Book Title: Jjagad Guru Aacharya Vijay Hirsuriji Maharaj
Author(s): Rushabhratnavijay
Publisher: Jagadguru Hirsurishwarji Ahimsa Sangathan

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Page 54
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir mascotas,c**nekas,Samar,Bemaskas, दृष्टि से प्रतिक्षा करते थे. उसी वक्त एक चारण को समाचार मिला कि गुरूभगवंत खंभात की ओर आ रहे है | चतुर चारणने सोचा अगर यह समाचार शीघ्रातिशीघ्र रोठको दे दिया तो वे प्रसन्न होकर मुजे निहाल करने में कसर नहीं छोड़ेंगे | तुरंत दौडकर गंधार में जाकर रामजी शेठके सन्मुख उपस्थित हो गया । उसने शेठको कहाँ: शेठजी! वर्षोंकी आपकी तमन्ना साकार हो जाये ऐसे आनंदप्रद समाचार लाया हूँ आपके गुरूदेव श्री हीरसूरीश्वरजी महाराज गंधार पधार रहे है समाचार सुनते ही शेठ हर्ष से ऐसे उतेजित हो गए कि अपने पास रही विभिन्न दुकान-खजानाभंडार-दुकान आदि की चाबियों का गुच्छा चारण की ओर फेंका और गद्गद् स्वर में कहाँ. "एसे आनंदप्रदायक समाचार देने के उपलक्षमें तुजे निहाल करना चाहता हूं, चाबी ले चाबी द्वारा जो खजाना दुकान भंडार खूलेगा उसमे रखा संपूर्ण माल तमाम संपत्ति तुजे बक्षिस में दे दी जावेगी । चारण का चित्त चमत्कृत हो गया. कयोंकि ऐसे अद्भूत औदार्यकी तो उसे कल्पना भी नहीं थी । किंतु बाद में उसके कर्ममें भाग्यमें लीखा था उतना ही उसे प्राप्त हुआ. करोडा की किंमत के जवाहरात का खजाना खुले ऐसी भी चाबीयाँ थी किंतु वह चाबी कौनसी थी उसका चारण को कहाँ ख्याल था ? उसने तो सबसे बड़ी चाबी थी वह पसंद करके हाथमें ली वह चाबी ओठके समुद्रनौका व्यवसाय में उपयोगी बडे रस्सीयों के भंडार की थी. बावजुद वह रस्सी भी इतनी अधिक तादाद में थी कि उसकी किंमत के रूपमें चारण को १२ लाख मिले. धन्य ऐसे गुरुदेव को... धन्य ऐसे परम उपासक भक्त को... PASSPRESHESTROTHERSIOCHEBSITESHDSROSHESARESHESARSTHISSAID 39 For Private and Personal Use Only

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