कई योग ध्यानी एवं उग्रतपस्वी थे । शतावधानी-क्रिया कांडी एवं तार्किक-नैयायिक थे ।
और साहित्य इत्यादि भिन्न-भिन्न विषय के प्रकांड विद्वान भी थे । जिससे अनेक लोगों प्रभावित होते थे । इसमें से दो-तीन अग्रणी आचार्यादि श्रेष्ठ मुनि पुङगव की पहिचान कराता हूं । जो सूरिजी के कडे आज्ञांकित और माननीय थे।
विजयसेनसूरि - - - आपका जन्मस्थान नाडलाइ था | जब आपकी सात साल की उम्र थी तब पिताने संयम लिया था और नौ साल की उम्र हुई तब आपने, अपनी माता के साथ सुरत में वि.सं. १६१३ ज्ये. सु. १३ के मंगल दिन दीक्षा ली थी । आप इतने विद्वान थे कि आपने योगशास्त्र के प्रथम श्लोकके ७०० अर्थ किये थे | आपको वि.सं. १६२६ में पंन्यासपद और वि.सं. १६२८ में उपाध्याय और आचार्यपद से अलंकृत किया गया था | अहमदाबाद-पाटणकावी आदि नगरों में चार लाख जिनबिम्बों की आपने प्रतिष्ठा की थी । और तारंगा-आरासर-सिद्धाचल आदि मंदिरों का जिर्णोद्धार भी कराया था । जब आप गच्छनायक हुये थे तब आपके समुदायमें ८ उपाध्याय, १५० पंन्यास और बहुत साधु विद्यमान थे । आप ६८ साल की आयु पुर्णकर खंभात के परा-अकबरपुरमें स्वर्ग सिधाये थे ।
शांतिचन्द्रजी उपाध्याय - आपके गुरू सकलचन्द्रजी थे । आपने इडर और सुरत में दिगंबराचार्य के साथ वाद करके विजय प्राप्त किया था । वि.सं. १६५१ में आपने जंबुद्विपपन्नति की टीका करी है | आपके चारित्र के प्रभाव से वरूणदेव सदा आपके सान्निध्य में थे । इसलिये आपनें बादशाहको कई चमत्कार बताकर अहिंसा और शासनकी प्रभावना करी थी ।
पाठकवर भानुचन्द्रजी - - - आपकी जन्मभूमि सिद्धपुर थी । आप बचपण से बहुत चतुर थे । आपका दुसरा भाई भी था । आप दोनों साथ SARESHESEARDSMISSRDSHASSACBSHSSCRIBSMEBSCBSMISSIRESHESARIDGHTS
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exarbekas,sekas,nekas,exas,Deras,celar,sekas, में प्रवजीत हुये थे । आपकी विद्वता और योग्यता से सूरिजीने बादशाहके पास आपको रखा था । उन्हों का ऐसा प्रभाव बादशाह पर पड़ा था कि वो आगे के प्रकरणमें देखा गया है । अकबर के देहांत के बाद भी भानुचंद्रजी पुनःआगरा गये थे, और जहांगीरके पास फरमान कायम रखने का और उन्हें पालन कराने का हुकम कराया था | जहांगीर को भानुचन्द्रजी पर बहुत श्रद्धा थी । आपनें बुरहानपुरमें उपदेश के प्रभाव से दस नये मंदिर बनवाये थे । जालोर में एक ही साथ एकतीस पुरूषों को आपने दीक्षा दी थी । आपके तेरह पंन्यास
और ८० विद्वान शिष्य थे। 1 और भी वाचक कल्याणविजय, पध्मसागरजी, उपाध्याय धर्मसागरजी गणि, सिद्धिचन्द्रजी, नंदिविजय, हेमविजयजी आदि भी धुरंधर मुनिवर थे । उन्होंने भी स्व-पर कल्याण के कार्य कर शासन की विजयपताका चारों और लहराई थी।
-: सूरिजी का स्वर्गगमन :
सूरिजी दिल्ही से विहार करते करते नागोर पधारे थे । इधर जैसलमेर का संध वंदनार्थ आया । उन्होंने सूरिजी की सोनैया से पूजा की थी। आप इधर से पीपाड पधारे तब खुशाली में ताला नामक ब्राह्मणनें आपके स्वागत में बहुत धन व्यय किया था । वहाँ से आप सिरोही-पाटण-अहमदाबाद होकर राधनपुर पधारे | संधनें छः हजार सोनामहोर से आपकी गुरू पूजा की थी।
पुनः आप पाटण पधारे, उस समय आपको एक स्वप्न आया, "मैंने हाथी पर बैठकर पर्वतारोहण किया, और हजारो लोग वंदन कर रहे है ।'
आपने सोमविजयको स्वप्न सुणाया, सोमविजयजीने कहा, आपको सिद्धाचल की यात्रा का महान लाभ होगा । WRESHESEARESHDSABSABSORBSITPSABSITESHRESTHETRESHESARIASIS
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CONDOKEEN
थोडे ही दिनों में आपकी पुनित निश्रा में पाटण से सिद्धाचलका छ'रीपालक संघका प्रस्थान हुआ । गुजरात-काश्मीर - बंगाल - पंजाब के बड़ेबडे शहरों में आदमिओं को भेजकर संघ में पधारने की विनंति की गई। बहुत लोग संघ लेकर आये । इस संधमें ७२ संघवी थे। इनमें श्रीमल्लसंधवी के ५०० रथ थे ।
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सोरठके सुबेदार नोरंगखांको विदित हुआ सूरिजी बडे संघ के साथ आ रहे है । उस समय उसनें आगेवानी लेकर आपका भव्य स्वागत किया । इस संधमें पचास गांव-नगरोंके संघ सम्मिलित हुये थे । कहा जाता है कि, इस यात्रा - संधमें एक हजार साधु और दो लाख मनुष्य थे । पालीताणा में आपको वंदना करते हुये डामर संघवीने सात हजार महमुंदिका (चलनी नाणा) का व्यय किया था ।
दीवबंदर की लाडकी बाई नामक श्रावीकानें विज्ञप्ति की, कि आप सब जगह सग्यग्ज्ञान का प्रकाश डालते हो मगर हम लोग तो अंधरे में गीरे है ।
सूरिजीने कहा, आपकी भावना हो ऐसा होगा । उस समय एक आदमीने पालीताणासे दीवबंदर जाकर संघ को सूरिजी की पधारने की वधामणी दी । संधनें उसको चार तोले की सोनेकी जीभ, वस्त्र और बहुत लहारीय भेट दी ।
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आप, पालीताणासे महुवा आदि होकर उना पधारे । उस समय जामनगर के दीवान अबजी भणसालीने आकर आपकी और सब साधुकी स्वर्णमुद्रासे नव अंगकी पूजा की और एक लाख मुद्राका लुंछन किया, उतना ही नहीं याचकोंको बहुत दान भी दिया ।
अब अपन सूरिजीके आंतरिक गुण-श्रेणी बताकर इन सुगुण- मौक्तिक से अपना जीवन सभर बनाइये ।
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Skop,genas,Bekas/2384anmemas,Ceka,DekaT/90DS/KO
सूरिजीमें क्षमा-समता-दाक्षिण्यता-गुरूआज्ञा इत्यादि गुण इतने ओतप्रोत थे कि, जब अपन उनके जीवन-चर्या के एक-दो प्रसंग देखेंगे तो विदित हो जायेगा ।
एक बार गोचरीमें खीचडी अत्यंत खारी आई थी । वह खीचडी सूरिजीके खानेमें आई । आप मौन होकर आहार कर गये । पीछेसे श्रावक दौडता-दौडता आया और कहने लगा, महाराज मेरी बहुत गल्ती हुई माफ करें । साधुनें पूछा, कया हुआ ? उसने उक्त प्रसंग को सुणाया । शिष्यों, सूरिजी के मौनसे दिग्मूढ हो गये, और बोलने लगे, आपनें रसनेन्द्रिय पर कितना काबू किया है । आप रोजाना बारह व्य (चीज) आहारमें लेते थे ।
1. एक बार आपके कम्मर में फोडा हुआ था । वो बहुत पीडा कर रहा था । रातको एक श्रावकने भक्ति करते हुये अपनी अंगूठी छू जाने से वो फोडा फूट गया । खुन बहने लगा । उस समय आपको इतनी पीडा हुई कि, आपने एक भी शब्द अपने मुंह से नहीं निकालकर उस पीडाको सहन किया । सुबह सोम विजयजीने पडिलेहणके समय उत्तरपटो (चादर) रकतवर्णवाली देखी । सूरिजीनें रातकी बात सुनाई । श्रावकके अविनयसे शिष्य को खेद हुआ | मगर सूरिजीने ऐसा उत्तर दिया कि, साधु मंडली गुरूवरकी सहनशीलता पर मुग्ध हो गई |
गुरूदेव के प्रति आपकी भक्ति भी इतनी थी कि, एक समय गुरूदेव विजयदानसूरिजीनें आपको पत्र भेजा । शीध्र पत्र पढकर आ जावें ।
आपने पत्र पढा, उस दिन आपको छठ(दो उपवास) था । श्रावकोंने पारणा के लिये बहुत आग्रह किया | मगर आपने तुरंत ही बिना पारणा किये विहार करके गुरूवर के पास पहुंच गये | जब गुरूवरको मालुम हुआ तब आपकी गुरूभक्ति पर गुरूदेव अत्यंत प्रसन्न हो गये । SUDSKOSYETLOSNETLOSUDSKOSKETILBUDTABELDT ABSUDINE
