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षष्ठी अक्षत पूजा
दोहा (ढाल ६) अहिंसा का डंका आलम में, श्री जगद् गुरू ने बजवाया महावीर का झंडा भारत में श्री हीरसूरि ने फहराया ।। टेर ।। मयरानी रोह नगर स्वामी, शिकार को छोडे सुखकामी । सुल्तान सिरोही का नामी, उनका हिंसादी छुटवाया ।। १ ।। अकबर सुबह में खाता था, सवा सेर कलेवा आता था । चिडियों की जीभ मंगाता था, उस से उनका दिल हटवाया ।। २ ।। कई पशु पक्षी को मारा था, और कई पर जुल्म गुजारा था । अकबर का यह नित्य चारा था, उसके लिये माफी मगवाया ।। ३ ।। पिंजर से पक्षी छुडवाये, कई कैदी को भी छुडवाये ।। कई गैर इन्साफ को हटवाये, कइयों का जीवन सुलझाया ।। ४ ।। काला कानून था जजिया कर, जनता को सतावे दुःख देकर | अकबर को मजहब समजकर, जजियाकर पाप को धुलवाया ।। ५ ।। पर्युषण बारह दिन प्यारे, किसी जीव को कोई भी नहीं मारे | अकबर यु आज्ञा पुकारे, फरमान पत्र गुरू ने पाया ।। ६ ।। संक्रान्ति के रवि के दिन में, नवरोज मास ईद के दिन में । सुफियानमिहिर के सबदिन में, जीवधात युं छै महिना वारा । चारित्र सुदर्शन भय हार, गुरू चरण में अक्षत पद पाया ।। ७ ।।
काव्यम् - हिंसादि
मंत्र - ॐ श्री अक्षतान् समर्पयामि स्वाहा ।। ६ ।।
सप्तमी नैवेध पूजा
(दोहा) जगद् गुरू ने जीवन में, कीना तप श्री कार । तेले बेलें सेंकडों, व्रत भी चार हजार १ ।। आम्बिल नीवी एकासणा, और विविध तप जान ।
प्रतिदिन बारह द्रव्य का करे गुरूजी रिमाण ।। २ ।। Nomascoelasmanan,coxas, nenos/commons/OOK
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