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सिरोहीका राज्य गुमाया भी था. फिरभी राणा प्रताप की तरह स्वतंत्रता प्रिय होनेसे पुनः कैसेभी राज्य हासिल करता था । एक वक्तकी घटना है. सिरोही जैन संधके १०० जितने निर्दोष श्रावकोंको दोषित ठहराकर केदखाने में धकेल दिये । मुख्य आगेवानो के अनेक प्रयत्न करने परभी नहीं छोडे । इस प्रसंग के दोरान आचार्य हीरसूरी म. सा. के समुदाय में ओक घटना घटी. साधु महात्मा स्थंडिल भूमि से आकर इरियावहिया किये बिना सीधे ही अपने कार्य में लग गये, सूरिजीने इसे ध्यान में रखा और शाम को प्रतिक्रमण के वक्त सभी साधुओंको आज्ञा की कल सभीको आयंबिल करना है यह सुनकर सब स्तब्ध बन गये |
___ सूरिजीने कहा गभराने की जरूरत नहीं है इरियावहिया न की इसका प्रायश्चित दिया है. सभीने तप किया साथमें सूरिजीने भी आयंबिल किया तब एक साधु भगवंतने पूछा महाराजजी! आपको आज आयंबिल कयों है ? सूरिजीने कहीं कल मेरा मातरा पडिलेहण किये बिना परठ दिया था अतः,सुनकर साधुओंको दुःख हुआ उस दिन ८० आयंबिल हुए. सूरिजी चाहते तो आयंबिल तप न भी देते किंतु उदेश्य भिन्न था. किसी विशिष्ट कार्य के पूर्व आयंबिल तप अवश्य करते थे । आयंबिल पर अनन्य श्रद्धा थी आज के दिन केदमें रहे १०० श्रावकोंको छुडानेका कार्य करना था हीरसूरि महाराज मनोमन निश्चय करके सिरोही के सूरतान महाराव सूबाके यहाँ गये. श्रावकोको मुक्त करने का उपदेश दिया. सूरिजी की सचोट वाणी सुनकर हृदय पिघल गया. वाणी का ऐसा असर हुआ कि उसी दिन सभी श्रावकोको एक साथ छोड दिया. वास्तवमें हीरसूरि म. के चारित्र का प्रभाव अद्वितीय था. रत्नचिंतामणी सम हीरसूरि महाराजने शासनके अनेकानेक कार्य किये थे.
शत् शत् नमन हो जैनशासन के सरताज-बेताज बादशाह को... Yeseva? Benar Benar Benar,"exaM'OnayoeMarxsema
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