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आप, एकांतमें घंटों तक खडे-खडे ध्यान करते थे । कितनी बार तप्त हुई बालुका पर बैठकर आतापना लेते थे । एक बार सिरोहीमें खड़े-खड़े ध्यान करते थे, सहसा चक्कर आनेसे गीर गये । सब साधु सोये हुये उठ गये । सबनें आपको विनंती की, कि आपका शरीर अब बलहीन हो गया है । इसलिये बैठे-बैठे ध्यान कीजिये | आपकी सुखाकारी से संधमें और समुदायमें क्षेमकुशल रहेगा । तब आपने नश्वरदेहकी ऐसी महिमा समझाई कि, सब मुनि स्तब्ध हो गये और आपनें देह पर का ममत्व कितना दूर किया है उसकी प्रशंसा करने लगे।
__ आप, जैसे ज्ञानी-ध्यानी-अष्टप्रवचनमाताके पालनमें सतत उपयोगशील थे । ऐसे तपस्वी भी थे । आपनें अपने जीवनमें ८१ अठ्ठम, २२५ छठ, ३६०० उपवास, दो हजार आयंबील, दो हजार नीवी के साथ वीशस्थानक तपकी वीश बार आराधना-तपस्या की थी।
तीन महिने तक ध्यानमें बैठकर सूरिमंत्र का जाप किया था । और तीन महिने तक ध्यानमें बैठकर सूरिमंत्र का जाप किया था । और तीन महिने तक दिल्ली में एकासण-आयंबील-नीवी एवं उपवास किया था । ज्ञान की आराधनार्थे २२ महिने तपस्या की और गुरूतपमें २३ महिने तक छठ्ठ-अठ्ठम आदि किया था । रत्नत्रयीकी आराधनाके लिये २२ महिने बारह प्रतिमा वहन की थी ।
आपके देहमें वय और अशुभोदयसे राग आक्रांत हो गया था । आपने औषध लेनेका बंद कर दिया । संधमें हाहाकार मच गया । श्रावकोंने उपवास करके, और श्रावीकाओंने संतानोको स्तन पान कराना बंदकर हडताल पर उतर गये, और उपाश्रयमें सूरिजी दवाई ले इस लिये बैठ गये ।
सोमविजयजी आदि साधु के अति आग्रहसे अपनी इच्छा विरूद्ध औषध लेनेकी स्वीकृति दी । चंद्रको देखकर सागर उमटता है ऐसे संघमें हर्षका सागर उछल पड़ा । exorcelas,Bekasvarexas,gekas,celascoelas
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Mas cenas, cemas,celashekarelas,
parekas, गच्छकी चिंता और शासनके हितके कारण आपने विजय सेनसूरिको बुलानेकी तीव्र उत्कंठा हुई । साधुओंने मुनि धनविजयजी को उग्र विहार कराकर लाहोर भेजा । बादशाहकी आज्ञा लेकर विजयसेनसूरिने उनाकी और विहार कर लिया । जैसी आपको शिष्यको मिलनेकी तमन्ना थी वैसी शिष्यकों भी शीघ्र आपकी सेवामें पहुंचने की उम्मीद थी ।
पा
विजयसेनसूरि जैसे उग्र विहार कर रहे थे, ऐसे इधर भी सूरिजीके देहमें रोग तीव्र रूप पकड रहे थे ।
चातुर्मास आया, पर्युषणापर्व आया । अभी विजयसेनसूरिजी नहीं आये । चिंता से आप अत्यंत व्यथित हो रहे थे । वाचक कल्याणविजयजी, वाचक विमल हर्ष और सोमविजय ने कहा, गुरूवर ! आप निश्चिंत रहे विजयसेनसूरिजी शीघ्र आ रहे है।
पर्युषणमें कल्पसुत्र का व्याख्यान आपनें ही दिया । इससे परिश्रम बहुत पडा और स्वास्थ्य ज्यादा शिथिल बना ।
वि.सं. १६५२ के भा. सु. १० की मध्यरात्रिको आपने वाचक विमल हर्ष आदिको बुलाया । और कहने लगे, विजय सेनसूरिजी नहीं आये । इसलिये जैसी आप सबनें मेरी आज्ञा और सेवा उठाई है, ऐसी विजयसेनसूरिकी सेवा और आज्ञा का पालन करना । समुदायमें सदा संघठन रखना और शासन प्रभावना जैसे हो ऐसी रीतिसे वर्तना । ऐसा मेरा अनुरोध हैआज्ञा है ।
___और मैंने अभी तक सबको सारणा-वारणा आदि प्रकारसे सब कुछ कहा होगा । इसलिये सबको खमाता हुं-मिच्छामिदुक्कडं देता हुं । मानो कोई हृदयमें वज्र न डालता हो ऐसी हृदय-द्रावक सूरिजीकी वाणी सुनकर शिष्यों के हृदय फुटने लगे और नेत्र में से अविरत अश्रुधारा बहने लगी । SABSHSSCRIBSHSSCRIBSABSRIBSITSSRDSMISSICDSHPSSCBSESSORISSIS
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29,3xlar,Bekas pemas, elas,senam,gekas,Sex@TAS
सोमविजयजीने कहा, आपनें तो हमारा पुत्र जैसे पालन किया है । अंधेरेमें गिरे हुये हम को प्रकाशमें लाये हो । आपका हमनें बहुत अपराध-गुन्हा किया है । आप तो गुणके सागर है । अतः त्रिविध-त्रिविध हम सब आपको खमाते है । आप, क्षमा दान करें ।
आपने सकल जीवराशिको क्षमापना करते हुवे चारशरणां, सुकृतका अनुमोदन और दुष्कृतकी गर्हा की । सुबह हुई । भा. सु. ११ का दिन सुबहसे सारा उपाश्रय श्रावक-श्राविकासें ठसों ठस भर गया । आप तो ध्यानमें लीन हो गये थे । शाम हुई, प्रतिक्रमण किया । बादमें आप, पध्मासनमें बैठकर हाथमें माला लेकर अरिहंतध्यानमें मस्त बन गये । चार माला पूर्ण हुइ । पाँचवीं माला गीनते-गीनते सहसा गिर पडे, और आत्म-हंसलो देह-पिंजरको छोडकर स्वर्ग प्रति मुक्त बन कर चला गया । वहाँ जय जय नंदा के जयनाद हुए । इधर गुरू विरह का आर्तनाद गुंज उठा । आप, ५६ साल का सुविशुद्ध संयम पालन करके ६९ साल की आयुः पूर्ण कर स्वर्धाम पधारें ।
___गाँव गाँव में कासीद द्वारा कालधर्मका समाचार भेजा गया । इधर संपूर्ण जैन-जैनेतर वर्ग एकत्र हुआ | आपकी अंत्येष्ठी क्रिया कराई । तेरह खंडकी भव्य विमान जैसी पालखी बनाके इसमें आपके विभूषित देहको पधराया । हजारों लोगोंने विविध प्रकारकी दानकी निधि उछाली । घंटानाद बजाया । श्मशानयात्रा गाँव बाहर आंबावाडी में आई । इधर देहको चितामें पधराया, तो संधर्के हृदयमें से नेत्रो द्वारा अश्रु बाहिर आये । चिता प्रगटकी गई
और इसमें १५ मण चंदन ५ मण अगर-३ रोर कपुर-२ शेर कस्तुरी-३ शेर केसर और ५ शेर चुआ डाला गया । पार्थिव देह नष्ट हो गया मगर यशोदेह स्थिर रह गया । सब साधुओंने आपके विरह-वेदना से अठ्ठम किया था।
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Do
जहां आपका अग्नि संस्कार हुआ था । इसके आसपास की २२ वीघा जमीन बादशाहनें जैन संघ को अर्पण की थी । वह स्तुप बनाकर पगलांकी प्रतिष्ठा की गई ।
જગદગુરૂ શ્રીહીરવિજયસૂરીશ્વરજી દાદા
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इधर विजयसेनसूरिजी उग्र विहार करते ( भा.व.छ को) पाटण पधारे । आपनें सोचा, गुरूजीका सुखद समाचार सुनेंगे। किंतु इधर तो आपको हृदय - भेदक गुरूवरके कालधर्मके समाचार मीलें तुर्त ही निश्चेत बनके गीर गये । और भगवान गौतम स्वामीकी तरह गुरू-विरह के मारे अति हृदयद्रावक आक्रंद के साथ ज्यादा बोलने लगे तीन दिन ऐसा रहा । पाटणका सारा संघ एकत्र हुआ। आपको बहुत समझाया और चित्त स्वस्थ कराया । आपनें आहारपाणी लिया । वहांसे आप उना की ओर पधारे ।
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इधर चमत्कार एक ऐसा हो गया कि, जब सूरिजीको अग्निदाह दिया । तब सारे आम्रवृक्ष पर फल-महोर आ गये । वंध्य आम के पेड थे इस पर भी फल आ गये । वैशाखमें आने वाले आम फल भाद्रपद में कैसे आये सब आश्चर्यमें पड गये । सब फल बडे-बडे शहरमें, अबुलफजलको और बादशाहको भेजे गये, और सूरिजीके चमत्कारका पत्र भेजा गया । जिससे बादशाहकी सूरिजी के प्रति भक्ति - श्रद्धा और बढ गई और उन्होंने स्तुति भी की ।
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यह स्तुति बाहशाहके शब्दोमें प्रस्तुत कर चरित्र समाप्त करता हु । "उन जगद्गुरूका जीवन धन्य है । जिन्होंने सारी जिंदगी दुसरोंका उपकार किया । और जिनके स्वर्गगमन पर असमयमें आम फले और जो स्वर्गमें जाकर देवता बनें ।"
