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काव्यम् हिंसादि
ऋोवा (गांधीनगर) २.३८२००९
जन
मंत्र - ॐ श्री, चन्दनं समर्पयामि स्वाहा -
तृतीय पुष्प पूजा (दोहा) हीर सुरीश्वरजी, गुरू के गुण गाईये ॥टेर ।। हीर मुनिश्वर, हीर सूरीश्वर अकल महिमा रे,
भक्ति फल से पाईये..... फतेहपुर में उपकेश धर में, है तप भक्ति रे,
तप से ही सुख पाईये.. सती शिरोमणी सद्धगुणी रमणी, श्राविका चंपारे,
छ मासी तप ठाईये..... देवका से गुरू कृपा से, तप गुण बढते रे,
कृपा को वारी जाइये... हीर... (४) हुई तपस्या मोक्ष समस्या, आनंद हेतु रे,
उच्छव रंग चाहिये रे... हीर... (५) तप की सवारी जूलूश भारी, वाजिंत्र बाजे रे,
जय नारे भी मिलाइये ... हीर... (६) अकबर बोले लोक है भोले, झूठी तपस्या रे,
चंपा को कहे आइये... हीर... (७) पुछे चंपा से किन की कृपा से, रोज मनाये रे,
सच्चा ही बतलाइये रे... हीर... (८) पार्श्व प्रभु की हीर गुरू की चंपा सुनावे रे,
__कृपा का फल पाईये रे... हीर... (९) कृपालु नामी हीरजी स्वामी, ठाना शाहीने रे,
इनसे हो मिलना चाहिये रे... हीर... (१०) गुरू वचन में भक्ति सुमन है, चारित्र दर्शन रे,
कर्मो का गढ ढाइये रे... हीर... (११)
काव्यम् हिंसादी मंत्र ॐ श्री पुष्पाणि समर्पयामि स्वाहा ॥३ ।। SOONam, geran/C3Marzenas, mekan,coxas,consex
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