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सब ने सोचा, बादशाह का पत्र है । इसलिये हीरसूरिजी को वाकेफ करना ही चाहिये और खंभात जैन संघ को पत्र से इतला देकर गंधार बुलाना | और अपना संघ, खंभात संघ, गंधार के श्रावक सब मिलकर विचार विनिमय करेंगे।
दो पत्र को लेकर अहमदाबाद संघ, खंभात संधने सूरिवर की निश्रा में आकर दोनों पत्र गुरूकरांबुज में दे दिया । इस तरह तीनों संधों की मिटींग हुई । गुरूवरको जाने देना कि नहि इस पर गंभीर विचार विनिमय हुआ | अंत में सब एक राय पर आये कि, सूरिवर जैसा फरमावें ऐसा करना ।
तीनों संघ के अग्रणी सूरिवर के पास आये, पूज्यश्रीनें रूपेरी घंटडी जैसे मधुर स्वर से सबको पूर्व महर्षिओने राजाओं के पास जाकर कैसी शासन प्रभावना कि उनका परिचय दिया । यह सुनकर सब की रोमराजी विक्स्वर हो गई । और एक ही आवाज से सब बोलने लगे, पूज्यश्री को जरूर बादशाह के पास जाना ही चाहिये ।
-: गंधार से प्रस्थान :
सूरिजीनें मार्गशिष कृष्ण सप्तमी को प्रस्थान करनेका मंगल निर्णय जाहिर किया । मुक्ति की ओर जाने फौज न चली हो ऐसी साधु मंडली आचार्यश्री के साथ विहार करने लगी । तब सारे संघ के एक नयन में गुरूविरहके अश्रु दुसरे नयनमें बादशाह को प्रतिबोध देंगे उस आनंद के अश्रु अविरत बहने लगे । संघ विदा देने साथमें चला । पूज्यश्रीनें शहरके बाहर मंगलिक सुना कर धर्म-ध्यान में स्थिर रहनेका धर्मोपदेश दिया । जब तक सूरिजी नयनपथमें दिखाये तब तक गुरू दर्शनामृत पान करके संघ खेदित हृदय से वापिस आ गया ।
विहार करते हुए सूरिजी वटादरामें पधारे । यहाँ रात्रि को पू. सूरीश्वर को एक देवीने मोतीओं से वर्धापना दी । और मंगलाशिष दिया कि, आप MEDISHRSHESTATOSHSSARGEMSTARDSMISSIOSHDOOTESDESSIPS,GSSIP
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