"इस जमानेमें उनके जैसा कोई सच्चा फकीर न रहा ।"
"जो सच्ची कमाई करता है वही संसार से पार होता है । जिसका मन पवित्र नहीं होता है, उसका मनुष्य भव व्यर्थ जाता है ।"
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हीरसूरीश्वरजी महाराज
जीवन - प्रसंग - १
जैन शासन के बेजोड शासन प्रभावक आचार्य हीरसूरिमहाराजका तपोबल जबरदस्त था। सूरिजीको जब कोई विशिष्ट कार्य करना होता है तब आयंबिल तप अवश्य करते थे । हीरसूरि-महाराजने मात्र अकबर बादशाह को ही प्रतिबोध किया वैसा नहीं था अपितु कितनेही सुबाओकोभी प्रतिबोध किया था ।वि.सं. १६२८ में सिरोहीकी गद्दी पर महाराव सुरतान मात्र १२ वर्ष की उम्र में बेठा था, छोटी उम्र में कई बडे बडे राजाओंको हराकर उनके राज्य जप्त किये थे और राजपूतो की लड़ाई में अनेक बार
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Xascualas,coelassekas,coalas,cenascevaskarys
सिरोहीका राज्य गुमाया भी था. फिरभी राणा प्रताप की तरह स्वतंत्रता प्रिय होनेसे पुनः कैसेभी राज्य हासिल करता था । एक वक्तकी घटना है. सिरोही जैन संधके १०० जितने निर्दोष श्रावकोंको दोषित ठहराकर केदखाने में धकेल दिये । मुख्य आगेवानो के अनेक प्रयत्न करने परभी नहीं छोडे । इस प्रसंग के दोरान आचार्य हीरसूरी म. सा. के समुदाय में ओक घटना घटी. साधु महात्मा स्थंडिल भूमि से आकर इरियावहिया किये बिना सीधे ही अपने कार्य में लग गये, सूरिजीने इसे ध्यान में रखा और शाम को प्रतिक्रमण के वक्त सभी साधुओंको आज्ञा की कल सभीको आयंबिल करना है यह सुनकर सब स्तब्ध बन गये |
___ सूरिजीने कहा गभराने की जरूरत नहीं है इरियावहिया न की इसका प्रायश्चित दिया है. सभीने तप किया साथमें सूरिजीने भी आयंबिल किया तब एक साधु भगवंतने पूछा महाराजजी! आपको आज आयंबिल कयों है ? सूरिजीने कहीं कल मेरा मातरा पडिलेहण किये बिना परठ दिया था अतः,सुनकर साधुओंको दुःख हुआ उस दिन ८० आयंबिल हुए. सूरिजी चाहते तो आयंबिल तप न भी देते किंतु उदेश्य भिन्न था. किसी विशिष्ट कार्य के पूर्व आयंबिल तप अवश्य करते थे । आयंबिल पर अनन्य श्रद्धा थी आज के दिन केदमें रहे १०० श्रावकोंको छुडानेका कार्य करना था हीरसूरि महाराज मनोमन निश्चय करके सिरोही के सूरतान महाराव सूबाके यहाँ गये. श्रावकोको मुक्त करने का उपदेश दिया. सूरिजी की सचोट वाणी सुनकर हृदय पिघल गया. वाणी का ऐसा असर हुआ कि उसी दिन सभी श्रावकोको एक साथ छोड दिया. वास्तवमें हीरसूरि म. के चारित्र का प्रभाव अद्वितीय था. रत्नचिंतामणी सम हीरसूरि महाराजने शासनके अनेकानेक कार्य किये थे.
शत् शत् नमन हो जैनशासन के सरताज-बेताज बादशाह को... Yeseva? Benar Benar Benar,"exaM'OnayoeMarxsema
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vas, 2023.payam,canas,exas, elas, Cenas,C3x20,
प्रसंग - २
हीरसूरिजी, महाराज के रूपमें जब प्रसिद्ध नहीं थे तब की बात है. नई दीक्षा हुई थी. अभ्यास भी अच्छा चल रहा था. अल्प
समय में ही संस्कृत-प्राकृत भाषाका ज्ञान प्राप्त कर लिया था । हीरहर्ष मुनिको वेदान्त, बौद्ध, सांख्य दर्शनका विशेष ज्ञान प्राप्त हो इस हेतु से इन के गुरू दानसूरि महाराजने देवगिरि भेजनेका निर्णय किया - देवगिरि
जो वर्तमानमें दौलता-बाद नाम से प्रख्यात है, विक्रमकी १६ वी और १७ वी सदी में देवगिरि प्रकांड ब्राह्मण पंडितोका शहर माना जाता था, जैन परिवार काफी अल्प संखयामें थे । पेथडशाह द्वारा निर्मित हुआ भव्य जिनालय और पौषधशाला जहाँ विद्यमान है ! हीरहर्षमुनिके साथमें मुनि धर्मसागरजी तथा राजविमलजी को भेजा गया । वहाँ के ब्राह्मण पंडितोसे मुलाकात ली. उनको पढाने की तैयारी दिखाई. किंतु पैसे की बात की तो तीनो मुनि एक दुसरे का मुँह ताकने लगे । यहाँ एक भी ऐसा श्रावक नहीं था कि जिससे पगार के संबंध में बात की जाये वर्तमान समय में तो पगार पंडितजी आदि सब चीजो की सुलभता है. परंतु दुर्भाग्य है कि पढनेवाले नहीं है । तीनो मुनीराज उपाश्रयमें आये. चिंतामग्न और मौन । उसी वक्त एक श्राविका उपाश्रय में आई वंदन कीया शाता पूछी किंतु किसी मुनिने सामने प्रतिभाव न दिया अतः श्राविका विनयपूर्वक चिंता का कारण पुछा । धर्मसागरजीने संपूर्ण बात बताई - गुरूदेव आप निश्चिंत हो जाइये. बालमुनिजी यही रहेंगे. पंडीतजीको भी यही बुलायेंगे और पगार हम देंगे. यह बात सुनकर तीनो मुनि आनंदित हो गये | y sex20,30% 29,3x29,029, 00420,3x20,20x25, Deva
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हीरहर्ष मुनीने लंबे समय तक वहाँ रहकर षडदर्शनका अध्ययन किया, सचमुच ! यह सब लाभ जसमाई को मिला. कयोंकि एक मुनिराज को ज्ञानदान देना यानि हजारो, लाखो लोगो को ज्ञान देना ज्ञानी बने मुनिराज हजारो लोगोंको... भव्यात्माओको ज्ञानपान कराते है ।
प्रसंग -३
गंधारबंदर सूरिजी का आगमन... महान अहिंसाधर्मप्रर्वतक जगद्गुरू श्री हीरसूरीश्वरजी महाराजा के अनेक गुणानुरागी भक्त श्रीमंत श्रावकोमें से एक श्रावक यानि गंधारबंदर के रामजीशेठ दूर सुदूर विचरण करते गुरुभगवंत के आगमन की चातक SHASTROTAKOSHTRIANGRESSIOSHDOS SOOSTERIOS DEIO
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mascotas,c**nekas,Samar,Bemaskas, दृष्टि से प्रतिक्षा करते थे. उसी वक्त एक चारण को समाचार मिला कि गुरूभगवंत खंभात की ओर आ रहे है | चतुर चारणने सोचा अगर यह समाचार शीघ्रातिशीघ्र रोठको दे दिया तो वे प्रसन्न होकर मुजे निहाल करने में कसर नहीं छोड़ेंगे | तुरंत दौडकर गंधार में जाकर रामजी शेठके सन्मुख उपस्थित हो गया । उसने शेठको कहाँ: शेठजी! वर्षोंकी आपकी तमन्ना साकार हो जाये ऐसे आनंदप्रद समाचार लाया हूँ आपके गुरूदेव श्री हीरसूरीश्वरजी महाराज गंधार पधार रहे है समाचार सुनते ही शेठ हर्ष से ऐसे उतेजित हो गए कि अपने पास रही विभिन्न दुकान-खजानाभंडार-दुकान आदि की चाबियों का गुच्छा चारण की ओर फेंका और गद्गद् स्वर में कहाँ. "एसे आनंदप्रदायक समाचार देने के उपलक्षमें तुजे निहाल करना चाहता हूं, चाबी ले चाबी द्वारा जो खजाना दुकान भंडार खूलेगा उसमे रखा संपूर्ण माल तमाम संपत्ति तुजे बक्षिस में दे दी जावेगी । चारण का चित्त चमत्कृत हो गया. कयोंकि ऐसे अद्भूत औदार्यकी तो उसे कल्पना भी नहीं थी । किंतु बाद में उसके कर्ममें भाग्यमें लीखा था उतना ही उसे प्राप्त हुआ. करोडा की किंमत के जवाहरात का खजाना खुले ऐसी भी चाबीयाँ थी किंतु वह चाबी कौनसी थी उसका चारण को कहाँ ख्याल था ? उसने तो सबसे बड़ी चाबी थी वह पसंद करके हाथमें ली वह चाबी ओठके समुद्रनौका व्यवसाय में उपयोगी बडे रस्सीयों के भंडार की थी. बावजुद वह रस्सी भी इतनी अधिक तादाद में थी कि उसकी किंमत के रूपमें चारण को १२ लाख मिले. धन्य ऐसे गुरुदेव को...
