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__ ऐसे खंभात के सुल्तान हबीबुल्लाह, अहमदाबाद के सुबा आजयखां, पाटण के सुबा सीमल्को (वि.सं. १६६० के समय) सिद्धाचल यात्रा संघ में जाते समय अहमदाबाद में सुलतान मुराद (अकबरके पुत्र) आदि कई राजाओं, सुबेदारों को उपदेश-वारि से बोध देकर अहिंसा देवी का साम्राज्य प्रसारा था और शासन की महाप्रभावना की थी।
सिरोही में वरसिंह नामक बहुत धनी-मानी गृहस्थ था | उनके ब्याह की तैयारी चल रही थी | मंडप डाला गया था । सुबह-शाम शहनाई के बाजा बज रहे थे । सुहागण स्त्रिए धवल मगल गीते मधुर कंठ से ललकार रही थी । वरसिंह चुस्त धर्मी थे । रोजाना सुबह शाम सामायिक-प्रतिक्रमण उपाश्रयमें करते थे | उस दिन उसने सामायिक सुबह लिया था । तब उनकी भावीपत्नी पू.सूरिजी को वंदनार्थ आकर वंदन करके पीछे, सूरिजी के पास बैठे हुये वरसिंह को भी उसने वंदना की । थोडे दूर बेठे हुये एक भाईने कहा, अब तो तुजे दीक्षा लेनी पडेगी । कयोंकि तेरी भावीपत्नी तुझको वंदन करके अभी गई । तब उसने कहा, जरूर में दीक्षीत बनूंगा । अब वो घर पर गये, सारे कुटुंम्ब को इकट्ठा किया और अपनी दीक्षा की बात जाहिर की । बहुत अरसपरस चर्चा हुई । अंत में उनको विजय मिली । ये ही शादी का मंडप दीक्षा के मंडप में परिवर्तन हो गया । और ठाठ से उनकी दीक्षा हुई । आप आगे पंन्यास हुये और १०८ शिष्य के गुरू बने थे |
इसलिये विदित होता है कि सूरिजीने १०८ आदमीओं को दीक्षा दी थी । १०८ साधुको पंडित पद और सात साधुको उपाध्यायपद दिया था । आपको प्रबल पूर्व की पुण्याई से सब मिलाकर दो हजार साधु की संपदा थी याने दो हजार साधु के नेता थे । नेता हो जाने से प्रशंसा नहीं होती मगर समुदाय का संगठन, शासन के हित और रक्षा के लिये सदैव कटिबद्ध रहना वो सर्वश्रेष्ठ सराहनीय था । आपने अंतः तक उस कार्यका पूर्ण पालन किया था । aspeka83kasumas.ceCUARYUSRAKAB.CIESCHENBLOKANTAGADIR
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