Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan
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Carpekas,memas, las द्वितीय चंदन पूजा (दोहा)
विजय दान सूरी विचरते आये पाटणपूर । उपदेश से भवि जीव की, मार्ग बताते धूर ।। १ ।। गुरूवर की सेवा करे, माणिभद्र महावीर । करे समृद्धि गच्छ में काटे संकंट पीर ॥२ ।। इस समय गुरूदेव को, हुआ शिष्य का लाभ । तपगच्छ में प्रतिदिन बढे, धर्मलाभ धनलाभ || ३ || ढाल - २ (धन धन वो जगमे नरनार)
धन धन वो जग में नरनार, जो गुरूदेव के गुण को गावे ।। पालनपुर भूमिसार, ओसवाल वंश उदार, महाजन के घर ओकार प्रल्हादन पास की पूजा रचावे || १ || धन सेठ जी कुंराशाह, नाथी देवी शुभ चाह, चले जैन धर्म की राह धर्म के मर्म को दिल में ठावे ।। २ ।। संवत पंद्रहसो मान, तिर्यासी मिगसिर जाण, हीरजी का जन्म प्रमाण शान शौकत जो कुल की बडावे || ३ || शिशु वय में हीर सपूत, परतिख ज्युं शारद पुत बल बुद्धि, से अद्भुत ज्ञान क्षय उपशम के ही प्रभावे ॥ ४ ।। पडिक्कमणा प्रकरण ढाल, योग शास्त्र व उपदेश माल पयन्नाचार रसाल, पढे गुरू के भी दिल को लुभावे ।। ५ ।। हीरजी पाटण में आये, नमें दान सूरि के पाय, सुनी वाणी हर्षं बढाया, पाक दिल संयम रंग जमावे ॥ ६ ॥ पन्नरसे छयाणु की साल, ले दिक्षा हिर सुकुमाल बने हीर हर्ष मुनि बाल, न्याय आगम का ज्ञान बढावे ।। ७ ।। संवत सोलसो सात, पंन्यास हुये विख्यात हुये वाचक संवत आठ, पाट सुरि की दशमे पावे ।। ८ ।। हुये पूज्य सूरीश्वर हीर, नमे सुबा राज वजीर
चन्दन चर्चित गम्भीर, धरि चारित्र सुदर्शन गावे ॥ ९ ॥ COOK29, 90x900x29,%aarsema,"38%a9.c9e%ds,Coala
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