धन्य ऐसे परम उपासक भक्त को... PASSPRESHESTROTHERSIOCHEBSITESHDSROSHESARESHESARSTHISSAID
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Kasselas,ceram,pelas emas/ellas, kas, kuong
प्रसंग - ४
बादशाह बिरबल और सूरिजी :- वि.सं. १६३९ ज्येष्ठवदि १३ को फतेपुर सीकरीमें आचार्य हीरविजयसूरिजीके दर्शन करके अकबर धन्य बन गया । पारस को छूने से लोहा सोना बनता है वैसे हिंसक
जीवदया प्रेमी बना । सूरिजीने आठ दिन की अमारी की इच्छा
व्यक्त की बादशाहने १२ दिन
का अमारी का (अहिंसाका) फरमान लिखकर दे दिया । सूरिजीको जगद्गुरूकी पदवी प्रदान की । एक वक्त किसी मुनिको देख अकबरने कहाँ आप लोग तसबी-माला यु कयों फिराते हो, हम युं फिराते है इस में सच्चा कौन है ? दरबारियों के कान सतर्क हो गए किसको सच्चा बताते है ? सूरिजी:- देखो अपने जीवन में मुख्य दो कार्य करने होते है दोष को बहार निकालना, गुण को भीतर लाना. यूं देखो तो दोनो एक ही बात है. दोष हटा दो गुण आयेंगे, गुण जमा दो दोष हट जायेंगे | आपके इसलाम धर्म में दोष को हटाने का महत्व है अतः आप हृदयसे बहारकी और घुमाते है, हमारे यहाँ गुणस्थापन का महत्त्व है बहार से हृदयकी और घुमाते है, अकबर प्रत्युत्तर सुनकर आनंद विभोर हो उठा । बिरबलने सूरिजी को प्रश्न पूछा, शंकर सगुण या निर्गुण ? सूरिजी ने कहाँ सगुण, बिरबल:- कैसे ? मैं तो निर्गुण मानता हूँ, सुरिजी:- इश्वर ज्ञानी या अज्ञानी ? बिरबल:- ज्ञानी, सूरिजी :- ज्ञान गुण या अवगुण, बिरबल :- गुण, सूरिजी :- तो शंकर सगुण कहाँ जाता है ना ? बिरबलने अपने कान पकड लिए । Soalangakao,mayaralanmalas/samassema9,9%
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xas, seas, moxas, mas, somas, ceas, %23, Vaso
प्रसंग - ५
पूज्य हीरसूरीश्वरजी महाराज जितेन्द्रिय भी थे । आज जगतमें पाया जाता है कि सारे झगडे का मूल जबान है. इसके दो कार्य है स्वाद और वाद खाने से अच्छा और बोलने में कडुआ जबकि इतने बडे आचार्य होने के बावजूद स्वाद विजेता थे । एक बार गोचरी में खीचडी आई वापरने के पश्चात् बहन कहने आई महाराज आज आप श्री खीचडी वहोरके गये हो वह वापरी तो नहीं है न ? उसमें गलती से दो तीन जनोंने नमक डाल दिया है. अतः वह ज्यादा खारी होने से खाने जैसी नहीं है । महात्माने सूरिजी को पूछा. आप वापर गये ? हा, वह तो खारी थी ! सूरिजी ने कहाँ मैनें तो बिना स्वाद के उतार ली । ऐसे थे रसनेन्द्रिय विजेता सूरिदेवा ! हीरसूरिश्वरजी महाराजा... SABERDSHEBSKESHESADGHEBSRIDGEBRADGMBERBSFEBSAIDSMEBSAID
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axelao,bekapcsekarxan, Class
प्रसंग -६
4388
युद्ध की छावनी आमने सामने मंडराई थी । बादशाह अकबर के हृदयमें हीरसूरीजीने करूणा गुणको प्रतिष्ठित कर दीया था । एक दिन युद्ध पूर्ण हुआ, बादशाह ने विजयश्री का वरण किया युद्ध का सामान तंबु आदि समेटकर उंटो पर डालने का प्रारंभ किया. एक तंबुका सहारा लेकर कबूतरने घोंसला बांधा था । प्रसूती भी हो गई थी । अंडे की रक्षा मादा कर रही थी. बादशाह की प्राणी-करूणा से नोकर अच्छी तरह अवगत था, अतः उस संबंधित सारी हकीकत बादशाह को बताई अब क्या करना ? मार्गदर्शन मांगा कुछ विचारकर बादशाह ने कहाँ वह तंबु यही रहने दो । जब अंडे का सेवन हो जाये बच्चा बहार आ जाए उडने लगे तब तक इस तंबु को सिमटना नहीं है । नोकरने मनोमन बादशाह की करूणा-भावनाकी खूब खूब सराहना करी. CELEBRARESHESSPARSHASSPOSTEDPRESHESEPTOSSARESHESSIOSISODE
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Mas,coxas,camas %2Bc%20Kasculas,
प्रसंग -७ -XEB8
पूज्य हीरसूरीश्वरजी महाराज जब दिल्हीकी राजधानी में अकबर की विनंती से पहुंचे तब प्रवेश के वक्त ६ लाख लोग लेने हेतु उपस्थित हुए थे।
प्रसंग -८
अमदावाद में सं. १६३९ में लोकामत के अधिपति पूज्य मेधजीऋषिने लोकामत दुर्गतिका हेतु जानकर अकबरकी आज्ञासे उस मतका त्याग करके बादशाही ठाठसे पुनः तपागच्छीय दीक्षा ग्रहण की. हीरसूरिजीने अनेक को चतुर्थव्रत का स्वीकार करवाया । MERIESIDERESHESARICS, SPRESHERPRESSERIOSISRORISTIBERS
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asmeyasemaa,
29,3x3, meyas, mexe.com प्रसंग - ९
हीरसूरिजीके आदेशसे अकबरने अपने राज्यमें जजीयावेरा बंध करवाया । शत्रुजय आदि तीर्थयात्राका कर माफ करवाया ।
प्रसंग - १० -30-380
डाबर सरोवरमें होती लाखो मछलियों की हिंसा बंध करवाई, समग्र हिन्द में गोवध बंधी । PN98%9/9a%aa,memas,sayaorsemansaman, exas,cama
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exas, yao, may 200x29,remas, %20,009,bao.
