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सूरिजी राजसभाके द्वार पर पधारे तब बादशाहनें सिंहासन पर से उठकर निजी तीन पुत्रों के साथ अभिवादन कर नमन किया । सूरिजीनें धर्मलाभका मंगल आशीष दिया । सूरिजी के दर्शन से बादशाह के मुखपर हर्षकी लालिमा छा गई । और अपने बैठक तक ले गये ।
बादशाह खडे है और सुरीश्वर भी खडे है । अकबरने क्षेमकुशल की पृच्छाकर कहा, आप मेरे लिए बहुत कष्ट के पहाड को पार करके आये हो, इसलिये में आपका अहसान मानता और कष्ट के लिए क्षमा चाहता हुं । आपको मेरे सुबाने कुछ भी साधन नहीं दिया ।
सूरिजीने उत्तरमें कहा, आपकी आज्ञासे मुझे सब कुछ देने को वे तैयार थे । किन्तु हमारा धर्माचार ऐसा है कि कोई भी वाहन का उपयोग नहीं करना । एक पैसा का भी परिग्रह नहीं रखना । पैदल चलना, माधुकरीसे जीवननिर्वाह करना इत्यादि सुनाया था । आपनें क्षमा याची, वो आपकी सज्जनता है ! इस वार्तालाप में बहुत समय हो गया और ज्यादा धर्मोपदेश सुनने के लिये अपने कमरेमें ले जाते है । तब सूरिजी कमाडके पास रूक गये ।
बादशाहने पूछा, आप क्यों रूक गये ? सूरिजीने कहा, इस गालीचा पर पांव रखकर हम नहीं आ सकते । क्योंकी हमारा आचार है कि चलना हो बैठना हो तो अपनी नजरसे देखकर चलना बैठना । जिससे किसी ___जीवको दुःख न हो और वे मर न जावे | धर्मशास्त्र भी फरमाते है, दृष्टि पुतं न्यसेत् पादम्'
बादशाहने कहा, हमारे सेवक रोजाना
साफ करते है तो क्या इसमें चिटीया धुस गई कया ? यूं बोलकर अपने हाथ से एक औरसे गालीचा का छोर उठाया । Semassemorganap,meyarlse%aabelascmekassero
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