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इस समय सारे गुजरातमें नादीरशाही चलती थी । न्याय और अन्यायको देखते ही नहीं थे । जिससे प्रजा अत्यंत त्राहित बन गई थी ।
हीरसूरिजी को ये समाचार मिल गये । इसलिए उन्हें २३ दिन तक गुप्त स्थानमें रहना पड़ा ।
और भी वि.सं. १६२० सालमें बोरसद गांवमें घटना घटी कि, जगमाल ऋषिने पू. हीरसूरीश्वरजी महाराज के पास आकर कहा कि, मेरे गुरूजी, मेरी पुस्तकें नहीं देते है । सूरिजीने सहज भावसे कहा, आपने कोई गुना किया होगा । इसलिये नहीं देते होंगे । यह सुनके जगमालजीको संतोष न हुआ बल्कि हीरसूरिजी पर क्रोधित होकर वहाँ से पेटलाद गांव गये
और वहाँ के हाकिम को हीरसूरिके विरूद्ध बडा दोष लगाकर उनको पकड़ने के लिये दो-तीन बार सिपाहिओं को भेजा | मगर सूरिजी मिले नहीं । इस उपद्रवसे बचानेके लिये श्रावकोंने घूस देकर हीरसूरिजी महाराज को सांत्वन दिया ।
वि. सं. १६३४ में विजय हीरसूरीश्वरजी महाराजाका कुणगेर (अमदावाद) में चातुर्मास था । तब उस समय उदयप्रभ सूरिने आचार्य श्री को कहलाया कि, आप, वहाँ सोमसुंदर सूरि चार्तुमास हेतु बीराजमान है, उनके साथ क्षमापना कर दो । हीरसूरिजीने कहा, मेरे गुरूजीनें खमत खामणां नहीं किया है, में कैसे करूँगा । इस असाधारण निमित्त से उदयप्रभसूरि बडे इर्षान्वित बन गये और पाटण जाकर वहाँ के सुबेदार कलाल्को उल्टासुल्टा समझाकर, हीरसूरिजी को कैद करने के लिये एक सौ सिपाहिओं को भेजा । मगर वडावली संधनें तीन महिना तक सूरिवर को गुप्त रक्खा और बचा लिया ।
विजय हीरसूरिजी महाराज विहार करते वि.सं. १६३६ में अमदाबाद पधारे । तब हाकेम शहाबल्ने आकर कहा । क्या आप बारिश को रोकते हो? इससे आपको क्या लाभ है ? इस गलत समाचार को सुनकर MPPSPEECHESIRDSHESARDSHESEARESHERPRETREEKREHEETPRESHEDERS
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