प्रसंग - ११
उपदेशमाला
IFIELHIOnL
१३ वर्षकी उम्र में संपूर्ण उपदेशमाला कंठस्थ करी थी ।
प्रसंग - १२
आचार्य पदवी के दिन पधारे हुए महानुभावोको सुवर्णमुद्रा प्रभावना प्रदान की गई थी । SMSSBSHSSPARSHDSPARSHSSADGHOSSIBEESORDSHESDOGHESTRO
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SOISSHASTROSPERRORIGOROSISGAROSHSSCTRESEARSHADDARSHS |
प्रसंग - १३
पर्युषण पर्व में हिंसा बंध करवाई... (चार दिन अकबर की तरफ से अधिक) केदीयोंको बंधन मुक्ति और अंतमें प्रभावित हुए अकबर के पाससे ६ मास तक हिंसा बंध करवाई ।
प्रसंग - १४
समाधि स्थल पर बिना मौसम में भी आम्रवृक्ष पुष्पित हुआ था । हीरसूरिजी के अग्नि संस्कार के समय एकठी हुई जनमेदनीने जितनी जमीन घेरी थी वह सारी जमीन राजाने जैन समाजको सुप्रत की थी... वह (१०० या २२) ? वीघा जमीन थी ।
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मूर्तिहाल जालोर राजस्थान तपावास में
नेमिनाथजी के मंदिर से
श्री जगद्गुर स्थापना मंत्र
(१) आह्वान मंत्र (आह्वान मुद्रा करके बोले)
ॐ हीं श्रीं अहँ युगप्रधान भट्टारक श्री हीरविजयसूरि जगद् गुरो ! अत्र अवतर अवतर स्वाहा । स्थापना मंत्र (स्थापनामुद्रा करके बोले) ॐ हीं श्रीं अहँ युगप्रधान भट्टारक श्री हीरविजयसूरि जगद् गुरू ! अत्र तिष्ठः तिष्ठः ठः ठः ठः स्वाहा । सन्निधि करण मंत्र - ॐ हीं श्रीं अहँ युगप्रधान भट्टारक श्री हीरविजयसूरि जगद्गुरू मम सन्निहितो भव भव वषट् स्वाहा ।
जगद्गुर की अष्ट प्रकारी पूजा की सामग्री
(१) पंचामृत कलश (२) केशर चंदन (३) फूल, फूलमाला (४) धूप
(५) दीपक (६) अक्षत (७) नैवेध (८) फल
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Samas,coelas, yaa.soxas,Sexas, 325, 2x29,83
|| वन्दे श्री हीरजगद्गुरूम् ।। मुनिराज श्री दर्शन विजयजी (त्रिपुटी) कृत
जगद्गुरू शासन सम्राट अकबर प्रतिबोधक श्रीमद् विजय हीरसूरीश्वर की बड़ी पूजा
प्रथम जल पूजा............... ..................दोहा जय जय सुमति जिणंदजी, जय सुपारर्व जिणंद । जय जय आदिश्वर प्रभो, जय जय पार्व जिणंद || १ ।। जय सूरि वाचक मुनि, जिन शासन शणगार जय गुरू हीर सूरीश्वरा, युग प्रधान अवतार जय चारित्र विजय गुरू, चरणमें शीष नमाय जग गुरू की पूजा रचु, सब ही को सुखदाय (तर्ज-आओ आओ आदीश्वर बाबा, गृही इक्षु रसदान) आवो आवो प्यारे सज्जन, करो गुरू गुणगान || टेर || महावीर के पाट परंपर हुए श्री युग प्रधान । वचन सिद्ध और उग्र तपस्वी, जगत्चन्द्र सूरि जाण आवो || १ || जिनके चरण में शीष जुकावे, मेदपाट का राणा तपा तपा कहके बुलावे, जैत्रसिंह बलवान
|| २ ।। श्री देवेन्द्रसूरीश्वर त्यागी, देव पूज्य श्रुतवान कर्म ग्रन्थ आदि शास्त्रोका, किया जिनने निरमाण
|| ३ ।। दादा साहेब धर्मघोष सूरी, त्यागी युगप्रधान महामंत्र वादि व प्रभाविक, हुये धर्म के प्राण
|| ४ ।। देवपतन में मंत्र पदों से, सागर रत्न प्रधान । गुरू के चरणों में उच्छाले, रल ढेर को पान
।। ५ ।। निर्धन पथेड जिनकी कृपा से बने बडा दिवान शासन का झन्डा फहरावे, गुरू कृपा बलवान
||६|| जिनके वचन से यक्ष कपर्दी, छोडे मांस बलिदान । सेवक होकर शत्रुजय, पर पावे अपना स्थान
।। ७ ।। SHESDPROTHESEPISODERSTOREBSITESHESSIPSMEETPRASHASSPIRECBSPAD
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3
प्राण I
|| 2 11
ज्ञान I
।। १२ ।।
जोगणियोंने कारमण कीना, चहा मुनियों का उनको पारे पर चिपटा कर दिया गुरू ने ज्ञान गुरू के कंठ को मन्त्र से बांधा, युं ली उनसे वाण । तपगच्छ को उपद्रव नहीं करना, स्थंभित कर अज्ञान ।। ९ ।। एक योगी चूहे के द्वारा, करे गच्छ को परेशान । उसके उपद्रव को हटाया, पाया बहु सम्मान रात में गुरू का पाट उठावे, गोधरा शाकिनी जाण उनसे भी तब मुनि रक्षा का, लीना वचन प्रमाण ।। ११ ।। सांप काटते कहां संघ से, अपना भविष्य संघ ने भी वह जडी लगाई, हुए गुरू सावधान भस्म ग्रह की अवधि होते, शासन के आनंद विमल गुरू जिन्होंको, नमे राज सुरत्राण क्रियोद्धार से मुनि पंथ को उद्वरे ज्ञान कृपा से दूर हटावे, कुमति को उफाण जैसलमैर मेवात मोरवी, वीरम गाम मैदान । सत्य धर्म का झन्ड गाडा, दिन दिन बढते शान आन ।। १५ ।। मणिभद्र सेवा करे जिनकी विजय दान गुरू मान । उनके पट प्रभाविक सूरि, हीर हीरा की खाण । आ ।। १६ ।। इन गुरूओं की करे आशातना, वह जग में हैवान भक्ति नीर से चारणो पूजे, चारित्र दर्शन ज्ञान । श्रा ।। १७ ।। काव्यम् (वसंत तिलका)
सुल्तान
॥ १३ ॥ युगप्रधान,
॥ १४ ॥
-2038
हिंसादि दूषण विनाश युग प्रधान, श्रीमद् जगद् गुरू सुहीर मुनीश्वराणाम्,
उत्पत्ति मृत्यु भव दुःख निवारणाय,
भक्त्या प्रणम्य विमल चरणं यजेहं ॥ १ ॥।
मंत्र
-५०38
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ॐ श्री सकल सूरि पूरंदर जगद् गुरू भट्टारक
श्री विजय सूरी चरणेभ्यो समर्पयामि स्वाहा
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Carpekas,memas, las द्वितीय चंदन पूजा (दोहा)
विजय दान सूरी विचरते आये पाटणपूर । उपदेश से भवि जीव की, मार्ग बताते धूर ।। १ ।। गुरूवर की सेवा करे, माणिभद्र महावीर । करे समृद्धि गच्छ में काटे संकंट पीर ॥२ ।। इस समय गुरूदेव को, हुआ शिष्य का लाभ । तपगच्छ में प्रतिदिन बढे, धर्मलाभ धनलाभ || ३ || ढाल - २ (धन धन वो जगमे नरनार)
धन धन वो जग में नरनार, जो गुरूदेव के गुण को गावे ।। पालनपुर भूमिसार, ओसवाल वंश उदार, महाजन के घर ओकार प्रल्हादन पास की पूजा रचावे || १ || धन सेठ जी कुंराशाह, नाथी देवी शुभ चाह, चले जैन धर्म की राह धर्म के मर्म को दिल में ठावे ।। २ ।। संवत पंद्रहसो मान, तिर्यासी मिगसिर जाण, हीरजी का जन्म प्रमाण शान शौकत जो कुल की बडावे || ३ || शिशु वय में हीर सपूत, परतिख ज्युं शारद पुत बल बुद्धि, से अद्भुत ज्ञान क्षय उपशम के ही प्रभावे ॥ ४ ।। पडिक्कमणा प्रकरण ढाल, योग शास्त्र व उपदेश माल पयन्नाचार रसाल, पढे गुरू के भी दिल को लुभावे ।। ५ ।। हीरजी पाटण में आये, नमें दान सूरि के पाय, सुनी वाणी हर्षं बढाया, पाक दिल संयम रंग जमावे ॥ ६ ॥ पन्नरसे छयाणु की साल, ले दिक्षा हिर सुकुमाल बने हीर हर्ष मुनि बाल, न्याय आगम का ज्ञान बढावे ।। ७ ।। संवत सोलसो सात, पंन्यास हुये विख्यात हुये वाचक संवत आठ, पाट सुरि की दशमे पावे ।। ८ ।। हुये पूज्य सूरीश्वर हीर, नमे सुबा राज वजीर
चन्दन चर्चित गम्भीर, धरि चारित्र सुदर्शन गावे ॥ ९ ॥ COOK29, 90x900x29,%aarsema,"38%a9.c9e%ds,Coala
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काव्यम् हिंसादि
ऋोवा (गांधीनगर) २.३८२००९
जन
मंत्र - ॐ श्री, चन्दनं समर्पयामि स्वाहा -
तृतीय पुष्प पूजा (दोहा) हीर सुरीश्वरजी, गुरू के गुण गाईये ॥टेर ।। हीर मुनिश्वर, हीर सूरीश्वर अकल महिमा रे,
