Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan
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0x29,3x20, तेरा गुरू है, मेरा गुरू है
ठेका भी हो तो तुडाना पडेगा ।। हीर || १० ।। शाह अकबर यों भाव बतावें |
हीरे का पाक खिलाना पडेगा || हीर ।। ११ ।। चरित्र दर्शन गुरू चरणों में,
ध्यान का धूप जमाना पडेगा ।। हीर || १२ ।।
काव्यम् हिंसादी मंत्र ॐ श्री धुपं समर्पयामि स्वाहा ।। ४ ।।
पंचम दीपक पूजा
(दोहा) अब अकबर गुजरात में, भेजे मोदी कमाल ||
बोलावे गुरू हीर को, फतेषु खुशहाल ।। १ ।। संवत सोलसो चालिसा पाये श्री गुरू हीर | बने गुरू उपदेश से, धर्मी अकबर मीर
॥२ ।। (ढाल ५ तर्ज :- (घडी धन्य आज की सबको मुबारक हो)
इसी दुनिया में है रोशन, "जगद्गुरू' नाम तुम्हारो || टेर ।। कई को दीनी जिन दीक्षा, कई को ज्ञान की भिक्षा | कई को नीति की शिक्षा, कई का कीना उद्धारा || इसी ।। १ ।। लंकापति मेघजी स्वामी, अठ्ठाइस शिष्य सहगामी । सूरि चेला बने नामी, करे जीवन का सुधारा || इसी || २ || कीडीं का ख्याल दिलवाया, अजा का इल्म बतलाया । मुनि का मार्ग समजाया, संशय सुल्तान का टारा || इसी ।। ३ ।। शाही सन्मान तो पाया, पुस्तक भंडार भी पाया बडा आग्रह से बुलवाया, अकबर नाम से सारा || इसी ।। ४ ।। तपगच्छ द्वेश दिलधार, कल्याण खटचारा |
उसी का गर्व उतारा, सभी के दुःख को टारा || इसी ।। ५ ।। memas/Okaycoxaenas/evarmer/C3%,"bana
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