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थोडे दिन बाद सूरिजी आगरा पधारे । चातुर्मास आगरा में किया। श्रावकोनें सोचा, बादशाह सूरिजीके भक्त बने है, तो पर्युषणके आठों दिन अमारी की उद्घोषणा हो जाय तो लाभ होगा।
श्रावकोने आकर सूरिजीको विनंती की । सूरिजीने सम्मति दी, और अमीपाल आदि अग्रणी श्रावकोंका डेप्युटेशन बादशाह के पास आया । श्रीफल आदि नजराणा भेट दिया । और साथ में कहने लगे कि आप नामदारको, पू.सूरि भगवंतनें धर्मलाभका मंगल आशीष दिया है । आशिर्वाद सुनकर बादशाह के मुख पर प्रसन्नताकी खुशी छा गई, और बोलने लगा, सूरि महाराज कुशल है न ? मेरे योग्य कुछ आज्ञा फरमाई है ?
___ अमीपालने उत्तर दिया, आचार्यश्री बडे कुशल है, और आपको अनुरोध किया है कि हमारा पर्युषणपर्व आ रहाँ है । इसमें कोई जीव किसी मुकजीवकी हिंसा न करे ! आप इस बातकी मुनादि कराने दोंगे तो अनेक मुक जीव आशीर्वाद देंगे, और मुझे बडा आनन्द होगा । बादशाहने आज्ञा दे दी, और आगरा में आठो दिन अमारीका ढंढेरा पीटवा दिया. वह साल थी वि.सं. १६३९ की।
आप आगरामें चातुर्मास व्यतीतकर शौरीपुर तीर्थ यात्रा करके पुनः आगरा पधारे । प्रतिष्ठा आदि धर्मकार्य कर दिल्ही पधारे । कई बार बादशाह के साथ आपकी मुलाकात हुई ।
एक बार सूरिजी अबुलफजल के महलमें धर्मगोष्ठी कर रहे थे । अकस्मात बादशाह वहाँ आ गये | अबुलफजलने स्वागत किया और आसन पर बैठनेकी प्रार्थना की । अबुलफजलने सूरिजी की विद्वता की भूरी भूरी प्रशंसा की।
प्रशंसा सुनकर बादशाहके मनोमंदिरमें भाव जग गये | सूरिजी जो मांगे वह दे के उनको प्रसन्न कर देना चाहिये । उसने सूरिजीको प्रार्थना की, कि आप ! अमुल्य समय खर्चकर उपदेश देके हमारे पर उपकार कर रहे हो ।
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