भक्ति फल से पाईये..... फतेहपुर में उपकेश धर में, है तप भक्ति रे,
तप से ही सुख पाईये.. सती शिरोमणी सद्धगुणी रमणी, श्राविका चंपारे,
छ मासी तप ठाईये..... देवका से गुरू कृपा से, तप गुण बढते रे,
कृपा को वारी जाइये... हीर... (४) हुई तपस्या मोक्ष समस्या, आनंद हेतु रे,
उच्छव रंग चाहिये रे... हीर... (५) तप की सवारी जूलूश भारी, वाजिंत्र बाजे रे,
जय नारे भी मिलाइये ... हीर... (६) अकबर बोले लोक है भोले, झूठी तपस्या रे,
चंपा को कहे आइये... हीर... (७) पुछे चंपा से किन की कृपा से, रोज मनाये रे,
सच्चा ही बतलाइये रे... हीर... (८) पार्श्व प्रभु की हीर गुरू की चंपा सुनावे रे,
__कृपा का फल पाईये रे... हीर... (९) कृपालु नामी हीरजी स्वामी, ठाना शाहीने रे,
इनसे हो मिलना चाहिये रे... हीर... (१०) गुरू वचन में भक्ति सुमन है, चारित्र दर्शन रे,
कर्मो का गढ ढाइये रे... हीर... (११)
काव्यम् हिंसादी मंत्र ॐ श्री पुष्पाणि समर्पयामि स्वाहा ॥३ ।। SOONam, geran/C3Marzenas, mekan,coxas,consex
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चतुर्थ धूप पूजा
(दोहा) अकबर दिल में चितवे, भारत का सुलतान । बुलाऊं गुरू हीरजी, जैनों का सुलतान ॥ १ ॥ थानसिंह ओसवाल को, बोले अकबर शाह । बुलावो गुरू हीर को, सुधरे जीवन राह || २ || थानसिंह कहे जहांपनाह, दूर ही है गुरूराज । अकबर कहे पर भी उन्हें बुलावो मय साज || ३ || (ढाल ४) तर्जः शहीदों के खू का असर देख लेना हीर सूरि को बुलाना पडेगा,
हम को भी दर्शन दिलाना पडेगा || हीर || १ || धन गुर्जर है ऐसे गुरू से,
वहां से गुरू को बुलाना पडेगा ।। हीर ।। २ ।। राणा राणी दर्शन पावे,
उनका ही दर्शन दिलाना पडेगा || हीर ।। ३ ।। नाम जाप से दुःख विदारे,
ऐसे फकीर को यहां लाना पडेगा || हीर ।। ४ ।। वहीं से सहारा देवे चम्पा को,
उस लोलिया से मिलाना पडेगा ।। हीर || ५ ।। घर दुनिया को दिल से छोडो, ।
खुदा का बन्दा बताना पडेगा || सब जीवों की रक्षा चाहे,
यही कृपा रस पिलाना पडेगा || हीर ।। ७ ।। त्यागी ध्यानी पण्डित ज्ञानी,
____ उन्हों का उपदेश सुनाना पडेगा ।। हीर ।। ८ ।। सब मजहब से वाकिफ साहिब,
उनका भी मजहब सुनाना पडेगा ।। हीर || ९ ॥ POMPOMOTOEKOPRO KONDEKNXO0a9/9e%a9%ela
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0x29,3x20, तेरा गुरू है, मेरा गुरू है
ठेका भी हो तो तुडाना पडेगा ।। हीर || १० ।। शाह अकबर यों भाव बतावें |
हीरे का पाक खिलाना पडेगा || हीर ।। ११ ।। चरित्र दर्शन गुरू चरणों में,
ध्यान का धूप जमाना पडेगा ।। हीर || १२ ।।
काव्यम् हिंसादी मंत्र ॐ श्री धुपं समर्पयामि स्वाहा ।। ४ ।।
पंचम दीपक पूजा
(दोहा) अब अकबर गुजरात में, भेजे मोदी कमाल ||
बोलावे गुरू हीर को, फतेषु खुशहाल ।। १ ।। संवत सोलसो चालिसा पाये श्री गुरू हीर | बने गुरू उपदेश से, धर्मी अकबर मीर
॥२ ।। (ढाल ५ तर्ज :- (घडी धन्य आज की सबको मुबारक हो)
इसी दुनिया में है रोशन, "जगद्गुरू' नाम तुम्हारो || टेर ।। कई को दीनी जिन दीक्षा, कई को ज्ञान की भिक्षा | कई को नीति की शिक्षा, कई का कीना उद्धारा || इसी ।। १ ।। लंकापति मेघजी स्वामी, अठ्ठाइस शिष्य सहगामी । सूरि चेला बने नामी, करे जीवन का सुधारा || इसी || २ || कीडीं का ख्याल दिलवाया, अजा का इल्म बतलाया । मुनि का मार्ग समजाया, संशय सुल्तान का टारा || इसी ।। ३ ।। शाही सन्मान तो पाया, पुस्तक भंडार भी पाया बडा आग्रह से बुलवाया, अकबर नाम से सारा || इसी ।। ४ ।। तपगच्छ द्वेश दिलधार, कल्याण खटचारा |
उसी का गर्व उतारा, सभी के दुःख को टारा || इसी ।। ५ ।। memas/Okaycoxaenas/evarmer/C3%,"bana
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फतेपुर, आगरा, मथुरा शोरिपुर लाभ, मालपुरा | भुवन प्रभु के बने सनुरा, मोगल के राज्य में सारा || इसी ।। ६ ॥ करे कोई गुरू पूजन दीये, हाथी हरे उलझन । करे वस्त्रादि से लुंछन, यतिम याचक का दिल ठारा ।। इसी ।। ७ ।। तीरथ का टेक्स हटवाया, जजिया कर भी हटाया | शत्रुजयतीर्थं फिर पाया, गुरू आधिन बने सारा || इसी || ८ || अकबर ने समझ लीना, बडा फरमानलिख दीना । हुकम सालाना छ महिना, यही उपकार तुम्हारा || इसी || ९ ॥ जगत पर कीना उपकारा, जगद् गुरू आप है प्यारा | अकबर ने यूं उच्चारा, दिया विरूद्ध जयकारा || इसी || १० ॥ गुरू उपदेश को पाकर, अकबर का हुकम लेकर । जीता शाहजी बने मुनिवर, बना शाहीपति प्यारा ।। इसी ।। ११ ।। नमे सुल्तान आजमखान, सिरोही देवडा सुल्तान । नमे प्रताप टेक प्रधान गुणों का है नहीं पारा || इसी ।। १२ ॥ मुगल सम्राट दरबारा, खुला शुरू में गुरू में गुरूद्वार | पीछे जिनचन्द्रसिंह प्यारा, गये सेनानि गुरू सारा || इसी ।। १३ ॥ गुरू चारित्र सीतारा, विमल दर्शन का आधारा | बिना गुरू कोई नहीं चारा, गुरू दीपक से उजियारा || इसी ॥१४ ।।
____ काव्यम् हिंसादि
मंत्र - ॐ श्री, दीपक समर्पयामि स्वाहा ।। ५ ॥
जगद् गुरू जगत में भक्ति प्रेम प्रचार |
अहिंसा के उपदेश से अहिंसक बने नर नार || THESEARTHISERIOSISEDIOSISEDIOSHOROSSEDIOSSESSIOGSPOTO
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var,kao, kaocekancoceler,cames, ka9,
षष्ठी अक्षत पूजा
दोहा (ढाल ६) अहिंसा का डंका आलम में, श्री जगद् गुरू ने बजवाया महावीर का झंडा भारत में श्री हीरसूरि ने फहराया ।। टेर ।। मयरानी रोह नगर स्वामी, शिकार को छोडे सुखकामी । सुल्तान सिरोही का नामी, उनका हिंसादी छुटवाया ।। १ ।। अकबर सुबह में खाता था, सवा सेर कलेवा आता था । चिडियों की जीभ मंगाता था, उस से उनका दिल हटवाया ।। २ ।। कई पशु पक्षी को मारा था, और कई पर जुल्म गुजारा था । अकबर का यह नित्य चारा था, उसके लिये माफी मगवाया ।। ३ ।। पिंजर से पक्षी छुडवाये, कई कैदी को भी छुडवाये ।। कई गैर इन्साफ को हटवाये, कइयों का जीवन सुलझाया ।। ४ ।। काला कानून था जजिया कर, जनता को सतावे दुःख देकर | अकबर को मजहब समजकर, जजियाकर पाप को धुलवाया ।। ५ ।। पर्युषण बारह दिन प्यारे, किसी जीव को कोई भी नहीं मारे | अकबर यु आज्ञा पुकारे, फरमान पत्र गुरू ने पाया ।। ६ ।। संक्रान्ति के रवि के दिन में, नवरोज मास ईद के दिन में । सुफियानमिहिर के सबदिन में, जीवधात युं छै महिना वारा । चारित्र सुदर्शन भय हार, गुरू चरण में अक्षत पद पाया ।। ७ ।।
काव्यम् - हिंसादि
मंत्र - ॐ श्री अक्षतान् समर्पयामि स्वाहा ।। ६ ।।
सप्तमी नैवेध पूजा
(दोहा) जगद् गुरू ने जीवन में, कीना तप श्री कार । तेले बेलें सेंकडों, व्रत भी चार हजार १ ।। आम्बिल नीवी एकासणा, और विविध तप जान ।
प्रतिदिन बारह द्रव्य का करे गुरूजी रिमाण ।। २ ।। Nomascoelasmanan,coxas, nenos/commons/OOK
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KOOKOONS
