Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan

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Page 64
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 3 प्राण I || 2 11 ज्ञान I ।। १२ ।। जोगणियोंने कारमण कीना, चहा मुनियों का उनको पारे पर चिपटा कर दिया गुरू ने ज्ञान गुरू के कंठ को मन्त्र से बांधा, युं ली उनसे वाण । तपगच्छ को उपद्रव नहीं करना, स्थंभित कर अज्ञान ।। ९ ।। एक योगी चूहे के द्वारा, करे गच्छ को परेशान । उसके उपद्रव को हटाया, पाया बहु सम्मान रात में गुरू का पाट उठावे, गोधरा शाकिनी जाण उनसे भी तब मुनि रक्षा का, लीना वचन प्रमाण ।। ११ ।। सांप काटते कहां संघ से, अपना भविष्य संघ ने भी वह जडी लगाई, हुए गुरू सावधान भस्म ग्रह की अवधि होते, शासन के आनंद विमल गुरू जिन्होंको, नमे राज सुरत्राण क्रियोद्धार से मुनि पंथ को उद्वरे ज्ञान कृपा से दूर हटावे, कुमति को उफाण जैसलमैर मेवात मोरवी, वीरम गाम मैदान । सत्य धर्म का झन्ड गाडा, दिन दिन बढते शान आन ।। १५ ।। मणिभद्र सेवा करे जिनकी विजय दान गुरू मान । उनके पट प्रभाविक सूरि, हीर हीरा की खाण । आ ।। १६ ।। इन गुरूओं की करे आशातना, वह जग में हैवान भक्ति नीर से चारणो पूजे, चारित्र दर्शन ज्ञान । श्रा ।। १७ ।। काव्यम् (वसंत तिलका) सुल्तान ॥ १३ ॥ युगप्रधान, ॥ १४ ॥ -2038 हिंसादि दूषण विनाश युग प्रधान, श्रीमद् जगद् गुरू सुहीर मुनीश्वराणाम्, उत्पत्ति मृत्यु भव दुःख निवारणाय, भक्त्या प्रणम्य विमल चरणं यजेहं ॥ १ ॥। मंत्र -५०38 う 49 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॐ श्री सकल सूरि पूरंदर जगद् गुरू भट्टारक श्री विजय सूरी चरणेभ्यो समर्पयामि स्वाहा 119 11 For Private and Personal Use Only NOOMOONG 11 90 11

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