काउसग्ग ध्यान अभिग्रह करे, प्रतिमा बार मनाय । दश वैकालिक नित्य जपे चार करोड सज्झाय 113 11 पण्डित एकसौ साठ थे, साधु कई हजार I एक सूरि उवज्झाय आठ यह गुरू का परिवार ॥ ४ ॥ (ढाल ७) (तर्ज- केशरिया ने कैसे जहाज तिरायां ? ) -5038
जगद् गुरू आज अमोलख पाया, नर भव. सकल मनाया । जगद् गुरू ने जगत के हित में जीवन सारा बिताया ।
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आपके शिष्य प्रशिष्यों ने भी, कीना काम सवाया ॥ ज ॥ १ ॥ वाचक शान्तिचन्द्र गणि ने, कृपा ग्रन्थ बनाया ।
सुनकर शाह ने अपने जीवन में, मुरदा नहीं दफनाया ।। २ ।। कल्याण मल के कष्ट पिंजर से, खंभात संध को छुडाया । हुमायू का इल्म बताया, जम्बूवृति बनाया भानुचन्द्र ने शाही द्वारा वाचक का पद पाया । शाही के पुत्र को ज्ञान बढाया, तीरथ पट्टा पाया ।। ज ।। ।। ४ ।। पटधर सेन सूरी आलम में, गौतम कल्प गवाया ।
पाटण राजनगर खंभात में, पर गच्छी को हराया ॥ ज ॥ ॥ ५ ॥ सूरत में श्री भूषणदेव को बाद में दूर भगाया ।
शाही सभा में पांच से भट से, बाद में जय अपनाया ॥ ६ ॥ अकबर से षट जल्प को पाया, मृत धन आदि हटाया ।
सवाई हीर का बिरूद पाया, परविख पुण्य गवाया ॥ ज ।। ७ ।। अकबर के पण्डित सभ्यों में, जिनका नाम लिखाया ।
ONDOKOONG
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विजय सेन भानुचन्द्र अमर है, शासन राग सवाया ॥ ज ॥ ॥८ ॥ अष्टावधानी नंदनविजयजी, सिद्धिचन्द्र गणिराया ।
।। ज ।। ९ ।।
विवेक हर्षगणी इन्होने, शाही से धर्म कराया पड पट्ट घर श्री देवसूरि ने वादी से जय पाया ।
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॥ जं ॥
11 3 11
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leo, comas, mokas,coanas,bekas,cenas, mexas,coxas,
सूरदेव चन्द्र आदि देवों ने, गुरू का मान बढाया || ज || १० || विरूद्ध जहांगीर महातपा यूं सलीम शाह से पाया । राणा जगतसिंह से भी दया का, चार हुकम लिखाया || ज || ११ ।। वाचक विनय ने लोक प्रकाश से, सच्चा पंथ बताया । यशोविजयजी वाचक गुरू के ज्ञान का पार न पाया || ज || १२ ॥ खरतर पति जिनचन्द्र सूरिने, जगद्गुरू का यश गाया । फरमान सप्ताह की अहिंसा का अकबर शाह सवाया ।। ज || १३ ।। गुरू के नाम से पावे धन में सुत, यश-सौभाग्य सवाया ।। चारित्र दर्शन गुरू चरणों में भाव नैवेध धराया ।। ज || १४ ॥
काव्यम् - हिंसादि
-4388मंत्र - ॐ श्री नैवेध समर्पयामि स्वाहा ।। ७ ।।
अष्टमी फल पूजा
(दोहा) सोलसो बावन भादों में, सुदी ग्यारस को रात । गुरूजी स्वर्ग में जा बसे, उना में प्रख्यात ।। १ ।। अग्निदाह के स्थान में, फले बांझ भी आम | दिखावे गी मुकुट छोड, अकबर अपने धाम ।। २ ।। अकबर से पाकर जमीन, लाडको करे वहां स्तूप । जो परतिख परचा पूरे, नमें देव नर भूप ॥ ३ ॥ आबू पाटण स्थंभना राजनगर जयकार | सूरत हैद्राबाद में, बने श्री हीर विहार ॥ ४ ॥ आगरा महुवा मालपुरा पटणा सांगा नेर । नमु प्रतिमा स्तूप पादूका, जयपुर आदी आदि शहेर || ५ ।। ___(ढाल - ८) (तर्ज-सरोदा कहां भूल आये)
आवो भाई आवो, गुरू के गुण गाओ || टेर ॥ देवी कहे देवेन्द्र सूरि के, चरण कमल में जाओ ।।
बढती उनके गच्छ की होगी, कुमत में मत जाओ ।। गु. || १ || 3,30%283%90%28,000%20%90%D9,90% 9,90% 9exa9.coox
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0 23,C3 पद्यावती कहे तिलक सुरि के, शिष्य को स्तोभ पढाओ । प्रतिदिन तपगच्छ बढता रहेगा, प्रभू सूरि ! मत घबराओ ।। २ ।। मणिभद्र कहे दान सूरि को, विजय दान वरसावो । कुशल करूंगा विजय तपा का, विजय ध्वज फरकावो || ३ ।। ऐसे गच्छ में जगद् गुरू, श्री हीर सूरि को गावो । वर्ष इक्कीस हजार चलेगा, वीर शासन मन लावो ।। ४ ।। देश प्रदेशों में कयों दोडो, गुरू चरणों में जावो । संग्राम सोनी पेथड सम ही, लक्ष्मी इज्जत पावो ॥ ५ ॥ जगद्गुरू के चरण कमल में, फल पूजा फल पावो । चारित्र दर्शन ज्ञान न्याय से, जय जय नाथ गजावो ॥ ६ ।।
काव्यम् - हिंसादि
मंत्र - श्रीफल समर्पयामि स्वाहा ।। ८ ।।
कलशः (राग बढस - अब तो पार भये हम साधो)
आज तो जगद् गुरू गुण गाया, आनंद मंगल हर्ष सवाया वीर जगतगुरू पाट परम्पर, हुए सूरि गणी मुनिराया हुए बुद्धि विजय गणि, जिनने संवेगरंगका कलश चढाया आपके आदिम पट्ट प्रभाकर, मुक्ति विजय गणि शासन राया आपके पट्ट में विजय कमल सूरि, स्थविर विजय विनयजी गवाया आपके शिष्य शासन दीपक, श्री चारित्र विजय गुरू राया आदिम चैन रारू कुल स्थापक, जिनके यश का पार न पाया, आपके सेवक दर्शन ज्ञानी, न्याय ने जयपुर में गुण गाया, संवत उन्नीसौ सत्ताणु; जगद् गुरु का दिन मनाया, तपगच्छ मन्दिर में जग गुरू के चरण कमल सबको सुखदाया सेवे भंडारी कोचरजी, चोरडिया पालरेचा सुहाया म्हेता छाड वेद संचेती ढड्ढा गोलेच्छा सुखपाया
ढौरगोहेलका बम छजलानी, नौलखी सिंधी व खीसरा भाया Selas,sexarcoalas,senas, coexas,cekas,beman,maka
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कोठारी लोढा करणावट, बाफणा पटनी शाह उमाया जोहरी हरकावत पोरवाली, श्री श्रीमाल भक्ति गवाया संघ ने मिल कर भाव सवाया, गुरू पूजन का पाठ पढाया शिर नमाया जय जय पाया चारित्र दर्शन नाद गजाया
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ascexas, Bemargemas.genas,cenas,senascer,
हीरसूरीश्वरजी म. सा. और इतिहास
ॐ बादशाह अकबरको वि. सं. १६३९ में आचार्य विजयहीर
सूरीश्वरजी ने प्रतिबोध दिया था । बाद नौ वर्ष तक उनके विद्वान साधु बादशाह को उपदेश देते रहे । तब जिनचंद्रसूरि वि. सं. १६४८ में बादशाह अकबर से मिले थे । पाठक स्वयं सोच सकते है कि बादशाह अकबर को प्रतिबोध आचार्य विजयहीरसूरिने दिया था या जिनचंद्रसूरि ने ? यदि यह कह दिया जाय कि जिनचंद्रसूरि को बादशाह के पास जाने का सौभाग्य मिला यह विजयहीरसूरि का ही प्रताप है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है कयोंकि उन्होंने पहिले से बादशाह को जैनधर्म का अनुरागी बना रखा था ।
ॐ विजय हीरसूरि को बादशाह भक्ति पूर्वक आमंत्रण का फरमान
अहमदाबाद के सूबेदार को भेजता है और उनके विहार के
समाचारों की प्रतीक्षा कर रहा है । ॐ विजय हीरसूरि के दर्शन के लिये बादशाह आगरा से फतेहपुर
आता है।
सम्राट अकबर प्रतिबोधक जगद्गुरू हीरविजयसूरीश्वरजी म. सा. के शिष्य विजयसेनसूरिजीने लाखों जिनप्रतिमाओं की स्थापना की थी... देवनगरी-देवास में श्री शंखेश्वर-पार्श्वनाथ प्रभुकी प्रतिमाजी,
विजयसेनसूरिजी म. सा. द्वारा अंजन प्रतिष्ठा की हुई है । SHREEKDSEBSRDSHEDERABSFETRIBHASTRIBSITESTRBSEBSRDSHABAD
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kar.mexamDexamekas,ceras,gelar,mexas,canas.co ॐ सम्राट अकबर प्रतिबोधक जगद्गुरू हीरविजयसूरिश्वरजी म. सा.
के पट्टधर विजयसेनसूरिजीने अकबर की सभामें शास्त्रों की चर्चा करने आये हुये ३६६ ब्राह्मण वादीओ को वाद में हराया । जिससे अकबर ने भर सभा में विजयसेनसूरिजी को 'सवाई हीरला बिरूद दिया था । तब से विजयसेनसूरि 'सवाई' विशेषणसे पहचाने जाने लगे।
ॐ तपागच्छाचार्य हीरविजयसूरीजी को वि.सं. १६४० में फतेहपुर में
सम्राट अकबरने जब जगद्गुरू की उपाधि दी. तब इस महोत्सव में स्वयं अकबर ने एक करोड रू. खर्च किये थे । इस महोत्सव दौरान हीरविजयसूरिजी की स्तुति गान करनेवाले भाटचरण को
एक लाख रू. दिये थे। ॐ हीरविजयसूरिजीने जब दीक्षा ली थी, उस समय उनके साथ
अमीपाल, (पिता) अमरसिंह, (बेन) कपूरा माता, धर्मशीऋषि, रूडोऋषि, विजयहर्ष और कनकश्री इस तरह आठ लोगों ने दीक्षा ली थी।
ॐ मुनिश्री हीरहर्ष' के आचार्य पद का महोत्सव, रणकपुर के निर्माता
धरणाशाह के वंशज चांगा संधपति ने किया था (जो दुदाराजा का मंत्री था) इस दिन दुदाराजाने अपने राज्य में सभी जगह अहिंसा का पालन करवाया था और हर महिने की दशम के दिन समस्त
राज्य में अहिंसा पालन की उद्घोषणा की थी। DISEDICTIBETIRIDGDISSORDSHEEPROSTISEMEGHADARIDGHODSRIDGETHEROID
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* हीरविजयसूरिजी के उपदेश से ३०३ संधपतिओ ने संध निकाला था।
अकबर के सामने अपना मस्तिष्क नहीं झुकानेवाले मेवाड केशरी महाराणा प्रतापने 'जगद्गुरू हीरविजयसूरिजी को अपने आंगन में पधारने के लिए आमंत्रण दिया था । '
एक समय खंभात नगर के प्रवेश समय, हीरविजयसूरिजी के प्रत्येक चरण कमल में दो-दो सुवर्णमुद्रा १ रू, और मोती का साथिया रखने के द्वारा गुरूपूजन किया था । उस दिन भक्तोंने १ करोड जितना रजतद्रव्य का खर्च किया था ।
दक्षिण में अभ्यास करके ये मुनि गुरूके पास वापिस आये, तब उसी समय, खडे खडे, नये बनाये हुये १०८ काव्यों से गुरूकी स्तुति की, और बाद में द्वादशावर्त वंदन (उत्कृष्ट गुरूवंदन) किया, यह मुनि थे हीरहर्षविजय - १.
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* हीरविजयसूरिजी का जब स्वर्गवास हुआ तब उससे ४ घडी (डेढ घन्टे ) पहले अपनी छत पर रहे हुये एक ब्राह्मण ने "चलो जल्दी दर्शन करें" ऐसा वार्तालाप सुना था और आकाश में 'देवविमान' देखा था ।
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* जिस दिन जगद्गुरू का अग्निसंस्कार हुआ, उस रात्रि खेत में रहनेवाले लोगों ने आम के बगीचे में होनेवाले 'दिव्य नाट्यारंभ' को देखा था ।
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आचार्य हीरसूरिपट्टक... सेनसूरिम आदिको उद्देशकर
मसियाटप्पालाANO
तियोगिदिनजतिदेवनहारवाः। 'दिनतिनुकरवालोरगुलवी। २ दिनपतिवडानिवासामा करबी। पतीनाक्तिदिनपनि माघारधवापद
एकलग५पूतिकमचायापबीलामीग्रास डिवालगितिघायाहारकरतांउपधि सीकापडिलेहतोमाग्रिंदीउतांबोलदु ६ दिनपतिमन्नायसहस्त्रयुगा नहा ७पात्रोउपरांतराषवानही। एजधन्पपदिासपतिउपवासकरवा १० घमदिनपारणातीयतीनिविगिरबी - जानिविगिरबीजिदिनेविगिरकपरां
तनकल्पिः ॥ १ मोद्यमादिकारराविनाजघन्पपा
दिविविहार करनोबिसाकर। १२ मोटोकाकारणचिनादिवसिपोरिसिम,
हिंन स्टूवु॥ १३ दिनतिजोचांउपरांतनकल्पिः।
वाधषरडूने गुरुशपितहनीजय १४ अरव्यादिकारणविनामार्यातीत को
लातीतकेचातीतावारिविनानकल्पि १५ ताजिंनहीडब्घाडिरिवनबोर १६ नवाजुनाकल्पडाचोलपट कोबर
रसंघारिररररनपरीतन राष २० गीताधमाकलिबिावाविनातकर
रुजोरवारिसच्चारबाजूच रानलेवामारकि कारणिंगीताछ"
पुबालेवा SHEBSICASHLESCRSHAPERIOSHISERESHEETITESH SSPARSHABDKOSHDSED
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28,03exas,pbevar,pras,Coenae, ex@a, yaan29,% आचार्य हीरसूरिपट्टक... सेनसूरिम आदिको उद्देशकर
१८ गुछायारिवासियाविनासीकीनघा बीनही नमघाश्तोगीताधियाबिलक
राव।। १० बघडिमाहिडिलादिकारविबाहि रिना कदाचिङाश्तोगीताधितद निशबिलकराव घवाभाग लिराषीसहस्सरसनायरकराव।। २० कालसंझाईशबिलकर २१चनमासानोडासंवबरीनुग्रह
मसोटकारविनानमुकः। २२पाडिहारीकोबलुवस्त्रसवधानले २३ नीषारंवस्त्रवर्षपराकर्तिक.
रीबाह्यवावर॥ २४ क्रियानुवानविधिकरवानुषपवि
दीर्घधीकरणपडिलेहिने 'वस्त्रनवावरवा एकतापणिशक्ति प्रयोदापालवी अनिसघाजिपामादेवाचकादश्चित देननमस्कस्खादिमर्यादाकोश्ऋति कृभिवतेदनियायोगिकाबिलानीवी एकासाप्राक परिब सर्दिपायश्चित गीतावकरावनिकोरडेगुरुर्निजता वगतमानिविहार कासकरार पांत्रीसबालपालवायन व वापिौत्रीम के बोलनुपराबारबोलपटा ज्ञानानुपटु। विजामानितंततावडानमरवएप तालमरनिपुरमा
नियमावनिकरितामा मकल्पादिम नैकरचुतम
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पालनपुर
तपागच्छ उपाश्रय, पालनपुर
साना विजयसनका भाकरीgopesortiti समितिटबोरगा। अधिनियहरहमानि
राजदया
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जालोर
पाटण
ऊना - समाधिमंदिर iદગુરૂ શ્રીહીરવિજયસૂરીશ્વરજી ટી
లేవని తెలిసిన నీటిని తన నీటి
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storeshshreststretretstretchchersersrth
UUN
आरती
Aarti आरती श्री गुरु हीरसूरि की...
कुमति निवारण सुमति पूरण की... पहली आरती श्री गुरुदेव की,
दुरित निवारण पुण्य करण की... १ दूसरी आरती धर्म धरन की,
अशुभ करमदल दूरी हरण की... २ तीसरी आरती दश यति धरम की,
तप निरमल उद्धार करण की...३ चौथी संयम श्रुत धर्म की,
शुद्ध दया रूप धरम वरण की... ४ पाँचवी सभी सद्गुण ग्रहण की,
दीन-दीन जस परताप करण की... ५. एह विध आरती श्री गुरुदेव की,
स्मरण करत भविपाप हरण की...६ తెలిసిన టెస్టినీ నటి నటన అని టెస్టు సినీ తన స్వలని
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सकरपुर
साकुरा
-रखंभात
SKAR
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir का जन्मस्थल, लि वर्तमानमें जी म.सा. का विजय हीरसूरीश्वरजी इनोंका उपाश्रय दसला UAEN Serving JinShasan 155650 gyanmandir@kobatirth.org यशोविजयरचित द्रव्यगुणपर्यायनो रास... तपगच्छनंदन सुरतरु प्रगट्यो हीरविजय सूरीं दो सकल सूरिमा जे सोभागी जिम तारामां चंदो रे. हमचडी. For Private and Personal Use Only